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CTET UPTET Diagonostic Remedial Teaching Study Material in Hindi

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दानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण

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निदानात्मक शिक्षण निदान शब्द मूलत: चिकित्सा विज्ञान में प्रयोग होता है जो रोगी का इलाज करने से पूर्व उसके लक्षणों का पता लगाने के लिए किया जाता है। जिस प्रकार चिकित्सक रोगी का उपचार करने स पहले यह पता करता है कि रोगी को क्या परेशानी है, कितनी है या बीमारी किस प्रकार की है। तत्पश्चात ही डॉक्टर उस बीमारी या परेशानी का उपचार करता है। ठीक उसी प्रकार इन परीक्षाओं के द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि गणित के अध्ययन में छात्रों की क्या-क्या कठिनाइयाँ है, वे कहाँ गलतियाँ करते हैं, किस प्रकार की गलती करते है तथा कयों करते हैं आदि। इस प्रकार यही जानना या पता करना निदान कहलाता है अत: गमित में बालकों की कठिनाइयों एवं कमजोरियों का पता लगाने के लिए जिन परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है नैदानिक या निदानत्मक परीक्षाएँ कहलाती है।

निदानात्मक परीक्षण व्यक्ति की जाँच करने के पश्चात किसी एक या अधिक क्षेत्रों में उसकी विशेषताओं वं कमियों को व्यक्त करता है इन परीक्षाओं में उपलब्धि परीक्षणों की भाँति अंक प्रदान नहीं किए जाते है बल्कि क कमी या गलती के कारणों का पता लगाया जाता है इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण विषय वस्तु को विभिन्न भागों में बाँट लिया जाता है तथा प्रत्येक (प्रकरण) भाग स सम्बन्धित होते हैं निदानात्मक परीक्षणों में प्रश्नों को अधिगम क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। प्रत्येक अधिगम इकाई के लिए अलग से निदानात्म परीक्षण का निर्माण किया जाता है।

निदानात्मक शिक्षण से सम्बन्धित कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत् हैं

गुड के अनुसार –निदान का अर्थ है अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों और कमियों के स्वरूप का निर्धारण करना

योकम व सिम्पसन के मतानुसरा

निदान किसी कठिनाई का उसके चिह्रहों या लक्षणों से ज्ञान प्राप्त करने की कला का कार्य है। यह तथ्यों के परीण पर आधारित कठिनाई का स्पष्टीकरण है।

मरसेल के मतानुसार,

जिस शिक्षण में बालकों की विशिष्ट त्रुटियों का निदान करने का विशेष प्रयास किया जाता है उसको बहुधा निदानात्मक शिक्षण या शैक्षिक निदान कहते हैं।

निदानात्मक शिक्षण में नैदानिक परीक्षण के उददेश्य (CTET UPTET Previous Year Study Material)

गणित विषय की अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया में सुधार करना।

अधिगम-अनुभव तथा अधिगम-प्रक्रिया के अवरोधक तत्वों को ढूँढना एवं उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करना

पिछड़े बालकों की पहचान करना।

गणित सम्बन्धी विशिष्टताओं एवं कमजोरियों का पता लगाना।

गणित के पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाना तथा बालकेन्द्रित बनाना।

मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने हेतु मूल्यांकन पद्धतियों में परिवर्तन करना।

उपलब्धि परीक्षण हेतु परीक्षण पदों के प्रकार निर्धारित करने में सहायता देना।

छात्रों की कमियों एवं अच्छाइयो के आधार पर शैक्षिक एवं व्यावसयिक निर्देशन देना।

निदानात्मक शिक्षण निदान हेतु महत्वपूर्ण चरण CTET UPTET Important Study Material in Hindi)

शैक्षिक निदान के मुख्य रूप से 5 चरण माने जाते है। जिसके आधार पर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है

  1. सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास किया जाता है कि वे कौन से छात्र है जो कठिनाई का सामना कर रहे हैं। यानि समस्याग्रस्त बालक की पहचान की जाती है। इसके हेतु हम विभिन्न परीक्षाणों का प्रयोग करते है।
  2. इसके उपरान्त यह जानने का प्रयास किया जाता है कि त्रुटियाँ कहाँ है अर्थात बालक जहाँ गलती कर रहा है वह क्षेत्र कौन सा है।
  3. कठिनाई की प्रकृति जाने के बा यह जाना जाता है कि त्रुटियों के क्या कारण हैं। यह प्रक्रिया जटिल है। ज्यादातर इसमें शिक्षक का तर्क कार्य करता है।
  4. कारण पता हो जाने के बाद इस पर विचार किया जाता है कि उपचार क्या किया जाए इसका कचोई विशेष नियम नहीं है। यह समस्या की प्रकृति पर ही निर्भर करता है।
  5. उपचार देने के बाद ही यह प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती है बल्कि इनके परिणामों को ध्यान में रखकर यह भी विचार किया जाता है कि ऐसा क्या किया जाए कि वे समस्याएँ उत्पन्न ही न हों।

निदानात्मक परीक्षणों की आवश्यकता एवं महत्व CTET UPTET Study Material Online Study)

इन परीक्षणों की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वार स्पष्ट कर सकते  है

  1. शैक्षिक निदान की आवश्यकता केवल समस्याग्रस्त बालकों की ही नहीं अपितु सामान्य बालकों को भी होती है।
  2. निदानात्मक परीक्षाओं की आवश्यकता बालकों की विषयगत व विशेष इकाई में कठिनाई स्तर जानने में पड़ती ही।
  3. कठिनाई उत्पन्न करने वाले प्रश्नों की विषय –वस्तु का विशलेषकण करने हेतु इसकी आवश्यकता पड़ती है।
  4. विषय वस्तु के विश्लेषण के अतिरिक्त मानसिक प्रक्रिया के विश्लेषण में भी शैक्षिक निदान की आवश्यकता होती है।
  5. शैक्षिक निदान इस तथ्य का भी पता लगाता है कि छात्र किन किन मानसिक प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पादित नही कर पा रहा है।
  6. शैक्षिक निदान की आवश्यकता अध्यापक को पठन-पाठन की स्थितियों को प्रभावशाली बनाने हेतु होता है।
  7. शैक्षिक निदान द्वारा बालक की वांछनीय एवं वास्तविक उपलब्धियों की दूसी को समाप्त किया जा सकता है।
  8. अच्छे निर्देशन, परामर्श एवं शिक्षण हेतु महत्वपूर्ण है।
  9. स्कूल में अपव्यय व उपरोधन के कारणों को जानने का अच्छा साधन है। बालक विद्दालय् क्यों छोड़ते हैं तथा जिस उददेशय हेतु उन्होने प्रवेश लिया था वह पूरा हुआ या नहीं। इसके कारणों का पता लगाना।
  10. छात्रों की कमियों को दूर करने के लिए उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करने में सहायक है।
  11. शैक्षिक निदान मूल्यांकन प्रक्रिया को अत्यधिक प्रभावित करता है।
  12. निदानात्मक परीक्षाओं में निश्चित समय नही दिया जाता है। आवश्यकतानुसार यह एक से अधिक ब्र भी आयोजित की जा सकती है।
  13. निदानात्मक परीक्षओं में निश्चित समय नहीं दिया जाता है।
  14. किसी विशेष क्षेत्र में बालकों की कठिनाई और कमजोरी दूर करने का प्रयास किया जाता है।

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