CTET UPTET Individual Differences Study Material in Hindi
CTET UPTET Individual Differences Study Material in Hindi : (वैयक्तिक विभिन्नताओ का अर्थ एवं स्वरूप) UP Teacher 2017 Study Material Model Paper in Hindi.
प्रक्रति का नियम है की सम्पूर्ण सरकार में कोई भी दो व्यक्ति पूर्णतया एक जैसे नही सकते | उनमे कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य होगी | यहाँ तक की जुड़वाँ बच्चे शक्ल-सुरत से तो हू-ब-हू एक दिख सकते है लेकिन उनके स्वभाव बुद्धि, शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक विकास में पर्याप्त भिन्नता होती है | यह
वैयक्तिक भिन्नता मनुष्यों में ही नही बल्कि जानवरों तक में पाई जाती है | ये वैयक्तिक भिन्नताएँ कई प्रकार की हो सकती है | रंग, रूप, आकार, बुद्धि आदि अनेक बाते वैयक्तिक भिन्नता को स्पष्ट करने में सहायक होती है | प्राचीन काल से ही बालक की आयु न बुद्धि के अनुसार उसे शिक्षा दी जाती है | बालक
जब छोटा होता है, तो उसे सरल बाते सिखाई जाती है जैसे-जैसे वह बड़ा होता होता जाता है उसे कठिन बाते सिखाई जाती है | वर्तमान युग में वैयक्तिक विभिन्नताओ का बहुत महत्त्व है तथा इस प्रत्यय का सबसे पहले प्रयोग फ़्रांसिसी मनोवैज्ञानिक गाल्टन महोदय ने किया | वैयक्तिक विभिन्नताओ से
सम्बन्धित कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार है
स्किनर :- ‘वैयक्तिक विभिन्नताओ से हमारा तात्पर्य व्यक्तित्व के उन सभी पहलुओ से है जिनका मापन व मुल्यांकन किया जा सकता है |”
जेम्स ड्रेवर :- ”कोई व्यक्ति अपने समूह के शारीरिक तथा मानसिक गुणों के औसत से जितनी भिन्नता रखता है, उसे वैयक्तिक भिन्नता कहते है |”
टॉयलर :- ”शरीर के रूप में रंग, आकार, कार्य, गति, बुद्धि, ज्ञान, उप्लब्धि, रूचि, अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली भिन्नता को वैयक्तिक भिन्नता
कहते है |
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वैयक्तिक विभिन्नताएँ (CTET UPTET Study Material 2017, 2018 Practice Set
भाषा के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएँ अन्य कौशलो की तरह ही भाषा भी एक कौशल है | प्रत्येक व्यक्ति में भाषा के विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ पाई जाती है | यह विकास बालक के जन्म के बाद ही प्रारम्भ हो जाता है | अनुकरण, वातावरण के साथ अनुक्रिया तथा शारीरिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओ की पूर्ति की माँग इसके विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है | इसका विकास धीरे-धीरे परन्तु एक निश्चित क्रम में होता है | अधिगमकर्ता के लिए भाषा कौशल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है | यदि भाषा का सम्प्रेष्ण उचित नही होता है तो अधिगम पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है |
लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :- स्त्रियों और पुरुषो में भी वैयक्तिक विभिन्नता देखने में आती है | स्त्रियाँ कोमलांगी होती है, परन्तु सीखने के बहुत-से क्षेत्रो में बालको और बालिकाओ की क्षमता में बहुत अन्तर नही होता है | लिंग-सम्बन्धी अन्तर के सम्बन्ध में किए गये अन्वेषण अभी विश्वासी
परिणाम नही देते है | अत: इस सम्बन्ध में पूर्ण विश्वास के साथ कुछ नही कहा जा सकता |
वर्तमान बुद्धि :- परीक्षणों के आधार पर यह विश्वास किया जाता है की दोनों लिंगो के औसत अंक लगभग समान ही होंगे, किन्तु यह भी देखा गया है की विभिन्नताओ का फैलाब दोनों लिंगो में विभिन्न होता है | बुद्धि परीक्षाओ पर कुल अंको में जो दोनों लिंग प्राप्त करे है, यधापी समानता होती है, किन्तु यह
समानता परीक्षा के विभिन्न भागो पर हो, ऐसा नही है | यह लगभग सामन्य रूप से देखा गया है की भाषा भाग पर लडकियों के प्राप्तांक लडको के प्राप्तांको से अधिक होते है और लडको के प्राप्तांक गणित वाले भाग पर अधिक होते है | स्मुति के परीक्षणों में लडकियाँ अधिक प्रतांक पाप्त करती है | इसी प्रकार
समान्य ज्ञानोपार्जन में प्राथमिक स्तर पर अधिकतर यही पाया गया है की बालिकाओ का स्तर बालको से अधिक उच्च था | इस सम्बन्ध में फिफ्र का अध्ययन महत्वपूर्ण है | पाली महोदय का तो यह कहना है की बालको की शिक्षा बालिकाओ की शिक्षा प्रारम्भ करने के 6 माह उपरान्त प्रारम्भ करनी चाहिये |
बालको के निम्न स्तर का कारण उनमे हकलाना तथा अन्य दोषी का होना दिया जाता है | बालिकाओ की श्रेष्ठता का कारण वास्तव में उनका भाषा पर अधिकार होता है | वह बालको से भाषा में श्रेष्ठता बहुत कम आयु से प्रकट करने लगती है | वह उससे पहले बाते करने लगती है और स्पष्ट बोलती है | विधालय में आने पर बालको का विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान अधिक श्रेष्ठ दिखाई पड़ता है | शीघ्र ही वह गणित में भी श्रेष्ठता प्राप्त कर लेता है |
कार्टर :- महोदय के अध्ययन बताते है की बालिकाओ को अध्यापक अपने परीक्षणों में उन प्राप्तांको से अधिक अंक प्रदान करते है जो एक प्रमापिकरण किये हुए ज्ञानोपार्जन परीक्षण पर प्राप्त करेंगे | बालको को अध्यापक अपने परीक्षणों में तुलनात्मक कम अंक प्रदान करते है |
समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :- व्यक्तियों में स्पष्ट रूप से सामाजिक विकास में विभिन्नता पाई जाती है | यह विभिन्नता जब बालक एक ही वर्ष का होता है तभी से द्रष्टिगोचर होने लगती है | कुछ बालक इतने भीरु होते है की जैसे ही किसी दुसरे परिवार का सदस्य आता है वे अपना मुँह छुपा लेते है परन्तु दुसरे प्रकार के बालक उसकी और बिना झिझक के बढ़ जाते है | व्यक्तिगत बालक में चेहरे के भाव को समझने की योग्यता होती है | बालक पढ़ने में भी विभिन्नता प्रकट करते है | उनकी लड़ाईयां मौखिक गाली-गलौच से लेकर मारपीट, नोंच-खसोट, काटना आदि तक होती है | बालको में अपने मित्र बनाने के सम्बन्ध में भी विभिन्नता पाई जाती है | मैरडिथ के अध्ययन के आधार पर केवल यही कहा कहा जा सकता है की सामन्य रूप से उन परिवारों के बालक स्वस्थ एवं विकसित होते है जो सामाजिक स्तर से ऊँचे होते है | बहुत-से शारीरिक दोष, जैसे-टेढ़े दांत, लंगडाना, क्षय रोग इत्यादि निम्न आय वाले परिवारों के बालको में अधिक पाए जाते है |
अच्छे परिवार के बालक न केवल स्वास्थ्य में ही श्रेष्ठता लिए होते है वरन बुद्धि एवं ज्ञानोपार्जन में भी उत्तम होते है | टरमैन एवं मैरिल (Terman and Merill) के अनुसार, जो बालक उच्च व्यवसाय वाले माता-पिता की सन्तान होते है, उनकी बुद्धि-लब्धि 10 से 15 साल के बीच 118 होती है, जबकि क्लर्की पेशे वाले समूह के बालको की बुद्धि-लब्धि 107 होती है और मजदूरों के बालको की केवल 97 | यहाँ यह कह देना भी आवश्यक प्रतीत होता है की यधापी आर्थिक-सामजिक स्तर तथा बुद्धि-लब्धि का सम्बन्ध तो है, किन्तु यह बहुत उच्च स्तर का नही है |
सह-सम्बन्ध के आधार पर यह .3 या .4 ही पाया गया है | निम्न स्तर के आर्थिक एवं सामाजिक समूह में अनेक उच्च बुद्धि-लब्धि वाले बालक पाए जाते है और उच्च स्तर के आर्थिक एवं सामाजिक समूह में निम्न बुद्धि-लब्धि वाले बालक पाए जाते है | इसके अतिरिक्त, क्योकि साधारण आर्थिक, सामजिक समूह में व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है, इसलिए संख्या के आधार पर उच्च बुद्धि के बालको की संख्या इस समूह में अधिक होगी | एक और बात ध्यान देने की है की उन परिवारों में जिनमे दो भाषाएँ बोली जाती है या जिनके घर में बोली जाने वाली भाषा समाज में बोली भाषा से भिन्न होती है, के बालको के प्राप्तांक निम्न होते है |
संवेग के आधार पर व्यक्तिक विभिन्नता :- संवेगात्मक विकास विभिन्न बालको में विभिन्नता लिए हुए होता है जबकि यह भी सत्य है की मोटे रूप से संवेगात्मक विशेषताएं बालको में समान रूप से पाई जाती है | हमारे कहने का तात्पर्य यह है की क्रोध का संवेग प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा अनुभव होता है | इसी प्रकार कुछ व्यक्ति सरल और कुछ कठोर कुछ दु:खी और कुछ प्रसन्नचित्त रहते है | संयोगात्मक विभिन्नताओ को संवेगात्मक परीक्षणों द्वारा मापा जा सकता है |
विशिष्ट योग्यताओ के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :- विशिष्ट योग्यताओ की द्रष्टि से भी व्यक्तियों में भिन्नता पाई जाती है | कुछ बालक कला में तो कुछ विज्ञान में, कुछ इतिहास में तो कुछ भूगोल में और कुछ गणित में अधिक योग्य होते है | यह उल्लेखनीय है की सभी व्यक्तियों में विशिष्ट योग्यताएँ न्ही
होती है और जिनमे होती है उनमे मात्रा में अन्तर अवश्य होता है | उदाहरणार्थ, सभी खिलाडी एक स्तर के नही होते है, इसी प्रकार न तो सभी डॉक्टर एक जैसे होते है और न सभी अभियन्ता ही एक स्तर के होते है | व्यक्ति की विशिष्ट योग्यताओ को जानने के लिए विशिष्ट परीक्षाओ का प्रयोग करते है |
शारीरिक विकास के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :- शारीरिक द्रष्टि से व्यक्तियों में अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ देखने को मिलती है | यह भिन्नता रंग, रूप, भार, कद, शारीरिक गठन, यौन-भेद, शारीरिक परिपक्वता आदि के कारण होती है | कुछ व्यक्ति, काले गोरे, कुछ लम्बे, कुछ नाटे, कुछ मोटे, कुछ दुबले,
कुछ सुंदर और कुछ कुरूप होते है | इस प्रकार का वक्र बुद्धि-लब्धि के अनुसार बालको के विभाजन के सम्बन्ध में आता है | इससे तात्पर्य यह है की 68.26% बालक औसत के आस-पास होंगे, 2.15% लगभग निम्न बुद्धि के और 2.15% लगभग उच्च-बुद्धि के बालक किसी भी कक्षा में होंगे | अध्यापक का कर्तव्य है
की बालको द्वारा कार्य सम्पादन कराने में उनके शारीरिक विकास को ध्यान में रखे | बालको में यदि शारीरिक भिन्नता मध्यमान से बहुत अधिक हो तो ऐसे बालको को उचित निर्देशन दे |
अभिवृत्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :- अभिवृत्ति से तात्पर्य है-एक सामन्य स्ववृत्ति जो एक समूह अथवा एक संस्था के प्रति होती है | व्यक्तियों के विभिन्न संस्था या समूह के सम्बन्ध में विभिन्न रुझान होते है | कुछ व्यक्ति शिक्षा या प्रति अभिवृत्ति बुद्धि के स्तर पर निर्भर नही है | यह घर के वातावरण
पर बहुत अधिक निर्भर रहती है | यदि माता-पिता के शिक्षा की और झुकाव आचे तथा उचित है तो बालको के झुकाव भी उसी प्रकार विकसित होंगे | भारत के ग्राम निवासी शिक्षा की और से उदासीन रहते है और यह उनकी अशिक्षा का एक बहुत बड़ा कारण है | बालको की अधिकारियो के प्रति अभिवृत्ति विभिन्नताएँ
लिए होती है | यह अभिवृत्ति बाल्यकाल में ही बालक सीख लेता है | अधिकारियो के प्रति अभिवृत्ति में अन्तर घर के वातावरण के कारण भी हो सकता है | एक अच्छा शिक्षक उचित प्रकार से अभिवृत्ति को बालको में विकसित कर सकता है |
व्यक्तित्व के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :- प्रत्येक व्यक्ति और बालक के व्यक्तित्व में कुछ न कुछ विभिन्नता अवश्य पाई जाती है | कुछ लोग अन्त्मुर्खी होते है और कुछ बहिमुर्खी | एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति से मिलने पर उसकी योग्यता से प्रभावित हो या न हो परन्तु उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए
बिना नही रहता है | यह प्रभाव ऋणात्मक भी हो सकता है और धनात्मक भी हो सकता है | इस सम्बन्ध में टॉयलर ने लिखा है- ”सम्भवत: व्यक्ति, योग्यता की विभिन्नताओ के बजाय व्यक्तित्व की विभिन्नताओ से अधिक प्रभावित होता है |”
गत्यात्मक योग्यताओ के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :- कुछ व्यक्ति किसी कार्य को अधिक कुशलता के साथ और कुछ कम कुशलता के साथ करते है | इसका कारण उनमे गत्यात्मक योग्यताओ में विभिन्नता होती है | इस सम्बन्ध में क्रो और क्रो ने लिखा है- “शारीरिक क्रियाओ में सफल होने की योग्यता में एक समूह के व्यक्तियों में भी बहुत अधिक विभिन्नता होती है |”
वैयक्तिक विभिन्नता के कारण (CTET UPTET 2017 Teachers Study Material
1. वंशानुक्रम :- वंशानुक्रम वैयक्तिक विभिन्नता का प्रमुख कारण है | गर्भाधान के समय ही वंशानुगत विशेषताएँ बच्चे में प्रवेश हो जाती है | इन विशेषताओ में आधी माँ के वंश से तथा आधी पिता के वंश के प्राप्त होती है | इसी प्रकार कुछ गुण बाबा-दादी से, कुछ परदादा-परदादी से तथा कुछ परनाना-परनानी से प्राप्त होते है | इन सभी से कौन से गुण बालक को प्राप्त होंगे यह निश्चित नही होता, यह संयोग पर निर्भर करता है | वंशानुक्रम से बालक को गुण और अवगुण दोनों ही प्राप्त होते है, इसीलिए अच्छे, माँ-बाप की सन्तान भी अच्छी होती है और चोर-डकैत की चोर, क्योकि बिल्ली के बिलोटे ही पैदा होते है | मनोवैज्ञानिक मन ने भी वंशानुक्रम को वैयक्तिक विभिन्नताओ के एक कारक के रूप में स्वीकार किया है | उनके विचार में_”हमारा सबका जीवन एक ही प्रकार आरम्भ होता है | फिर इसका क्या कारण है की जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते है, हममे अन्तर होता जाता है ? इसका कारण यह है की हमारा सबका वंशानुक्रम भिन्न होता है |”
2. वातावरण :- वंशानुक्रम के बाद बालक पर वातावरण का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है | बालक जैसे वातावरण में पलता है उसका व्यक्तित्व भी वैसा बनता है | दो जुड़वाँ बच्चो में से यदि एक का पालन-पोषण झुग्गी-झोपडी में हो और दुसरे का आमिर घराने में, तो उनके व्यक्तित्व में जमीन-आसमान का अन्तर
देखने को मिलेगा | इसी प्रकार एक बालक को साधारण स्कूल में पढ़ाया तथा दुसरे को कॉवेंट स्कूल में, तो भी उनके व्यक्तित्व में बहुत अन्तर आएगा | बालक पर सभी प्रकार के वातावरणों का प्रभाव पड़ता है, जैसे-आर्थिक, सामाजिक संस्कृतिक हष्ट-पुष्ट, मेहनती तथा गोरे रंग के होते है जबकि गर्म वातावरण
के लोग ठिगने, आलसी तथा काले रंग के होते है | इसलिए बुरी संगत में पड़कर आदमी बुरा तथा अच्छी संगत में आदमी अच्छा बन जाता है |
3. जाती, प्रजाति एवं देश :- जाती, प्रजाति एवं देश का भी वैयक्तिक विभिन्नताओ पर पर्याप्त असर पड़ता है | हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई आदि लोगो के आचार-विचार एवं रहन-सहन में पर्याप्त भिन्नता देखने को मिलती है | इसी प्रकार एक क्षत्रिय युवक को साहसी कार्य करने अच्छे लगते है, तो एक बनिये के
पुत्र को व्यापर करना अच्छा लगता है | एक कायस्थ युवक बौद्धिक कार्य करने में रूचि रखता है | ठीक इसी प्रकार विभिन्न राष्ट्रों, जैसे-चीन, भारत, अमेरिका, रूस आदि के लोगो में भी विभिन्नता आसानी से देखी जा सकती है | एक कश्मीरी एक गुजराती से बिलकुल अलग दिखाई देता है |
4. आयु एवं बुद्धि :- बालक की आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ उसका शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक विकास भी होता रहता है | इसी विकास के कारण उनमे वैयक्तिक विभिन्नता आती रहती है | इसीलिए विभिन्न आयु के बालको में अन्तर दिखाई देता है | इसी प्रकार बुद्धि के कारण भी बालको में अन्तर होता है | कुछ बालक तेज बुद्धि के होते है, कुछ सामान्य बुद्धि के और कुछ मन्द बुद्धि के अर्थात सभी बालक समान बुद्धि के नही होते है | आयु में वृद्धि से बालक की रूचि तथा बुद्धि के अन्तर से बालक की शैक्षिक प्रगति में अन्तर देखने को मिलता है |
5. परिपक्वता :- परिपक्वता एक ऐसी स्थिति है जिसमे व्यक्ति किसी कार्य को करने में स्वयं को सक्षम पाता है | सीखने का आधार भी परिपक्वता ही है | मनोवैज्ञानिक के अनुसार-:एक बालक तब तक नही सीख सकता जब तक वह सीखने के लिए तैयार न हो अथवा परिपक्व नही होता | परिपक्वता किशोरावस्था में आती है | यह परिपक्वता कुछ बालको में जल्दी आ जाती है तथा कुछ में देर से आती है |
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