SSC CGL TIER 1 Pawan Wind Study Material In Hindii
पवनें (SSC CGL TIER 1 Pawan Wind Study Material In Hindi 🙂
पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब में क्षैतिज विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती है। क्षैतिज रुप से इस गतिशील हवा को पवन कहते हैं। पवन कई कारणों के प्रभावाधीन अपनी दिशा में परिवर्तन करती हुई चलती है। ये कारण हैं: दाब प्रवणता बल, कॉरिआलिस प्रभाव, अभिकेन्द्रीय त्वरण एवं भू–घर्षण।
कॉरिआलिस प्रभाव पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें अपनी मूल दिशा में विक्षेपित हो जाती हैं इसे कॉरिआलिस बल कहते हैं।
चक्रवात केन्द्र में कम दाब की स्थापना होने पर दाब बढ़ता जाता है। इस अवस्था में हवाएँ बाहर से भीतर की ओर चलती है। चक्रवात में वायु की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में सुई की दिशा में होती है।
प्रतिचक्रवात जब केन्द्र में दाब अधिक होता है, तो केन्द्र से हवाएँ बाहर की ओर चलती हैं। प्रति चक्रवात में वायु की दिशा चक्रवात के बिलकुल विपरीत होती है।
फेरेल का नियम इसे ‘बाइज–बैलेट’ नियम द्वारा समझा जा सकता है। इसके अनुसार “यदि कोई व्यक्ति उत्तरी गोलार्द्ध में पवन की ओर पीठ करके खड़ा हो, तो उच्च दाब दाईं ओर तथा निम्न दाब उसके बाईं ओर होगा”।
SSC CGL TIER-1 Types Of Winds Study Material In Hindi
पवन निम्न तीन प्रकार की होती हैं 1. प्रचलित पवन 2. मौसमी पवन 3. स्थानीय पवन
पवनों के प्रकार
प्रचलित पवन एक ही दिशा में वर्ष भर चलने वाली पवन को प्रचलित या स्थायी पवन कहते हैं। इसके उदाहरण हैं– पछुआ पवन, व्यापारिक पवन और ध्रुवीय पवन।
- दोनों गोलार्द्धों में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्धों की ओर चलने वाली स्थायी हवा को, इनकी पश्चिम दिशा के कारण, पछुआ पवन कहा जाता है। पछुआ पवन का सर्वश्रेष्ठ विकास 400 से 650 दक्षिण अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। यहाँ के इन अक्षाशों को गरजता चालीसा, प्रचण्ड पचासा व चीखता साठा कहते हैं।
- लगभग 300 उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के क्षेत्रों या उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्धों की ओर दोनों गोलार्द्धों में वर्ष भर निरन्तर प्रवाहित होने वाली पवन को व्यापारिक पवन कहा जाता है।
भूविक्षेपी पवन
पृथ्वी की सतह से 2–3 किमी की ऊँचाई पर ऊपरी वायुमण्डल में पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती हैं और दाब प्रवणता तथा कोरिऑलिस बल से नियन्त्रित होती हैं। जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव ना हो, तो दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से सन्तुलित हो जाता है और फलस्वरुप पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर बहती हैं। ये पवनें भूविक्षेपी पवनों के नाम से जानी जाती हैं।
ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियों की ओर प्रवाहित पवन को ध्रुवीय पवन के नाम से जाना जाता है।
मौसमी पवन मौसम या समय के परिवर्तन के साथ जिन पवनों की दिशा बदल जाती हैं, उन्हें मौसमी पवन कहा जाता है; जैसे—मानसूनी पवन, स्थल समीर तथा समुद्री समीर।
विश्व की प्रमुख स्थानीय पवनें
World’s Important Local Winds For SSC CGL TIER-1 Study Material
नाम स्थान
चिनूक संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा में रॉकी पर्वत श्रेणी
फॉन आल्पस पर्वत के उत्तरी ढाल तथा स्विटजरलैण्ड
सिरॉको सहारा मरुस्थल से भूमध्य सागर
सिमूम अरब रेगिस्तान
ब्रिक फील्डर ऑस्टेलिया के विक्टोरिया प्रान्त
नारवेस्टर न्यूजीलैण्ड
साण्टा आना दक्षिणी कैलीफोर्निया
बाग्यो फिलीपींस द्वीप समूह
लू उत्तरी भारत
विलीवाव अलास्का
बोरा एड्रियाटिक तट
मिस्ट्रल स्पेन एवं फ्रांस
बूरान रुस
पैम्पीरो अर्जेण्टीना
मैस्ट्रेल उत्तरी इटली
विली–विली ऑस्ट्रेलिया
हबूब सूडान
पूर्गा टुण्ड्रा प्रदेश
स्थानीय पवनें किसी स्थान विशेष में प्रचलित हवाओं विपरीत चलने वाली विशेष प्रकार की हवाओं को स्थानीय पवन कहा जाता है। इन पवनों का सम्बन्ध क्षोभमण्डल की निचली परतों तक ही सीमित रहता है।
सिरॉको सहारा मरुस्थल में बहने वाली गर्म हवा है इसके अन्य स्थानीय नाम है:
खमसिन — मिस्त्र
गिबली — लीबिया
चिली — ट्यूनिशिया
लेस्ट — मैड्रिया
सिरॉको — इटली
लेबेक — स्पेन
जेट प्रवाह क्षोभमण्डल की ऊपरी परत में बहुत तीव्र चलने वाले सँकरे, नलिकाकार एवं विसर्पी पवन–प्रवाह को जेट प्रवाह कहते हैं। यह 6 किमी से 12 किमी की ऊँचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होता है। यह दोनों गोलार्द्धों में पाया जाता है। परन्तु उत्तरी गोलार्द्ध में यह अधिक शक्तिशाली होता है। इसमें वायु 120 किमी/घण्टा की चाल से चलती है। जेट प्रवाह वायुमण्डलीय विक्षोभों, चक्रवातों, प्रतिचक्रवातों, तूफानों और वर्षा को उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।
वायु राशियाँ वायुमण्डल का वह विशाल एवं विस्तृत भाग जिसमें तापमान तथा आर्द्रता के भौतिक लक्षण क्षैतिज दिशा में समरुप हों, वायु राशि कहलाता है। वायु राशियाँ जलवायु तथा मौसम के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
वाताग्र दो विभिन्न प्रकार की वायुराशियाँ सुगमता से आपस में मिश्रित नहीं होतीं और तापमान तथा आर्द्रता सम्बन्धी अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास करती हैं। इस प्रकार दो विभिन्न वायुराशियाँ एक सीमातल द्वारा अलग रहती हैं। इस सीमातल को ही वाताग्र कहते हैं। जब गर्म वायु हल्की होने के कारण ठण्डी तथा भारी वायु के ऊपर चढ़ जाती है तो उसे ‘उष्ण वाताग्र’ तथा जब ठण्डी तथा भारी वायु उष्ण तथा हल्की वायु राशि के विरुद्ध आगे बढ़ती है, जो उसे ऊपर उठा देती है तब उसे ‘शीत वाताग्र’ कहते हैं।
आर्द्रता वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प को वायुमण्डल की आर्द्रता कहते हैं।
यह तीन प्रकार की होती है
- निरपेक्ष आर्द्रता वायु की प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं, इसे ग्राम/घन मी में व्यक्त करते हैं।
- विशिष्ट आर्द्रता वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं, इसे ग्राम/किग्रा में मापते हैं।
- सापेक्ष आर्द्रता किसी भी तापमान पर वायु में उपस्थित जलवाष्प तथा उसी तापमान पर उसी वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। संतृप्त वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100% होती है।
संघनन जल की गैसीय अवस्था के तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होने की क्रिया को संघनन कहते हैं।
यह दो कारकों पर निर्भर करता हैं।
1.तापमान में कमी 2. वायु की सापेक्ष आर्द्रता
ओसांक वायु के जिस तापमान पर जल अपनी गैसीय अवस्था से तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होता है, उसे ओसांक कहते हैं। ओसांक पर वायु संतृप्त हो जाती है।
पाला या तुषार जब ओसांक, हिमांक से नीचे होता है तब ओस के स्थान पर पाला पड़ता है।
कोहरा वायुमण्डल की निचली परतों में एकत्रित धूल-कण, धुएँ के रज एवं संघनित जल-पिण्डों को कोहरा कहते हैं।
धुन्ध हल्के-फुल्के कोहरे को कुहासा या धुन्ध कहते हैं। इनमें दृश्यता 1 किमी से कम होती है।
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