CTET UPTET Gender Issues in Social Construct Study Material in Hindi
CTET UPTET Gender Issues in Social Construct Study Material in Hindi
समाज निर्माण में लैंगिक मुददे Gender issues in social construct(CTET UPTET Gender Issues in Social Construct Study Material in Hindi)
प्रत्येत व्क्ति की अपनी दृष्टि में उसका व्यक्तित्व परिपूर्ण और सम्पन्न है । हर व्यक्ति का यही अनोखापन उसके जीवन का आधारभूत गुण है। एक ही परिवार के बच्चों में यह भेतद देखा जा सकता है। मानव इतिहास केविकास के विभिन्न पडावों पर इस भेद को ररख कर व्यक्ति और उनके समूहों और वर्गों के भेदों की व्याख्या की गी है। शिक्षाविदों , रानीतिज्ञों नियोजको, समाजशाश्त्रियों तथा प्रशासको ने क्षेदों कीइस गुत्थी को सुलझाने की आवश्यकता को अनुभव किय4 है तथा इसे व्यवस्थाबद्ध, और नियमबद्ध करने के प्रयास किए है। दार्शनिको तथा मनवैज्ञानिकों ने भी इस प्रकार के नियम बनाने के प्रयत्न किए है। हर व्यक्ति कीरुचि, अभिवृत्ति नैतिकता, सामाजिक समज्जनता, स्व की अवधारणा तथा अभिप्रेम के स्तर अन्तर पाया जाता है तथा समाज निर्माण में अवस्था, जाति समाजिक –अर्थिक के आधार पर लैगिक मुददों में एक व्यापक अन्तर उपस्थित होता है।
समाज निर्माण में लिंग की भूमिका(Gender Issues in Social Construct Study Material in Hindi)
प्राय: समाज में बालकों के समान बालिकाओं का पालन नही किया जाता है। शिक्षक और शिक्षण संस्थाओं में यह भावना दिखाई देती है। शिक्षक अपने शिक्षण और नीतियों में ऐसे उदाहरण देता है जो छात्रोंओं के अनुकूल नही होते शिक्षकों की यह धारण होती है कि वालिकाओं को अलग प्रकार की शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जो उसे एक अच्छी ग्रहिणी और माँ बना सके। इसके फलस्वरुप छात्रों और छात्राओं में व्यक्तित्व के लक्षणों और विशिष्ट योग्यताओं की दृष्टि से एक दूसरे से भिन्न होते है दूसरा महत्वपूर्ण मुददा लड़कियों में ये बाधाएं और और जटिल हो जाती है जो कमजोर वर्ग से सम्बन्धित है। उदाहरण के लिए , अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदिवासी और लाभांवित वर्ग की छात्राएँ आदि। प्राय: अनेक माता-पिता आर्थिक कठिनाइयों के कारण अपनी पुत्रियों को शिक्षा के लिए विद्दालय नही भेजना चाहते। वे धन को उनकी शिक्षा के बजाए उनके विवाह में खर्च करना अधिक पसन्द करते है। अत: उरोक्त तर्कोके आधार पर कहा जा सकता है कि समाज निर्माण में लिंग की भूमिका अहम होती है लेकिन आरज के आधुनिक युग में दिन –प्रतिदिन की बदलती प्रविधियों से भी समाज मे स्त्रियों की स्थिति को सुधारा जा सकता है
लैगिक भेद-भाव(Gender Issues in Social Construct Study Material in Hindi)
मनोविज्ञान के क्षेत्र में लिंग भेद पर आधारित विषय के अतिरिक्त शायद ही कोई अन्य विषय इतनी स्थाई रुचि का हो। वैवाहिक सम्बन्धों की सफलता, शिक्षा रहन सहन तथा कार्यक्षेत्र सम्बन्धी अनेक सामाजिक समस्याओं का सम्बन्ध की सफलता, शिभी, सहन सहन तथा कार्यक्षेत्र सम्बन्धी अनेक सामाजिक समस्याओं का सम्बन्ध मनोज्ञानिकों ने महिला तथा पुरुषों की उपलब्धि की तुलना को अपने अनुसन्धान का विषय बनाया है. उन्होने अपने प्रतिदर्श को दो भागों में विभाजित किया है, महिला और पुरुष इन शोध के तथ्यों के अनुसार सामाजिक तथा शारीरिक आधार पर महला और पुरुष में भिन्नता है। इस अनुसन्धान का आधार सामान्यत: मनोज्ञानिक था। ये तथ्य इस धारणा को सिद्ध करतेहै कि शासीरिक बनावट के अनुसार दोनों के संवेगों में एक अन्तर होता है। इस भेद का आधार सामाजिक नही है बाह्रा कारकों तथा अन्य लक्षणों के सहसम्बन्धों का आपसी सम्बन्ध भी जाने के प्रयत्न किए गए है।
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इन वर्गों में मुख्य भेद कौन कौन से है। जहाँ तक सामान्य बुद्धि की बात है महिला और पुरुष के वर्गों में समानता ही दिखाई पड़ती है इनमें भेद कुछ विशे, योग्यताओं या लक्षणों को लेकर है। औसतम पुरुषों में महिलाओं की तुलना में तर्क करने, वस्तुओ में समानता खोज निकालने तथा सामान्य ज्ञान के क्षेत्र में कुछ श्रेष्ठता के संकेत मिलते है लड़कियों में स्मरण शक्ति, भाषा तथा सौन्दर्य बोध के गुण अधिक होते हैं। पुरुष जहाँ स्थानिक सम्बन्ध की दृष्टि से भेद की सूक्ष्मता को पहचानने में अधिक सक्षम है, वहाँ शाब्दिक अभिक्षमता तथा स्मरम शक्ति के क्षेत्र में महिलाएँ अधिक सक्षम है। अनुसन्धानों से पता चला है कि छात्राओं का भाषायी विकास छात्रों की तुलना में अल्पायु से ही अधिक होता है। अनुसन्धानों ने सिद्ध किया है कि विद्दालय पूर्व आयुवर्ग की वालिकाओं की शब्दावली इस आयुवर्ग के बालकों की तुलना में अधिक होती है सामान्यत: दोनों वर्गों की बुद्धि अथवा शैशिक अभिक्षमता में क्षमता से सम्पन्न न करे इन ताथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि शेक्षिक कार्यक्रम तथा पाठ्यक्रम के समायोरजन के समय छात्र-छात्रओं में कोई भेदभाव नही बरतना चाहिए छात्र- छात्राओं की पाठयचर्या में अन्तर जन्मजात बौद्धिक स्तर के कारण नही होता है उनमें अन्तर का मुख्य कारण भावी जीवन की आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित होता है।
मैकनेमर और टर्मन ने कुछ अध्ययनों के आधार पर स्त्रियों और पुरुषों में निम्नलिखित भिन्नताओं की खोज की है
- स्त्रियों में स्मृति कोशन अपेक्षाकृत अधिक होती है जबकि पुरुषों में गत्यात्मक योग्यता अधिक होती है।
- स्त्त्रियों का हस्तलेख पुरुषों के अपेक्षा अच्छा रहता है, जबकि पुरुष गणित तथा तर्क में अधिक योग्य होते है।
- स्त्रियों में स्वादास्पर्श घृणा आदि के विशिष्ट अन्तर को बताने की अपेक्षा अधिक कौशल होता है। पुरुष भार तथा आधार के प्रति अधिक सचेत होते हैं और अपेक्षाकृत अधिक प्रतिक्रिया दिखाते है।
- स्त्रियों में भाषा सम्बन्धी योग्यताएँ अपेक्षाकृत अधिक होती है जबकि पुरुष भौतिक विज्ञान तथा रसायन विज्ञान में अधिक योग्य होते है।
- स्त्रियाँ सुझावों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है जबकि पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक रंग अन्धता होती है।
- स्त्रियाँ दर्पण चित्रकला में अपेक्षाकृत अधिक कुशल होती है वाणी आदि की त्रुटिया पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा तिगुना होती है
- युवतियाँ प्रेम कहानियों, परियों की कहानियों, स्कूल ओर घर से सम्बन्धित कहावतों तथा दिवा स्पप्नों में रुचि लेती है, जबकि युवक वीरता, विज्ञान युद्ध आदि कहानियों, स्काउटिग, खेलों तथा कौशलपूर्ण कहानियों में रुचि लेते है।