CTET UPTET 2018 Alankar Figure Speech Study Material in Hindi
CTET UPTET 2018 Alankar Figure Speech Study Material in Hindi
अलंकार ( Figure of Speech)
अलंकार में ‘अलम्’ और ‘कार’ दो शब्द हैं। ‘अलम्’ का अर्थ है-भूषित (सजावट)। अर्थात् जो अलंकृत या भूषित करे वह उसी प्रकार अलंकार के प्रयोग से काव्य में चमत्कार, सौन्दर्य और आकर्षण उत्पन्न होता है।

अलंकारों के प्रकार तथा उदाहरण
- अनुप्रास जहाँ एक ही वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है; जैसे
मुदित महीपति मन्दिर आये।
सेवक सचिव सुमंत बुलाये।
इस चौपाई में पूर्वार्द्ध में म की और उत्तरार्द्ध में स की तीन बार आवृत्ति हुई है।
अनुप्रास के पाँच भेद हैं- छेकानुप्रास, वृत्यानुप्रास, श्रुत्यानुप्रास, अन्त्यानुप्रास, लाटानुप्रास।
2. यमक जहाँ एक शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है, परन्तु उनके अर्थ अलग-अलग होते हैं; वहाँ यमक अलंकार होता है; जैसे
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर, या पाए बौराय।।
यहाँ कनक शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है, दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं- धतूरा और सोना।
3. श्लेष जहाँ एक शब्द का एक ही बार प्रयोग होता है, परन्तु उसके अर्थ अनेक होते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है; जैसे
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
इस उदाहरण में ‘पानी’ के तीन अर्थ हैं-चमक (मोती के लिए), प्रतिष्ठा (मनुष्य के लिए) तथा जल (आटे के लिए)।
4. उपमा जहाँ दो वस्तुओं के बीच समानता का भाव व्यक्त किया जाता है, वहाँ उपमा अलंकार होता है; जैसे
हरि पद कोमल कमल से।
(भगवान के चरण कमल के समान कोमल हैं।)
5. रुपक जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप कर उनकी एकरुपता का प्रतिपादन किया जाए, वहाँ रुपक अलंकार होता है। यहाँ पर उपमेय उपमान का रुप धारण कर लेता है; जैसे
चरण कमल बन्दौ हरि राई।
इसमें ‘चरण’ (उपमेय) पर ‘कमल’ (उपमान) का आरोप हुआ है। अत: यहाँ रुपक अलंकार है।
6. उत्प्रेक्षा जहाँ पर उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाए, उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें प्राय: मनु, जनु, मानो, जानो, निश्चय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है; जैसे
सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात।
मनो नीलमनि-सैल पर, आतपु परयो प्रभात।।
श्रीकृष्ण पीताम्बर पहने हुए हैं। उनके शरीर को देखकर ऐसा लगता है (मानो) नील पर्वत पर प्रभात के सूर्य का (पीले रंग का) प्रकाश पड़ रहा हो।
यहाँ उपमेय (श्रीकृष्ण) में उपमान (नील पर्वत पर सूर्य का प्रकाश) की सम्भावना की गयी है। यह मनो शब्द से प्रकट हो रहा है।
7. अतिशयोक्ति जहाँ किसी वस्तु का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाये, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है; जैसे
अब जीवन की है कपि न कोय।
कनगुरिया की मुँदरी कंगना होय।।
8. व्यतिरेक जहाँ उपमेय को उपमान से बढ़ाकर या उपमान को उपमेय से घटाकर वर्णन किया जाता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है; जैसे
संत हृदय नवनीत समाना,
कहा कविन पै कहन न जाना।
9. विरोधाभास जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास किया जाए, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है; जैसे
या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई।
ज्यों-ज्यों बूझै श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जवल होई।।
यहाँ कहा गया है कि श्याम रंग (काले रंग) अर्थात् श्रीकृष्ण की भक्ति में मन जितना अधिक डूबता है, उतना ही अधिक उज्जवल होता जाता है।
10. दृष्टान्त जहाँ उपमेय, उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है; जैसे
बसै बुराई जासु तन, ताही को सन्मान।
भलो भलो कही छोड़िए, खोटे ग्रह जप दान।।
11. वक्रोक्ति जहाँ सुनने वाला, वक्ता के शब्दों का मूल आशय से भिन्न अर्थ लगाता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है; जैसे-सीताजी का यह कथन – “मैं सुकुमारि’ पर काकू की व्यंजना करता है- अत: वहाँ काकू वक्रोक्ति है।
12. अन्योक्ति जहाँ किसी प्रस्तुत वस्तु का वर्णन न करके उसके समान किसी अन्य वस्तु का वर्णन किया जाए अर्थात् प्रस्तुत वस्तु का प्रतीकों के माध्यम से वर्णन किया जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है; जैसे
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहि विकास इहि काल।
अली कली ही सौं विंध्यौं, आगे कौन हवाल।।
इन पंक्तियों में भ्रमर और कली के प्रतीकों के माध्यम से राजा जयसिंह को सचेत किया गया है, इसलिए अन्योक्ति अलंकार है।