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CTET UPTET Pratihbashali Balk ki Shaishik Vyasthayen Study Material in Hindi

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प्रतिभाशाली बालकों की शैक्षिक व्यवस्थाएँ(Pratihbashali Balk ki Shaishik Vyasthayen Study Material in Hindi)

कक्षा में प्रतिभावान बालकों की उपस्थिति अध्यापकों को लिए बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न कर देती है। अत: ऐसे बालकों के लिए विशेष शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है और अध्यापकों को विशेष प्रशिक्षण की । कुछ प्रमुख शैक्षिक व्यवस्थाओं का वर्णन निम्नलिखित है

  1. अवसरों की समानता अवसरों की समानता से प्रतिभावन बालकों को भी उनकी अपनी योगयताओं या प्रतिभाओं को विकसित करने का अवसर प्रदान करे।
  2. तीव्र पदोन्नति कई मनोवैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री प्रतिभावान बालकों की तीव्र पदोन्नति की सिफारिश करते है। लेकिन यह अमनोवैज्ञानिक बात होगी। ऐसा करने से बालक कक्षा में पहुँच जाते है जिसके अन्य बालक अधक विकसित होते है। तीव्र उन्नति से बालकों का कुसमायोजन होने का डर रहता है। इस प्रकार , तीव्र पदोन्नति का बालको पर विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना रहती है।
  3. पाठ्यक्रम की समृद्धि प्रतिभावान बालक पाठ्यक्रम को समझने में सामान्य बालकों से कम समय लेते है। यह बचा हुआ समय उन्हे किसी और कार्य में व्यस्त करके उपयोग किया जा सकतै है। हैलिंगवर्थ ने पाठ्यक्रम की समृद्धि प्रतिभावान बालक पाठ्यक्रम को समझने में सामान्य बालकों से कम सय लेते है। यह बचा हुआ समय उन्हे किसी और कारय में व्यस्त करके उपयोग किया जा सकता है । हैलिंगवर्थ ने पाठ्यक्रम की समृद्धि के लिए निम्नलिखिक कार्यक्मम बताए है

सभ्यता का अध्ययन

जीवन –गाथाओं का अध्ययन

आधुनिक भाषाओं का अध्ययन

विशेष योग्यताओं का अध्ययन

  1. बुरी सामाजिक आदतों को रोकना यदि प्रतिभावान बालकों की सृजनात्मक शक्ति का उचित प्रयोग नहीं किया जाता तो वे समाज विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित हो सकते है। अत: अध्यापरक को चाहिए कि उनकी शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे वह सामाजिक बुराइयों से दूर रह सकें।

सर्जनात्मक बालक

सर्जनात्मकता या विधायकता (Pratihbashali Balk ki Shaishik Vyasthayen Study Material in Hindi)

अर्थ सर्जनात्मक शब्द अंग्रेजी के क्रियेटिविटी से बना है इस शब्द के सानान्तर विधायकता उत्पादन, रचनात्मकता डिस्कवरी आदि का प्रयोग होता है फादर कामिल बुल्के ने क्रियेटिक शब्द के समानान्तर सर्जनात्मक, रचनात्मक सर्जन शब्द बताए। ड़ॉ. रघुवीर ने इसका अर्थ सर्जन, उत्पन्न करना, सर्जित करना, बनाना बताया है।

परिभाषाएँ

  1. जेम्स ड्रेवर के अनुसार अनिवार्य रुप से किसी नई वस्तु का सर्जन करना ही सर्जनात्मकाता है
  2. रॉबर्ट फ्रास्ट के अनुसार मौलिकता कया ह2 यह मुक्त साहचर्य है जब कविता की पंक्तियां या उसके विचार आपको उद्वलित करते है, साधारणीकरण के लिए बाध्य करते है। यह दो वस्तुओं का सम्बन्ध होता है, परन्तु साहचर्य को देखने की कामना आप नही करते है, आप तो उसका आनन्द उठात है ।

सर्जनात्मकता के तत्व(Pratihbashali Balk ki Shaishik Vyasthayen Study Material in Hindi)

गिलफोर्ड ने सर्जानात्मकता के तत्व निम्न प्रकार के बताएँ है

  1. तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता जो व्यक्ति बर्तमान परिस्थितयों से हटकर, उससे आगे की सोचता है और अपने चिन्तन को मूर्त रुप देता है, उसमें सर्जनात्मक तत्व पाया जाता है।
  2. समस्या की पुनर्व्याख्या सर्जनात्मकता का एक तत्व समस्या की पुनर्व्यख्या है।
  3. सामंजस्य जरो बालक तथा व्यक्ति असामान्य किन्तु प्रसंगिक विचार तथा तथ्यों के सात समन्वय स्थापिक करते है वे सर्जनात्मक कहलाते है
  4. अन्य के विचारों में परिबर्तन ऐसे व्यक्तियों में भी सर्जनात्मकता विद्दामान रहती है, जो तर्क चिन्तन तथा प्रमाण द्वारा दूसरे व्यक्तियों के विचारों में परिवर्तन कर देते है।

सर्जनात्मकता विद्दमान रहती है जो तर्क चिन्तन तथा प्रमाण द्वारा दसरे व्यक्तियों के विचारों में परिवर्तन करदेते है

सर्जनात्मकता के सिद्धान्त

  1. मनोविश्लेषाणात्मक
  2. साहचर्यवाद
  3. अन्त:दृष्टिवाद
  4. अस्तित्ववाद

सर्जनात्मकता की पहचान

सर्जनात्मकता की पहचान करना शिक्षक के लिए अत्यन त आवश्यक है। सर्जनात्मक बालकों की पहचान इस प्रका की जा सकती है ।

  1. सर्जनशील बालकों में मौलिकता के दर्शन होते हैं। सर्जनशील बालकों का दृष्टिकोण सामान्य व्यक्तियों से अलग होता है।
  2. स्वतन्त्र निर्णय क्षमता सर्जनशीलता की पहचान है। जो व्यक्ति किसी समस्या के प्रति निर्णय लेनें में स्वतन्त्र होता हैं तो वह सर्जनात्मक समझा जाता है।
  3. परिहासप्रियता भी सर्जनात्मकता की पहचान है। सर्जनात्मक बालकों में हँसी मजाक की प्रवृत्ति पाई जाती है।
  4. उत्सुकता भी सर्जनात्मकता का एक आवश्यक तत्व है। सर्जनशील बालकों में संवेदनशीलता अधिक पाई जाती है।
  5. सर्जनशील बालकों में संवेदनशीलता अधिक पाई जाती है।
  6. सर्जनशील बालकों में स्वयात्तता का भाव पाया जाता है।

सर्जनात्मक के परीक्षण(Pratihbashali Balk ki Shaishik Vyasthayen Study Material in Hindi)

सर्जनात्मकता की पहचान के लिए निरन्तरता (Fluency),  लोचनीयता (Flexibility),  मौलिकता (Originality)  तथा विस्तार (Dlaboration) का मापन एवं परीक्षण किया जाता है प्रमुख परीक्षण इस प्रकार है

  1. चित्रपूर्ति परीक्षण चित्रपूर्ति परीक्षण में अपूर्ण चित्रों को पूरा करना पड़ता है।
  2. प्रोडक्ट इम्प्रूवमैन्ट टास्क चूने के खिलौने द्वारा नूतन विचारों को लेखबद्ध करके सर्जानात्मकता पर बाल दिया जाता है।
  3. पृत्त परीक्षण इस परीक्षण में वृत्त में चित्र बनाए जाते है।
  4. टीन के डिब्बे खाली डिब्बों से नवीन वस्तुओं का सर्जन कराया जाता है।

सर्जनात्मक का विकास

शिक्षक को चाहिए कि बालकों में सर्जनात्मक का विकास करिने के लिए निम्नलिखित उपाय करें

  1. तथ्यों का अधिगम समस्या को हल करनें में कौन- कौन से तथ्यों को सिखाया जाए, शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
  2. मौलिकता शिक्षक को चाहिए कि वह तथ्यों के आधार पर मौलिकता के दर्शन कराए।
  3. मूल्यांकन बालकों में अपना मूल्यांकन स्वयं करने की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए।
  4. जाँच बालकों में जाँच करने की कुशलात का अर्जन कराया जाए।
  5. समस्या के स्तरों की पहचान समस्या के स्तरों को पहचानकर उसे दूस करना चाहिए।
  6. पाठ्य- सहगामी क्रियाएँ विद्दालय में बुलेटिन बोर्ड. मैगजीन, पुस्तकालय, बाद विवाद, खेलकूद, स्काउटिगं एन सी सी आदि क्रियाओं द्वारा नवीन उद्भावनाओं का विकास करना चाहिए।

विशिष्ट बालक(Pratihbashali Balk ki Shaishik Vyasthayen Study Material in Hindi)

एसे बालक जो अपनी योग्यताओं क्षमताओं व्यक्तित्व अथवा व्यवहार के कारण अपनी आयु के अन्य औसत अथवा सामान्य बालकों से भिन्न होते है । विशिष्ट बालकों में पिछडें बालक समस्यात्मक बालक आदि शामिल है।

पिछड़े बालक जो बालक कक्षा का औसत क्रय नही कर पाता है और क्क्षा के औसत बालकों से पीछे रहता है, उसे प्छड़ा बालक कहते है पिछडे बालक का मन्दबुद्धि होना आवश्यक नही है। पिछड़ेपन के अनेक कारण है, जिनमें से मन्दबुद्धि होना एक है। यदि प्रतिभाशाली बालक की शैक्षिक योग्यता अपनी आयु के बालकों से कम है, तो उसे भी पिछड़ा बालक कहा जाता है। सिरिल बर्ट के अनुसार पिछड़ा बालक वह है, जो विद्दालय जीवन के मध्य में (अर्थात् लगभग 10 ½ वर्ष की आयु में, अपनी कक्षा से नीचे की कक्षा के उस कार्य को न कर सके जो उसकी आयु के बालकों के लिए सामानय् कार्य है।

पिछड़े बालकों को शैक्षणिक उपलब्धि (Educational Quotient) या शिक्षा अंक के आधार पर भी परिक्षाषित किया गाया है। बर्ट (Burt)  के अनुसार ऐसे बालक जिनकी 85से कम शैक्षणिक उपलब्धि (E. Q) का अर्थ है कि विद्दार्थियों का स्कूली विषयों का ज्ञान उनकी आयु के स्तर के अनुसार है या नहीं।

पिछड़े बालक की विशेषताएँ पिछड़े बालक की कुछ प्रमुख विशेषताएँ होती है। जो निम्नवत् है

  1. सीखने की धीमी गति।
  2. जीवन में निराशा का अनुभव
  3. समाज- विरोधी कार्यों की प्रवृति
  4. व्यवहार –सम्बन्धी समस्याओं की अभिवयक्ति।
  5. जन्मजात योगयाताओं की तुलना में कम शैक्षिक उपलब्धि।
  6. सामानय् विद्दालय के पाठ्यक्रम से लाभ उठाने में असमर्थता
  7. सामान्य शिक्षक विधियों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने में विफलता
  8. मन्द बुद्धि सामान्य बुद्धि या अति श्रेष्ठ बुद्धि का प्रमाण
  9. मानसिक रुप से अस्वस्थ और असमायोजित व्यवहार
  10. बुद्धि परीक्षाओं में निम्न बुद्धि लब्धि (90 से 110 तक )।
  11. विद्दालय –कार्य में सामानय् बालकों के समान प्रगति करने की अयोग्यता।
  12. अपनी और उससे नीचे की कक्षा का कारय करने में असमर्थता।

पिछड़े बालकों की पहचान(Pratihbashali Balk ki Shaishik Vyasthayen Study Material in Hindi)

सामूहिक परीक्षण Group Test  कक्षा में पिछड़ेपन का पता लगाना हो तो सभी बच्चों को सामूहिक परीक्षण देना चाहिए सामूहिक परीक्षणों में बुद्धि के परीक्षण देकर कक्षा के विद्दार्थियों की बुद्धि लब्धि I.Q. देखी जा सकती है।

उपलब्धि परीक्षण विद्दार्थियों की शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धि जानने के लिए विशेष रुप से तैयार किए गए बस्तुनिष्ठ परीक्षण  objective Type Tests देने चाहिए। इनके परिणामोंके आधार पर पिछड़ेपन का पता चल जाएगा।

व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण सामूहिक परीक्षण के आधार पर चुने हुए बच्चों को बुद्धि से सम्बन्धित व्यक्तिगत परीक्षण भी देने चाहिए ससे भी उनके बुद्धि स्तर का ज्ञान हो सकता है।

इसी प्रकार मानसिक रुप से पिछड़े या मन्द बुद्धि विद्दार्थियों की पहचान भी की जा सकती है।

समस्यात्मक बालक समस्यात्मक बालक उस बालक को कहते है, जिसके व्यवहार में कौई ऐसी असामानय बात होती है, जिसके कारण वह समस्या बन जाती है, जैसे –चोरी करना, झूठ बोलना आदि।

समस्यात्मक बालक का अरथ स्पष्ट करते हुए वेलेन्टाइन ने लिखा है- समस्यातमक बाकों शब्ध का प्रयोग है जिनका व्यवहार या व्यक्तित्व किसी बात में गम्भीर रुप से असामान्य होता है।

समस्यातमक बालकों के प्रकार

समस्यात्मक बालकों की सूची बहुत लम्बी है इनमें से कुछ मुख्य प्रकार के बाल है चोरी करने वाले झूठ बोलने वाले क्रोछ करने वाले एकान्त पसन्द करने बाल , मित्र बनाना पसन्द न  करने वला , आक्रमाणकारी व्यवहार करने वाले विद्दाललय से भाग जाने वाले भयभीत रहने वाले छोटे  बालकों को तंग करने वाले गृह कार्य न करने वाले कक्षा में देस से आने वाले आदि । हम इनमें से प्रथम तीन का वर्णन कर रहै है।

  1. चोरी करने वाले बालक ऐसे बच्चे जो किसी लालच में आकर पहले छोटी –मोटी चोरियाँ करते है। बाद में यह उनकी एक आदत बन जाती है इसके निम्न कारण हो सकते है।
  2. अज्ञानता छोटा बालक, अज्ञानता के कारण चोरी करता है। वह यह नही जानता है कि जो वस्तु जिसके पास है, उसी का उस पर उचित अधिकार है।
  3. अन्य विधि से अपरिचित कोई बालक इसलिए चोरी करता है, क्योंकि उसे वांछित वस्तु को प्राप्त करने की और कौई विधि नही मालूम होती है।
  4. उच्च स्थिति की इच्छा किसी बड़े बालक में अपने समूह में अपनी उच्च स्थिति वयक्त करने की प्रबल लालसा होती है। अपनी इस लालसा को पूरा करने के लिए वह धन, वस्त्र और अन्य वस्तुओं की चोरी करता है।
  • माता पिता की अवहेलना स्ट्रैग (Strang) के अनुसार, जिस बालक को अपने माता पिता के द्वारा अवहेलना की जाती है, बह उनकों समाज में अपमानित करने के लिए चोरी करने लगता है।
  1. साहस दिखाने की भावना किसी बालक में दूसरे बालकों को यह दिखाने की प्रबल भावना होती है कि वह उनसे अदिक साहसी है। यह इस बात का प्रमाण चोरी करके देता है।
  2. आत्म –नियन्त्रण का अभाव बालक, आत्म –नियन्त्रण के अभाव के कारण चोरी करने लगता है। उसे जो भी वस्तु अच्छी लगती है, उसी को बह चुरा लेता है या चुराने का प्रयत्न करता है।
  3. चोरी की लत किसी किसी बालक में चोरी की लत (kleptomania) होती है। वह अकारण ही विभिन्न प्रकार की वस्तओं की चोरी करता है। स्ट्रैंग (Strang) ने अपने एक बालक का उल्लेख किया है, जिसने 23 पेटियों (Belts)की चोरी की थी।
  • आवश्यकताओं की अपूर्ति जिस बालक की आवश्यकताएँ नही हो पाती हैं, बह उनको चोरी करके पूर्ण करता है। यदि बालक को विद्दालय में खाने पीने के लिए पैसे नही मिलते हे तो वह उनको घर से चुरा ले जाता है।

चोरी करने वाले बालकों के उपचार हैतु आवशय्क कदम एक शिक्षक तथा अभिभावकों के लिए चोरी करने वाले बालकों की यह बुरी आदत छुड़ाने के लिए कुछ अनिवार्य सुझाव निम्नवत् हैं

  1. बालक पर चोरी का दोष कभी नही लगाना चाहिए।
  2. बालक में आत्म नियन्त्रण की भावना का विकास करना चाहिए।
  3. बालक को उचित और अनुचित कार्यो में अन्तर बताना चाहिए
  4. बालक की उसके माता प्ता द्वारा अवहेलाना नही की जानी चाहिए।
  5. बालक की सभी उचित आवश्यकतओं को पूरा करना चाहिए ।
  6. बालक को विद्दालय में व्यय करने के लिए कुछ धन अवश्य देना चाहिए।
  7. बालक को खेलकूद और अन्य कार्यो मे अपनी साहस की भावना को व्ययक्त करने का अवसर देना चाहिए।
  8. बालक को यह शिक्षा देनी चाहिए कि जो वस्तु जिसकी है, उस पर उसी का अधिकार है। दूसरे शब्दों में, उसको अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान करने की शिक्षा देनी चाहिए।
  9. झूठ बोलने वाला बालक झूठ बोलने वाले बालकों में झूठ वोलने के अनेक कारण हो सकते है, जो निम्नवत् हैं
  10. मनोविनोद बालक कभी कभी केवल मनोविनोद या मजा लेने के लि झूठ बोलता है।
  11. दुविधा बालक कभी कभी किसी बात को स्पष्ट रुप से न समझ सकने के कारण दुविधा में पड़ जाता है र अनायास झूठ बोल जाता है ।
  • मिथ्याभिमान किसी बालक में मिथ्याभिमान की भावना बहुत बलवती होता है। अत: वह उसे व्यक्त और सन्तुष्ट करने के लिए झूठ बोलता है। वह अपने साथियों को अपने बारें में ऐसी ऐसी बाते सुनाता है, जो उसने कभी नही की है।
  1. प्रतिशोध बालक चअपने बैरी से बदला लेने के लिए उसके बारे में झूठी बाते फैलाकर उसको बदनाम करने की चेष्टा करता है।
  2. स्वार्थ बालक कभी कभी अपने स्वार्थो के कारण झूठ बोलता है यदा बह गृह कार्य करके नही लाया है तो बह दण्ड से बचने के लिय कह देता है कि उसे अकस्मात् पैचिश हो गई थी।
  3. वफादारी कोई बालक अपने मित्र, समूह आति के प्रति इतना वफादार होता है कि वह झूठ बोलने में तनिक भी संकोच नही करता है। यदि सके मित्र की तोड़ फोड़ करने की प्रधानाचार्य से शिखायत होती है, तो वह इस बात की झूठी गवाही देता है कि उसका मित्र तोड़- फोड़ के स्थान प्र मौजूद नही था।
  • भय भय, जिसके कारण बालक झूठ बोलता है, अनेक प्रकार का हो सकता है जैसे – कठोर दण्ड का भय, कक्षा या समूह में प्रतिष्ठा खोने का भय, किसी पद से वंचित किए जाने का भय इत्यादि। स्ट्रैग के शब्दों में भय अनेक बालकों की झूटी बातों का मूल कारण होता है।

झूठ बोलने वाले बालकों हैतु आवश्यक पाय बालक की झूठ बोलने की दत को छूड़ाने के लिए निम्नांकित उपयों को काम में लाय जा सकता है

  1. बालकों को यह बताना चाहीए कि झूठ बोलने से कोई लाभ नही होता है .
  2. बालक में नैतिक साहस की भावना का अधिकतम विकास करने का प्रयन्त करना चाहिए
  3. बालक में सोच विचार कर बोलने की आदत का निर्माण करना चाहिए
  4. बालक से बात न करके, उसकी अवहेलना करके, और उसके प्रति उदासीन रह कर उसे अप्रत्यक्ष दण्ड देना चाहिए।
  5. बालक को ऐसी संगित और बातावरण मं रखना चाहिए, जिससे उसे झूठ बोलने का अवसर न मिल
  6. बालक से उसका अपराध स्वीकार करवा कर उससे फिर कभी झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा करवानी चाहिए।
  7. बालक की आत्म-सम्मान की भावना को इतना प्रबल बना देना चाहिए कि वह झूठ बोलने के कारण अपना अपनान सहन न कर सके
  8. सत्य बोलने वाले बालक की निर्भयता और नैतिक साहस की प्रशंसा करनी चाहिए

3.क्रोध करने वाला बालक क्रोध व आक्रमणकारी व्यवहार साधारणत: क्रोध और आक्रमणकारी व्यवहार का साथ होता है। क्रो एवं क्रो का कथन है क्रोध – आक्रमणकारी व्यवहार द्वारा व्यक्त किया जाता है

क्रुद्ध बालक के आक्रमणकारी व्यवहार के कुछ मुख्य स्वरुप है मारना, काटना, नोचना, चिल्लाना, खरोचना, तोड़ फोड करना, स्वयं अपने शरीर को किसी प्रकार की क्षति पहुँचाना इत्यादि।

क्रोछ आने के कारण बालक को क्रोध आने के अनेक कारण हो सकते है, जो मिम्नवत् हैं

  1. बालक के किसी उददेश्य की प्राप्ति में बाधा पड़ना
  2. बालक में किसी के प्रति ईर्ष्या होना।
  3. बालक के खेल, कार्य या इच्छा में विघ्न पड़ना
  4. बालक को सिसी विशेष स्थान को जाने से रोकना।
  5. बालक की किसी वस्तु का छीन लिया जाना
  6. बालक को किसी विशेष स्थान को जाने से रोकना।
  7. बालक का किसी बात में निराश होना।
  8. बालक का अस्वस्थ या रोगग्रस्त होना
  9. बालक का किसी कार्य को करने मेंअसमर्थ होना।
  10. बालक के कार्य व्यवहार आदि में निरन्तर दोष निकाला जाना
  11. बालक पर अपने माता या पिता के क्रोधी स्वभाव का प्रभाव पड़ना

क्रोध करने वाले बालकों हैतु उछाए जाने वाले आवश्यक उपाए बालक को क्रोध के दुर्गण से मुक्त करने के लिए निम्नलिखित उपयों का प्योग किया जा सकता है

  1. बालक क रोग का उपचार और स्वास्थ्य में सुधार करना चाहिए
  2. बालक को अपने क्रोध पर नियन्त्रण करने की शिक्षा देनी चाहिए
  3. बालक को जिस बात पर क्रोध आए स पर स उसके ध्यान को हटा देना चाहिए।
  4. बालक को केवल अनुचित बातों के प्रति क्रोध व्यक्त करने का परामर्श देना चाहिए
  5. बालक के क्रोध व्यक्त करके नहीं, वरन् शान्ति से शान्त करना चाहिए
  6. बालक के क्रोध को दण्ड और कठोरता का प्रयोग करके दमन नही करना चाहिए। क्योकि ऐसा करने से उसका क्रोध और बढता है।
  7. बालक के खेल, कार्य आदि में बिना आवश्यकता के बाधा नही डालनी चाहिए।
  8. बालक की ईर्ष्या की भावना को सहयोग की भावना में बदलने का प्रयास करना चाहिए।
  9. बालक के कार्य, व्यवहार आदि में अकारण दोष नही निकालना चाहिए।
  10. जब बालक का क्रोध शान्त हो जाए, तब उससे तर्क करके उसे यह विश्वास दिलाना चाहिए कि उसका क्रोध अनुचित था।

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