CTET UPTET Identity the Child of Diverse Backgrounds Study Material in Hindi
CTET UPTET Identity the Child of Diverse Backgrounds Study Material in Hindi
विविध पृष्ठभूमि के बालकों की पहचान (Identity the Child of Diverse Backgrounds )
सामाजिक रुप से पिछडे पृष्ठभूमि के बालक
व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न कारको के क्रियाशील होने के कारण, एक व्यक्ति में अनेक आवशयकाताएं जन्म लेती है इसी प्रकार सामाजिक स्तर पर भी अनेक कारक क्रियाशील और प्रभावपूर्ण होते है जिनके कारण भी एक बालक में अनेक विशेष आवश्यकताओं का जन्म होता है, जिनकी आपूर्ति निश्चिय ही होनी चाहिए। यद्दपि हमारा संविधान सभी के लिए समान शिक्षा की व्यवस्था के दायित्व का निर्वहन करने हैतु प्रतिबद्ध है परन्तु विद्दालय जाने की उम्र वाले सभी बच्चों को आज भी यह अवसर उपलब्ध नही है। स्कूली अवस्था के अनेक बच्चे पढाई की सुविधा से वंचित रह जाते है। इसके अनेक कारण हो सकते है। इसके लिए अनेक पाय किए जा रहै है। उदाहरण के लिए अधिक पाठशालाओं को खोलना, आवासीय सुविधाएं उपलब्ध कराना, मुक्त रुप से शिक्षण की सुविधा प्रदान करना (मुक्त शाला, अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र द्वारा) का लाभ सामाजिक रुप से सुविधावंचित बच्चों को दिया जा सकता है। इन अनेक उपायों के रहते हुए भी, निर्धनता एक ऐसा मूल कारण है जो भारतीय समाज में पिछड़े वर्ग की शिक्षा को विशेष रुप से प्रभावित करता है। ऐसे छात्रों की सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सीमाँए शिक्षा के प्रति माता पिता और बच्चों में प्रेरणा की कमी, माता पिता में अपने सम्बन्ध में हीन धारणाएँ, अनुपयुक्त शेक्षिक सुविधाएँ और अध्यापको द्वारा पिछडे वर्ग के बालकों से कम अपेक्षाएं जैसे कारकों के कारण, सामाजिक रुप से सुविधावंचित अथवा पिछडे छात्रों में चिन्ताएँ र व्यग्रता या व्यक्तित्व सम्बन्धी समशयाएँ उत्पन्न होती है। ऐसे सुविधावंचित छात्रों के लिए, शेक्षिक अवसरों की उपलब्धि कराने के साथ साथ यह भी अत्यधिक आवश्यक है कि कक्षा में अध्यापक इन्हैं अधिक से अधिक महत्व देकर स्वीकार करें ध्यान रहै कि कक्षा में इनके प्रति किसी प्रकार का अवहेलनापूर्ण व्यवहार नही होना चाहिए।
अनुसूचित जनजाति के बालक (CTET UPTET Identity the Child of Diverse Backgrounds Study Material in Hindi)
भारत में अनुसूचित जनजाति के लोग प्राय: उन छोटे और बिखरे हुए गाँवों अथवा ढनियों में रहते है, जो सामान्य पहुँच के बाहर है। परिणामस्वरुप इन जनजातियों की दिन प्रतिदिन की सुविधाएँ: जैसे – भोजन वस्त्र आश्रय और शिक्षा आदि की आपूर्त करना कठिन है।
अनुसूचित जनजाति के बालकों को पढाते समय विभिन्न तथ्य दिमाग में रखने चाहिए अनेक कारणों से अनुसुचित जनजाति के बच्चे, आज भी शिक्षा का लाभ नही उठा पा रहै है। अनुसूचित जनजाति के बच्चों की शिक्षा के खराब स्तर के कारणों के पीछे कुछ प्रमुख तत्व निम्नवत् हैं
- विद्दालय में नुसूचित जनजाति क बालकों की कम संख्या
- अध्यापको में उनके शिक्षण के प्रति उदासीन रवैया
- पाठ्यपुस्तकों में उनकी स्थानीय बातों व उदाहरणों का न होना।
- बौद्धिक क्षेत्र में उनका पिछड़ा होना।
- गरीबी
- अनुसूचित जनजाति की शिभा का प्रचार प्रसार न होना।
अनुसूचित जाति के बालक (CTET UPTET Identity the Child of Diverse Backgrounds Study Material in Hindi)
अनुसूचित जातियाँ भारतीय समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है जौ परम्परागत रुप से सबसे निम्न कोटि का समझा जाता है। यह वर्ग है। भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों के विकास के उदद्श्य से राज्य स्तर की नीतियों मे दिशा निर्देशिन के सिद्धान्त द्वारा सकारात्मक कार्यक्रमों के योजना तत्वों को प्रस्तुत किया गया है। अनुसूचित जाति शब्द का सम्बन्ध भारत की उन जातियों से है जो पहले अछूत समझी जाती थी। इसका मूल कीरण यह समझा जाता था कि अनुसूचित जाति के लोग अस्वच्छ और निम्न स्तर के समझे जाने वाले कार्य जैसे – सफाई करना, झाडू आदि लगाना, मैला उठाना, जूता बनाना आदि कार्यो से जुडे हुए है इसके साथ ही अनुसूचित जाति के लोगों को जाति से बहिष्कृत समझा जाता था पहले इन्है अन्त्यज, पेरियाह, आदिसूस आदि मामों से सम्बोधित किया जाता था।
अनुसूचित जाति के लोग ऐसे पेशे से जुड़े है, जिन्हें उँची जाति के लोग घृणित समझते है। उन्हैं जन सुविधाओं जैसे—कुआँ, नदी, मन्दिर आदि के उपयोग करने की अनुमति नही थी सबसे चिन्तनीय स्थिति यह रही है कि इस वर्ग के लोगों को सभी प्राक की शिक्षा से वंचित रख3 गया था, जिसके कारण इनकी अवस्था में परिवर्तन नही आ सका है। ये आज भी सामाजिक गतिशीलता से वंचित है। आज भी वे परम्परागत कार्यो का त्याग करके अन्य कुशल कार्यो को अपनाने में असमर्थ पाए जाते है परिणाम यह हुआ है कि यह समुदाय जीवन के सभी क्षेत्रों में पिछड़ा हुआ है।
भारत में शिक्षा राज्य के दायित्वों में से एक है । अनुसूचित जाति के लोगों को सामाजिक गतिशीलता प्रदान करने के लिए राज्य स्तर पर अनेक कल्याणकारी और विकासशील योजनाओं का निर्माण किया गया है। कुछ प्रमुख योजनाएं इस प्रकार से है जैसे नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था छात्रवृत्ति, पाठ्य पुस्तकों का वितरण, छात्रावास आदि की सुविधाएँ उपलब्ध कराना आदि। निश्चित ही समुचित शिक्षा की व्यवस्था और अन्य उपायों द्वारा राज्य, उन अपेक्षित सुविधाओं और अवसरों को प्रदान कर सकता है जिससे समाज के इस पिछडे वर्ग के जीवन में सुधार हो सके।