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SSC CGL TIER 1 Satellite Study Material In Hindi

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उपग्रह

SSC CGL TIER 1 Satellite Study Material In Hindi
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किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिण्ड को उस ग्रह का उपग्रह कहते हैं।

  • चन्द्रमा, पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है, जबकि INSAT-B, पृथ्वी का कृत्रिम उपग्रह है।
  • उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है। एक ही त्रिज्या की कक्षा में भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी।
  • उपग्रह की कक्षीय त्रिज्या पर निर्भर करती है। पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 7.9 या 8 किमी/से होती है।
  • पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाने उपग्रह का परिक्रमण काल 84 मिनट होता है।

  • भू-स्थायी उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36000 किमी की ऊँचाई पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है।
  • भू-स्थायी उपग्रह पृथ्वी के अक्ष के लम्बवत् तल में पश्चिम से पूर्व की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा इसका परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल (24 घण्टे) के बराबर होता है।
  • भू-तुल्यकालिक कक्षा में संचार उपग्रह स्थापित करने की सम्भावना सबसे पहले आर्थर-सी क्लार्क ने व्यक्त की।
  • तुल्यकाली उपग्रह का उपयोग रेडियो प्रसारण तथा मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणी के लिए किया जाता है।
  • पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है, इससे सूर्य तथा तारे पूर्व से पश्चिम की ओर घूमते नजर आते हैं।

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पलायन वेग 

  • पलायन वेग, वह न्यूनतम वेग है, जिससे किसी पिण्ड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है तथा कभी वापस नहीं आता है। इसका मान पृथ्वी तल पर 11.2 किमी/से होता है।
  • पलायन वेग, कक्षीय वेग का (2)1/2 = 1.410 गुना होता है।
  • चन्द्रमा पर पलायन वेग 2.38 किमी/से है, जिसके कारण वहाँ वायुमण्डल का अभाव है।

Kepler’s Law Relating To The Motion Of Planets For SSC CGL TIER 1

ग्रहों की गति से सम्बन्धित केप्लर का नियम

  • प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिन्दु पर स्थित होता है।
  • प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग नियत रहता है। इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है, तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है, तो उसका वेग कम हो जाता है।
  • सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है उसे, उसका परिक्रमण काल (T) कहते हैं। परिक्रमण काल का वर्ग (T2) ग्रह की सूर्य से औसत दूरी (r) के घन (r3) के समानुपाती होता है अर्थात् T2 X r3

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