SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material History of India
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भारत का इतिहास (History of India)
जाने आपने अतीत के बारे में (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
““इतिहास अतीत से साक्षात्कार करने को एक साधन है, जिसके अन्तर्गत किसी राष्ट्र या सामाज के राजनीतिक व आर्थिक विकास का तथा संस्कृति और सभ्यता के प्रसार का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है. भारतवर्ष की सभ्यता क् इतिहास अति प्राचीन है जिसकी व्यवस्थित शुरुवात सिन्धु सभ्य़ता के उदय. से होती है। उसके बाद आर्यो के आगमन से यहाँ वैदिक संस्कृति का सूत्रपात हुआ”
ऐतिहासिक स्त्रोत (Historical Sources SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
भारत का प्राचीन इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। इसकी जानकारी के स्त्रोत अत्यधिक विस्तृत है।
एतिहासिक क्रमबद्ध को प्रभावी रूप देने के लिए विद्वानों ने इऩ स्त्रोतों को तीन भागों में विभाजित किया है।
- पुरातात्विक स्त्रोत (Archaeological sources SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
- इनके अन्तर्गत मुख्यतः अभिलेख, स्मारक, भवन, मुद्राएँ, मुहरें, मुर्तियाँ, चित्रकला आदि आते है।
- बोगजकोई अभिलेख (एशिया माइनर) 1400 ई.पू. का है। इस अभिलेख में वैदिक देवताओं इन्द्र, वरुण, मित्र तथा नासत्य की चर्चा मिलती है।
- भारत में प्राप्त सबसे प्राचीन अभिलेख मौर्य सम्राट अशोक के है।
- प्रारम्भिक अभिलेख अधिकांशतः प्राकृत भाषा में है। किन्तु गुप्त तथा गुप्तोत्तरकाल के अधिकांश अभिलेख संस्कृत में है।
- भारत के प्राचीनतम् सिक्के आहत सिक्के या पंचमार्क सिक्के (coin) है। जो 5वी शताब्दी ई. पू. के है। इन सिक्को पर पेड़, साँड, मछली, हाथी, अर्द्धचन्द्र आदि आकृतियाँ बनी होती थीं।
- आहत सिक्कों को एतिहासिक ग्रन्थों में कार्षपण कहा गया है।, ये अधिकांशतः चाँदी के बने थे।शासकों की आकृति वाले सिक्कों का प्रचलन सर्वप्रथम हिन्द-यूनानी शासकों के समय प्रारम्भ हुआ। भारत सर्वप्रथम स्वर्ण सिक्के भी इन्हीं शासकों ने चलाए।
- प्राचीन काल के स्मारकों से वास्तुकला एवं सामाजिक जीवन के विकास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
- प्राचीन काल में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से प्रारम्भ होता है।
- गुप्तकाल में मूर्ति निर्माण की गान्धार तथा मथुरा शैली प्रचलित थी। गान्धार कला पर यूनानी प्रभाव अधिक व्याप्त था।
प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेख (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
§ अभिलेख | § शासक |
§ महास्थान अभिलेख § जूनागढ़ अभिलेख § प्रयाग अभिलेख § उदयगिरी अभिलेख § भितरी अभिलेख § एरण अभिलेख § मधुवन अभिलेख | § चन्द्रगुप्त मौर्य § रुद्रदामन § समुद्रगुप्त § चन्द्रगुप्त द्वितीय § स्कन्दगुप्त § भानुगुप्त § हर्षवर्द्धन |
- साहित्यिक स्त्रोत (Literary sources)
धार्मिक साहित्य
वैदिक साहित्य वेद, उपवेद, वेदांग, उपनिषद्, ब्राह्मण,अरण्यक, पुराण, रामायण, महाभारत इत्यादि।
बौद्ध साहित्य जातक, पिटक (त्रिपिटक), निकाय, महावंश, दीपवंश, बुद्धचरित, मिलिपन्हों, दिव्यावदान, मंजूश्री मूलकल्प इत्यादि।
धर्मेत्तर साहित्य
- धर्मेत्तर साहित्यों में धर्मसूत्र तथा स्मृतियों को प्रमुख स्थान है।स्मृतियों की रचना 6ठी शताब्दी ई.पू. बाद हुई।
- कौटिल्य की अर्थशास्त्र, पाणिनी कृत अष्टाध्यायी, पतंजलि का महाभाष्य, विशाखदत्त की मुद्राराक्ष, शूद्रक की मृच्छकटिम्, बाणभट्ट की ह्रर्षचरित इत्यादि कुछ महत्वपुर्ण रचनाएँ है, जो भारतीय इतिहास का विस्तृत वर्णन करती है।
विदेशियों की वृत्तान्त
- यूनानी लेखक मेगस्थनीज की रचना इण्डिका से मौर्य प्रशासन, समाज तथा संस्कृति का विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता है।
- टॉलेमी की ज्योग्राफी तथा प्लिनी की नेचुरल हिस्टोरिका में भारतीय समाज एवं अर्थव्यवस्था की चित्रण किया गया है।
- किसी अज्ञात लेखक की रचना पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी में भारतीय बन्दरगाहों तथा वहाँ से होने वाली वाणिज्यिक गतिविधियों का विवरण मिलता है।
- चीनी यात्रियों फाह्यान, ह्वेनसांग तथा इत्सिंग ने भी अपनी रचनओं मों तत्कालीन भारतीय सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति पर व्यापक प्रकाश डाला है।
- अरब यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से पूर्व मध्यकालीन भारत के समाज एवं संस्कृति के विषय में जानकारी मिलती है। इन लेखकों में प्रमुख है। अलबरूनी, अलमसूदी, सुलेमान एवं अलबिलकदुरी आदि।
प्राचीन भारत (Ancient India)
प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन से हम यह जान पाते है। कि मानव समुदायों ने हमारे देश में संस्कृति का विकास कब, कहाँ और कैसे किया?
भारत के प्राचीन इतिहास की व्यवस्थित शुरुआत सिन्धु घाटी सभ्यता मे मानी जाती है।
प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Age) (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
जिस समय के मनुष्यों के जीवन की जानकारी का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलता उसे प्राक् इतिहास या प्रागैतिहास कहा जाता है।प्राप्त अवशेषों से ही उस काल के जीवन को जानते है।
औज़ारों की प्रकृति के आधार पर प्राक् इतिहास को तीन भागों में बाँटा जाता हैं।
प्रागैतिहासिक काल
- पुरापाषाण काल (5 लाख ई. पू. से 10 हजार ई. पू.)
- मध्यपाषाण काल (10 हजार ई. पू. से 7 हजार ई. पू.)
- नवपाषाण काल (7 हजार ई. पू. के बाद)
पुरापाषाण काल को भी तीन भागों में बाँटा गया है.
- निम्न पुरापाषाण काल
- मध्य पुरापाषाण काल
- उच्च पुरापाषाण काल
प्रागैतिहासिक काल एवं आवास
काल | आवास |
Ø पुरापाषाण काल Ø मध्यपाषाण काल Ø नवपाषाण काल Ø ताम्रपाषाण काल | Ø शैलाश्रय अधिवास Ø नदी तट आवास Ø गर्त अधिवास Ø कच्चे एवं पक्के मकान |
पुरापाषाण, मध्यपाषाण एवं नवपाषाण काल का विवरण
पुरापाषाण काल | मध्यपाषाण काल | नवपाषाण काल |
§ पुरापाषाण काल संस्कृति के अवशेष सोहन नदी घाटी, बेलन नदी घाटी, नर्मदा नदी घाटी एवं भोपाल के भीमबेटका से प्राप्त हुए हैं। § यहाँ से हैण्ड-ऐक्स, क्लीवर § यहाँ चोंतरा नामक स्थान से हस्तकुठार तथा शल्क पाए गए हैं। § नर्मदा घाटी के नरसिंहपुर, महाराष्ट्र, के नेवासा, आन्ध्र प्रदेश के गिदलूर, करीमपुडी तथा तमिलनाडु के वादमदुंराई अतिरमपक्कम् से अवशेष प्राप्त हुए है। | § मध्य प्रदेश में आदमगढ़ तथा राजस्थान में बागोर से पशुपालन के प्राचीनतम् साक्ष्य प्राप्त हुए है। § मानव केअस्थि पंजर क सबसे पहला साक्ष्य प्रतापगढ़ के सराय नाहर तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। § इस काल के उपकरण छोटे थे जिन्हें माइक्रोलिथ कहा गया। § क्वार्टजाइट पत्थर के औजार बनाए जाते थे। § पश्चिम बंगाल के वीरमानपुर तथा गुजरात के लंघनाज महत्वपूर्ण स्थल थे। § सराय नाहर राय तथा महदहा व दमदमा सबसे पुराने मध्यपाषाण स्थल हैं। § आदम (मध्य प्रदेश) से गुफा चित्रकारी के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
| § मेहरगढ़ से कृषि के प्राचीनतम् साक्ष्य मिले हैं। § बुर्जहोम तथा गुफकराल से अनेक गर्तावास, अनेक प्रकार के मृदभाण्ड एवं प्रस्तर व हड्डी के अनेक औजार प्राप्त हुए है। § चिरांद (बिहार ) से प्रचुर मात्रा मे हुड्डी के उपकरण प्राप्त हुए हैं। § कोल्डिहवा से चावल क प्राचीनतम् साक्ष्य मिलता हैं। § बेलारी दक्षिण भारत में प्रमुख स्थल था। § कुम्भकारी सर्वप्रथम इसी काल में द्ष्टिगोचर होती हैं। § इस काल में आग तथा पहिए का अविष्कार हुआ। § इस समय की मुख्य विशेषता खाद्म उत्पादन, पशुओं के उपयोग की जानकारी तथा स्थिर ग्राम्य जीवन था। |
ताम्रपाषाण काल
धातुओं में सबसे पहले ताँबे को प्रयोग हुआ। इस काल में मनुष्य ने पत्थर एवं ताँबे के औजारों को साथ-साथ प्रयोग किया। जिससे कई संस्कृतियों को जन्म हुआ, जिन्हें ताम्रपाषाणिक संस्कृतिक कहा जाता है।
प्रमुख ताम्रपाषाणिक संस्कृति एवं काल
संस्कृति | काल |
1. मालवा संस्कृति 2. जोरवे संस्कृति 3. अहाड़ संस्कृति 4. कायथा संस्कृति 5. सावल्द संस्कृति 6. प्रभास संस्कृति 7. रंगपुर संस्कति | § 1700 ई.पू.- 1200 ई.पू. § 1400 ई.पू.- 700 ई.पू. § 2100 ई.पू.- 1800 ई.पू. § 2100 ई.पू.- 1800 ई.पू. § 2100 ई.पू.- 1800 ई.पू. § 1800 ई.पू.- 1200 ई.पू. § 1500 ई.पू.- 1200 ई.पू. |
ताम्रपाषाणिक स्थल व प्राप्त साक्ष्य
मालवा नवदाटोली (नर्मदा) दैमाबाद (गोदावरी) इनामगाँव महाराष्ट्र जोखे संस्कृति | उत्कृष्टतम ताम्रपाषाण स्थल बहुत सारे अनाज प्राप्त होते हैं। बड़ी बस्ती , कलश शवाधान किलाबन्द बस्ती, हाथी दाँत, शिल्पकार खिलौने द्विस्तरीय निवास, काले व लाल मृदभाण्डों का प्रयोग |
पावर प्वॉइन्ट्स
- रॉबर्ट ब्रूस फुट ने 1863 ई. में भारत की प्रथम पुरापाषाण कालीन संस्कृति की खोज की।
- मध्यपाषाण काल के लोगों ने अनुष्ठान के साथ शवों के दफनाने की प्रथा प्रारम्भ की।
- मानव द्वारा बनाया जाने वाला प्रथम औजार कुल्हड़ी था नवपाषाण युग के निवासी सबसे पुराने कृषक समुदाय के थे। मिट्टी और सरकण्डे के बने गोलाकार या आयताकार घरों में रहते थे।
- नवपाषाणकालीन स्थल कोल्डिहवा से चावल का एवं चौपानीमाण्डो से मृदभाण्ड का प्राचीनतम् साक्ष्य प्राप्त होता है। मेहरगढ़ से एक कब्र में मृतक के साथ बकरी को दफनाने को साक्ष्य मिलता है।
- ताम्रपाषाणिक स्थलों में सबसे बड़ा उत्खनित स्थल नवदाटोली है, जहाँ से सर्वाधिक फसल प्राप्त हुई है।
- नवदाटोली का उत्खनन एच. डी. संकालिया ने किया था, जो अवस्था संस्कृति से सम्बन्धित है।
- ताम्रपाषाणिक स्थल हल्लूर से घोड़े की एक हड्डी मिली है।
- मेहरगढ़ पहला ऐसा गाँव था जिसमें नवपाषांण से ताम्रपाषाण के संक्रमण काल को 5000 ई. पू. देखा गया।
हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilisation) (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
रेडियो कार्बन C-14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा हड़प्पा सभ्यता के सर्वमान्यकाल 2350 ई.पू. से 1750 ई. पू. को माना जाता है। हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्र लगभग 12,99,660 वर्ग किमी फैला है। यह सभ्यता उत्तर में माण्डा से दक्षिण में दैमाबाद तथा पश्चिम में बलूचिस्तान, (Balochistan) के सुत्कागेंडोर से पुर्व में पश्चिम उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के आलमगीरपुर तक विस्तृत है। हड़प्पा के अवशेष भारत,(India) पाकिस्तान, (Pakistan) तथा अफगानिस्तान (Afghanistan) में फैले है।
सिंधु सभ्यता (हड्प्पा सभ्यता/Harappan Civilisation) का संक्षिप्त विवरण
प्रमुख स्थल Major places | उत्खननकर्ता | ईस्वी | नदी (River) | वर्तमान स्थिति present situation | प्राप्त महत्वपूर्ण साक्ष्य Important evidence received | |
हड़प्पा | दयाराम साहनी एवं माधोस्वरूप वत्स | 1921 | रावी | पाकिस्तान का माण्टगोमरी जिला | ताँबे को पैमाना, ताँबे की इक्कागाड़ी ताँबा गलाने की भट्टी, अन्नागार | |
मोहनजोदड़ो | राखलदास बनर्जी | 1922 | सिन्धु | पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त का लरकाना जिला | स्नाननागार, अन्नागार, पुरोहित आवास, सभा भवन, कांसे की नर्तकी की मूर्ति, पशुपति की मुर्ति, सूती घागा, सीप का बना मानक बाट | |
चन्हूदड़ो | गोपाल मजूमदार | 1934 | सिन्धु | सिन्ध प्रान्त (पाकिस्तान) | मनका बनाने का कारखाना, दवात, काजल, कंघा, वक्राकार ईटें | |
रंगपुर | रंगनाथ राव | 1953-54 | मादर | गुजरात का काठियावाड़ जिला | चावल की भूसी,घोड़े की मृण्मूर्ति, कच्ची ईंटें,के दुर्ग | |
रोपड़ | यज्ञदत्त शर्मा | 1953-55 | सतलज | पंजाब का रोपड़ जिला | मानव के साथ केत्ते को दफनाने के साक्ष्य, ताँबे की कुल्हाड़ी | |
लोथल | रंगनाथ राव | 1955-62 | भोगवा | गुजरात का अहमदाबाद जिला | गोदीवाड़ा, युग्मित शवाधान, रँगाई के कुण्ड, हाथी दाँतका पैमाना, सीपयुक्त देवता की आकृति, प्रशासनिक भवन | |
कोटदीजी | फजल अहमद | 1953 | सिन्धु | सिन्ध प्रान्त (पाकिस्तान) का खैरपुर स्थान | पत्थर के वाणाग्र | |
आलमगीरपुर | यज्ञदत्त शर्मा | 1958 | हिन्डन | उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला | साँप तथा रीछ की मृण्मूर्ति, मिट्टी के बर्तन, रोटी बेलने की चौकी | |
कालीबंगा | बी. बी. लाल एवं बी.के थापर | 1960 | घग्घर | राजस्थान का श्रीगंगानगर जिला | जुते खेत, अग्नि वेदियाँ पकी ईटें अलकृत फर्श | |
धौलावीरा | रवीन्द्र सिंह बिष्ट | 1990 | लूनी | गुजरात का कच्छ जिला | पॉलिशदार श्वेत पाषाण खण्ड, स्टेडियम, सैन्धव लिपिके दस बड़े अक्षर, लम्बा जलाशय | |
बनावली | रवीन्द्र सिंह बिष्ट | 1973-74 | रंगोई | हरियाणा का हिसार जिला | मिट्टी का खिलौना, हल , जौ, मातृदेवी की मृण्मूर्ति | |
सामाजिक जीवन (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
- सामाजिक व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था।
- समाज मातृप्रधान व मातृसत्तात्मक था।
- सम्भवतः समाज पुरोहित, व्यापारी तथा श्रमिक वर्ग में विभाजित था फिर भी हड़प्पा की सामाजिक पद्धित समानता पर आधारित प्रतीत होती है।
- भोजन शाकाहारी तथा मांसाहारी था।
- सोना, चाँदी , हाथी दाँत, ताम्र तथा सीपियों से निर्मित आभुषण प्रचलित थे।
- नारियाँ काजल, पाउडर तथा श्रंगार प्रसाधन से परिचित थी।
- शतरंज के भी प्रमाण मिले है।
- मिट्टी की बनी खिलौना गाड़ी से बच्चे मनोरंजन करते थे।
- अन्तिम संस्कार की तीन पद्धतियाँ-पूर्णसमाधीकरण, आंशिक समाधीकरण तथा दाह संस्कार थीं।
धार्मिक जीवन (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
- धार्मिक रूढ़ियों एवं कर्मकाण्ड़ों को महत्व दिया जाता था।
- मूर्तियों एवं ताबीजों के अतिरिक्त मुहरों पर अंकित चित्रों से पशु पूजा इत्यादि की प्रवृति सामने आई है।
- मातृदेवी तथा पशुपति शिव की मूर्तियाँ प्राप्त हुई है।
- मोहनजोदड़ो की एक मुहर पर पशुपति शिव के दाई ओर चीता तथा हाथी और बाई ओर गैण्डा तथा भैंसा उत्कीर्ण है।
- कूबड़वाला बैल तथा श्रंगयुक्त पशु पवित्र पशु थे।
- फाख्ता पवित्र पक्षी था।
- लिंग पूजा प्रचलित थी।
- लोग तन्र-मन्त्र एवं भूत-प्रेत में विश्वास करते थे।
- स्वास्तिक का भी प्रमाण है।
आर्थिक जीवन (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
- हड़प्पा सभ्यता के आर्थिक जीवन का प्रमुख आधार कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापार थे। हड़प्पा में 9 फसलों के साक्ष्य प्राप्त हुए है। जैसे गेहुँ, जौ, कपास,मटर, राई, तिल, सरसों, चावल तथा बाजरा आदि।
सिन्धु में आयात की जाने वाली वस्तुएँ
आयात वस्तुएँ (Import items) | स्त्रोत स्थल (Source Place) |
सोना चाँदी ताँबा सीसा
गोमेद लाजवर्द मणि टिन | कर्नाटक, अफगानिस्तान, फारस ईरान, अफगानिस्तान, मेसोपोटामियां खेतड़ी,बलूचिस्तान )CGL 2003) राजस्थान, ईरान, अफगानिस्तान, दक्षिण भारत सौराष्ट्र बदखशाँ, अफगानिस्तान ईरान, अफगानिस्तान |
- इस काल के लोग तरबूज, खरबूजा, नारियल, अनार, नींबू, केला आदि फलों से परिचित थे।
- लकड़ी के हल का प्रयोग किया जाता था। (बनावली)
- ताम्र तथा टिन मिश्रण से कांस्य निर्माण की प्रतिधि उन्हे, ज्ञात थी।
- यही कारण है कि इस सभ्यता को काँस्य़ युगीन सभ्यता कहा जाता है।
- बन्द ढलाई तथा लुप्त मोम की प्रक्रिया से धातुएँ बनाई जाती थीं जिसे मधुच्छिष्ट (Lostwax) l तकनीक कहा जाता है।
- माप के लिए दशमलव पद्धति तथा तौल के लिए द्वि-भाजन प्राणाली के साक्ष्य विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए है। लोथल से हाथी दाँत का पैमाना प्राप्त हुआ है। फुट तथा क्यूबिक की लोगों को जानकारी थी।
निर्यातित वस्तुएँ - कपास ताँबा सुती कपड़ा
- मिट्टी के बर्तन टेराकोटा मूर्तियाँ इमारती लकड़ी
- मोर अनाज, मसाले कार्नेलियन के मनके
- आबनूस माणिक्य के मनके सीप की वस्तुएँ
- लोथल से गोदीबाड़ा का साक्ष्य, फारस की मुहरें, बाह्म व्यापार का संकेत देती है। कालीबंगा से मेसोपोटामिया की बेलनाकार मुहरें भी प्राप्त हुई है।
- हड़प्पा के लिए मेलुहा शब्द प्रयुक्त हुआ है।
- बढ़ईगिरी, शिल्पकर्म, आभूषण, मिट्टी के बर्तन तथा कपड़ा बुनना प्रमुख उद्योग थे।
- व्यापार-वाणज्यि वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था।
राजनीतिक जीवन (political life
- स्टुअर्ट पिगट ने हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो को जुड़वाँ राजधानी बताया है।
- सैन्धव शासक युद्धप्रिय नही थे तथा वाणिज्य में रुचि लेते थे। इसी वजह से कहा जाता है। यहाँ की शासन व्यवस्था वाणिक वर्गो के हाथों में थी।
नगरीय योजना (Urban planning)
- नगर प्रायः दो भागों में विभाजित थे ऊपरी भाग तथा निम्न भाग।ऊपरी भाग दुर्गीकृत था जिसमें राजकीय इमारतें, खाद्य भण्डार गृह इत्यादि निर्मित है। जबकि निम्न भागों मं छोटे भवनों के साक्ष्य मिले है।
- भवन समान क्षेत्रफल के तथा सड़कों के किनारे निर्मित थे और भवनों के दरवाजे पीछे गलियों में खुलते थे।
- नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रिड पद्धति अपनाई गई।
- पक्की नालियों की व्यवस्था थी। भवनों का निर्माण पक्की ईटों से हुआ था ईटों के निर्माण का निश्चित अनुपात 4:2:1 था।
- निकाश प्रणाली इस सभ्यता की प्रमुख विशेषता थी जो मिस्त्र तथा मेसोपोटामिया में अनुपस्थित थी। सभी भवनों में स्नानागार बनाए जाते थे तथा इनसे पानी के निकस के लिए पाइपों का निर्माण किया गया।
- मोहनजोदड़ो से विशाल स्नानागार का साक्ष्य मिला है।
- धौलावीरा के तीन भागों में से दो भाग दुर्गीकृत है। जल संग्रह के लिए बाँधो के निर्माण के साक्ष्य धौलीवीरा से प्राप्त हुआ है।
लिपि तथा लेखन कला (Script and writing art) (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
- सैन्धवकालीन मुहरों से लिपि तथा धर्म की जानकारी मिलती है।
- सिन्धु लिपि चित्राक्षर लिपि है। इस लिपि को पढ़नें में अब तक सफलता नही मिली है।
- लिपि पर सबसे ज्यादा प्रचलित चिह्न मछली तथा U आकार क है।
इसमें लगभग 400 चिह्न है। - लिखावट बाई से दाई ओर है। इसे बुस्त्रोफेदम लिपि भी कहा जाता है।
- चित्रों का अंकन सेलखड़ी की आयताकार मुहरों तथा गुटिकाओँ पर हुआ है।
- इस लिपि को विद्वानों ने संस्कृत का आद्य-स्वरूप अथवा आद्य-द्रविड़ लिपि माना है।
वैदिक काल
वैदिक काल को दो भागों में बाँटा गया है
ऋग्वैदिक काल–1500 से 1000 ई.पू.
उत्तरवैदिक काल–1000 से 600 ई.पू.
आर्यो के भारतीय क्षेत्र में आगमन पर विद्वानों के विभिन्न मत है।
- अधिकांश विद्वानों का मत है। कि आर्य खैबर दर्रे से भारत आए तथा सबसे पहले पश्चिमोत्तर भारत को अपना निवास स्थान बनाया तथा धीरे-धीरे पूर्व की ओर अपना प्रसार किया इन्हें ‘कैस्पियन सागरीय क्षेत्र’ का मूल निवासी माना गया है।
- ईरान है कि आर्य ईरान से होकर भारत आए थे।
सिन्धु सभ्यता के पतन के कारण
विद्वानों ने इसके पतन के कई कारण बताए है।
- आर्यो का आक्रमण- गार्डर चाइल्डस, ह्वीलर, एवं स्टुअर्ट पिगट
- बाढ़- मार्शल, मैके, एस,आर, राव
- जलवायु परिवर्तन- आरेल स्टीन, एस. एन घोष
- जलप्लावन- एम. आर. साहनी
- महामारी, बीमारी- के.यू. आर केनेडी
- अदृश्य गाज- एम. दिमित्रियेव
- प्रशासनिक- जॉन मार्शल
मेमोरी फैक्ट्स (Memory Facts) (SSC CGL TIER 1 General Awareness Study Material)
- हड़प्पा सभ्यता के धौलवीरा स्थल से शैलकृत स्थापत्य के प्रमाण मिले है।
- गंगा घाटी में धान की खेती के प्राचीनतम् प्रामाण सन्त कबीरनगर (उ.प्र. Uttar Pradesh) के लहुरादेवा से प्राप्त हुए है।
- स्वातन्त्रयोत्तर भारत में सबसे अधिक संख्या में हड़प्पायुगीन स्थलों की खोज गुजरात प्रान्त में हुई।
- भारत में चाँदी की उपलब्धता के प्राचीनत् साक्ष्य हड्प्पा संस्कृति में मिलते है। मोहनजोदड़ो स्नानागार क् पूर्व में स्थित स्तूप का निर्माण कुषाण काल में किया गया।
- सिन्धु सभ्यता को प्रथम नगरीय क्रान्ति भी कहा जाता है। क्योकि भारत में पहली बार नगरों का उदय इसी सभ्यता के समय हुआ।
- सर्वाधिक संख्या में मुहरे मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है। जो मुख्यतः चौकोर है।
- मोहनजोदड़ो एवं लोथल से प्राप्त मुहर पर नाव का चित्र बना है।
- मोहनजोदड़ो को मृतकों क् टीला तथा सिन्धु का बाग कहा जाता है।
- लोथल को लघु हड़प्पा तथा लघु मोहनजोदड़ो कहा जाता है।
- कालीबंगा का अर्थ-‘मुर्दो का नगर’ (सिन्धी भाषा में) होता है।
- राखीगढ़ी भारत में स्थित इस सभ्यता को सबसे बड़ा स्थल है।
- माप-तौल की इकाई सम्भवतः 16 के अनुपात में थी।
- इस काल में मन्दिर के अवशेष नही होती थी।
- मुहरें अधिकंशातः सेलखड़ी की बनी होती थी।
- हड़प्पा की लिपि भाव-चित्रात्मक है।
- हड़प्पा की लिपि अभी तक पढ़ी नही जा सकी है।
आर्यो के मूल स्थान सम्बन्धी विवरण
विद्वान | आर्यो का मूल निवास स्थान |
प्रो. मैक्समूलर बाल गगाधर तिलक डॉ. अविनाश चन्द्र दास दयानन्द सरस्वती प्रो पेन्का पं. गंगानाथ झा पी. गाइल्स नेहरिंग एवं गार्डन चाइल्ड्स | मध्य एशिया (बैक्ट्रिया) आर्कटिक प्रदेश (उतरी ध्रुव ) सप्त सैन्धव प्रदेश तिब्बत जर्मनी के मैदानी भाग ब्रह्मर्षि देश हंगरी तथा डेन्यब नदी की घाटी दक्षिणी रूस |
ऋग्वैदि काल
आर्यो के आगमन के पश्चात् सर्वप्रथम सप्तसिन्धु प्रदेश (पंजाब एवं इसके आस-पास में उनके बसने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई पश्चात् उनका प्रसार पूर्व की ओर होने लगा। ऋग्वैदिक कालीन आर्यों की जानकारी की एक-मात्र स्त्रोत ऋग्वेद है।
ऋग्वैदिक कालीन संरचनात्मक विवरण
इसको चार भागों में बाँटा गया है.
सामाजिक संरचना
- सामाजिक संरचना का आधार परिवार था। संयुक्त परिवार का प्रचलन था।
- महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने तथा राजनीतिक संस्थाओं में शामिल होने की स्वतन्त्रता भी प्राप्त थी। ‘अपरा’. ‘घोषाœ’.‘ गार्गी’ तथा ‘विश्वतारा विदुषी महिलाएँ थी।
- आजीवन धर्म तथा विवाह न करने वाली कन्याएँ ब्रह्मवादिनी तथा विवाह न करने वाली कन्याएँ आमाजू कहलाती थी।
- समाज कबीलाई था तथा समतावादी एवं वर्णविहीन सामाजिक संरचना को महत्त्व दिया गया था।
- ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र की चर्चा मिलती है। विभाजन जन्ममूलक न होकर कर्ममूलक था। गृत्यमद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वशिष्ट रचनाकार थे।
- आठवां मण्डल, कम्व तथा अंगिरस को समर्पित है। नवें मण्डल में सोम की चर्चा है।
- गाय को अघन्या कहा जाता है। ‘दस्यु’ तथा ‘दास’ की चर्चा मिलती है।
- बहुपत्नी प्रथा,बाल विवाह तथा सती प्रथा का प्रचलन नही था। विधवाओं को पुनर्विवाह की स्वीकृतिक थी।
- भोजन शाकाहारी तथा मांसाहारी था, सोम आर्यो का मुख्य पेय था।
- सोने, चाँदी, ताँबे तथा बहुमूल्य धातुओं के आभूषण प्रयोग में लाए जाते है।
- स्त्रियाँ साड़ी तथा पुरूष धोती व अंगोछे
- का प्रयोग करते थे।
- आर्यो के परिधानों के तीन भाग ‘वास, अधिवास तथा उष्णीय’थे। नीचे कहा जाता था
- उनी कपड़े को सामूल्य तथा कढ़े हुए कपड़े को पेशस कहा जाता था।
आर्थिक जीवन (Economic life)
- आर्थिक जीवन मखयतया कृषि एवं पशुपालन पर आधारित था। अर्थव्यवस्था में पशुओं का महत्त्व सर्वाधिक था। गाय के लिए युद्धों का विवरण ऋग्वेदमें मिलता है।सम्पत्ति की गंणना ‘रयि’ आर्थात् मवेशियों के रूप में होती थी। गाय के अतिरिक्त बकरियाँ भेड़ व घोड़े भी पाले जाते थे।
- कृषि के लिए उर्वरा, धान्य तथा वपन्ति जैसे शब्दों का प्रयोग होता था। ऋग्वेद में ‘यव’ (जौ) तथा धान्य की चर्चा है। अर्थात् ऋग्वैदिक आर्य जौ की खेती पर अधिक ध्यान देते थे।
- कुछ व्यवसायी जैसे-तक्षा (बढ़ाई), कर्मा, स्वर्णकार, चर्माकार, वाय (जुलाहा) आदि थे। ऋग्वेद मे उल्लिखित समुद्र शब्द मुख्यतः जलराशि का वाचक है। व्यापरियों को पणि कहा जाता था।
- बेकनार (सूदखोर), वे ऋणदाता थे, जो बहुत अधिक ब्याज लेते थे जिसे बलि (चढ़ावा ) कहा जाता था।-
धार्मिक जीवन
- ऋग्वैदिक आर्यो की धार्मिक प्रवृत्तियों पर उनके भौतिक जीवन तथा सिद्धान्तों का प्राभाव अत्यधिक था।
- पितृसत्तात्मक समाज के कारण देवताओं की प्रधानता थी।
- प्रकृति के प्रतिनिधि के रूप में आर्यो के 33 करोड़ देवतओं की तीन श्रेणियोँ थीं। आकश के देवता, अन्तरिक्ष के देवता और पृथ्वी के देवता ।
- इन्दर, वरुण, सूर्य, मित्र, अग्नि, इत्यादि ऋग्वैदिक, देवताओं मे प्रमुख थे। वरुण को ऋतस्य गोपा कहा जाता था।
- वरुण को नैतिक व्यवस्था बनाए रखने वाला देवता माना जाता था। अग्नि को जाति वदलस कहा गया।
- ऋग्वेद का सबसे महत्त्वपूर्ण देवता ‘इन्द्र’ था जिसे पुरनदर (किलों को तोड़ने वाला कहा गया है।
- इसके पश्चात् अग्नि तथा वरुण का स्थान ता
- यज्ञ तथा बलि प्रथा इस समय विद्यमान थीं किन्तु यज्ञ मन्त्रविहीन होते थे।
- ऋग्वेद में एकेश्वरवाद के प्रमाण मिलते हैं।
राजनीतिक व्यवस्था (Political system)
- राजनीतिक व्यवस्था संरचना की छोटी इकाई कुल अथवा परिवार थी जिसका प्रधान कुलप होता था।
- परिवारों को मिलाकर ‘ग्राम’ बनता था, जिसके प्रधान को ग्रामणी कहा जाता था
- अनेक गाँवों को मिलाकर विश बनते थे। ‘विशपति’ विश का प्रधान था। विशों क् समूह ‘जन’ होता था इसके अधिपति को ‘जनपति’ या राजा माना जाता था।
- जनपद, राष्ट्र तथा राज्य इत्यादि शब्दों का उल्लेख मिलता है।
- दशराज्ञ युद्ध का वर्णन (ऋग्वेद के 7 वे मण्डल मे ) है।
- इसमें भारत जन के स्वामी सुदास ने रावी (पुरुष्णी) नदी के तट पर दस राजों के संघ को हराया था। राजाओं के संघ को नेतृत्व पुरू ने किया था।
- सभा, समिति तथा विदथ जनप्रतिनिधि संस्थाएँ थी। इन संस्थाओं में राजनीतिक, सामाजिक, , धार्मिक तथा आर्थिक प्रश्नों पर विचार किया जाता था।
- राजा का राज्याभिषेक होता था। इस अवसर पर ग्रामणी, रथकार, कर्मादिक, पुरोहित, सेनानी जैसे अधिकारी उपस्थित होते थे। इनको सामूहिक रूप से रत्निन कहा जाता था।
- प्राशासन में सबसे प्रुमख पुरोहित होता था, जो राजा को सलाह देने के लिए और उसके अलावा मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता था।
- इन अधिकारियों के साथ पुरफ तथा दुत भी उल्लेखनीय थे। पुरप दुर्गा की रक्षा के लिए उत्तरदायी था।
- सभा विशिष्ट जनों की संस्था थी। इसमे आम सभा थी। जिसका अध्यक्ष ईशान कहलाता था।
- समिति ही राजा का निर्वाचन करती थी वैदिकालीन न्यायधीश को प्रश्न विनाक कहा जाता था।
- विदथ, आर्यो की सर्वाधिक प्राचीन स्स्था थी। बलि एक प्रकार का कर था।
उत्तरवैदिक काल
- उत्तरवैदिक काल की जानकारी के स्त्रोत तीन अन्य वेद है। यजुर्वेद, सामवेद, तथा अथर्ववेद।
- आर्यो ने स्थायी जीवन व्यतीत करना आरम्भ कर दिया। पशुपालन की जगह कृषि को अधिक महत्त्व मिलने लगा। चित्रित धूसर मृदभाण्ड तथा लोहा इसी काल की विशिष्टता हैं।
आर्थिक जीवन
- इस समय आर्यो का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
- सम्पति पर एकाधिकारिता की प्रवृति उभरी। धनवान व्यक्ति इभ्य कहलाते थे। लोहे के प्रसार ने खेती को सुलभ बना दिया था।
- कृषि में उन्नति से अन्न तथा उद्योग-धन्धों में भी प्रगति आई।
निष्क शतमान तथा कृष्णल जैसे सिक्कों की चर्चा निलती हैओ। वणिक संघो-गण तथा श्रेष्ठिन के अस्तित्व में आने की सूचना उत्तरवैदिक ग्रन्थों से भी मिलती है। - रथ निर्माण, धनुष बनाने वाले तथा वस्त्र निर्माण से शाषकों को राजकीय करों की प्राप्ति होने लगी थी
- वाणिज्य में विस्तार से वैश्यों को महत्त्व मिला। शतपथ ब्राह्मण में कृषि की चारों क्रियाओं जुताई, बुआई, कटाई तथा मड़ाई का उल्लेख हुआ। हल को सिरा कहा जाता था।
- चित्रित धूसर मृदभाण्ड का प्रयोग किया जाता था। लाल मृदभाण्ड इस काल में सर्वाधिक प्रचलित थे।
- काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा खींचे जाने वाले हलों का उल्लेख मिलता है। तैत्तरीय उपनिषद् में अन्न को ब्रह्मा तथा यजुर्वेद में हल को सीर कहा गया।
- अतरंजी खेड़ा (एटा उ.प्र. Uttar Pradesh) में सर्वप्रथम लोहे के प्रयोग प्रमाण मिलते हैं।
- कृषि भूमि पर व्यक्तिगत अधिकार की भवना धीरे-धीरे मजबूत होने लगी थी, लोग खाद के प्रयोग से परिचित थे।
- व्यापार में ब्याज पर धन देने ( कुसीदीन) का प्रचलन था। नियमित सिक्कों का प्रचलन आरम्भ नही हुआ।
सामाजिक संरचना
- समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार था। परिवार का मुखिया पिता होता था। समाज में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई।
- महिलाओं को सभा की सदस्यता से वंचित कर दिया गया। उत्तर वैदिक काल में पुत्री का जन्म अच्छा नही माना गया।
- वर्णभेद कर्म मूलक ही था किन्तु यह जन्म मूलक बन रहा था।
- समाज में ब्राह्मण तथा क्षत्रिय विशेषाधिकारों का उपयोग करने लगे थे। वैश्य प्रमुख ‘कर’ दाता था तथा शूद्रो की दशा समाज में निम्न थी।
- जबालोपनिषद् में पहली बार मनुष्य के जीवन को चार आश्रमों मे बाँटा गया-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास, गृह निर्माण तथा नृत्य मनोरंजन के साधन थे।
- व्रात्य तथा निषाद नामक अनार्य जातियों की चर्चा उत्तर वैदिक ग्रन्थों में मिलती है।
- ये वैदिक संस्कृति का पालन न करने के कारण अमार्य कहलाए।
राजनीतिक व्यवस्था
- इस समय राजा को राजन कहा जाता था। ऋग्वैदिक कालीन कबीलों ने जनपद रूप ग्रहण किया।
- जैसे पुरु + भारत = कुरु, तुर्वश + क्रिपि = पाँचाल
- कुरु तथा पाँचाल जनपद सबसे प्रसिद्ध थे।
- विदेह के राजा जनक, काशी के अजातशत्रु आदि प्रसिद्ध दार्शनिक थे।
- सभा तथा समिति जैसी संस्थाओं का नियन्त्रण में कम हुआ और राजा अधिक शक्ति सम्पन्न होने लगे थे। विद्थग पूर्णतः नष्ट हो गई थी।
- अधिकारीगण राजा के सीधे नियन्त्रण में थे
- राजसूय, वाजपेय तथा अश्वमेध यज्ञों के माध्यम से राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई।
- ‘एकराट’ सम्राट व स्वराट जैसी उपाधियों को शासकों ने ग्रहण किया।
- राजा का राज्याभिषेक राजसूय यज्ञ द्वारा सम्पन्न होता था इसमें राजा के 12 रत्निन भाग लेते थे।
- इन्हे रत्निन इसलिए कहा जाता था क्योंकि यें कान में रत्न धारण करते थे। राजा क पद वंशानुगत हुआ न्यायालय ग्राम्य वादिन कहलाते थे।
- उत्तर वैदिक काल में संगृहित, भागदुध, सूत, गोविकर्तन जैसे अधिकारियों का अस्तित्व सामने आया था।
- निचले स्तर पर प्रशासन सम्भवतः ग्राम पंचायत के जिम्मे था, जिन पर प्रधान कबीले से सरदारों को नियन्त्र होता था।
ऐतरेय ब्राह्मण में वर्णित शासन-उपाधि
क्षेत्र | शासन | उपाधि |
पूर्व (प्राची) पश्चिम (प्रतीची) उत्तर (उदीची) दक्षित | साम्राज्य स्वराज्य वैराज्य भोज्य | सम्राट स्वराट विराट भोज
|
उत्तरवैदिक अधिकारी वर्ग
कार्य | अधिकारी | कार्य | अधिकारी |
राजा का सलाहकार
राजा का उत्तराधिकारी रथवाहक (सारथी) कोषाध्यक्ष कर संग्रह करने वाले जुए निरीक्षक | पुरोहित
युवराज सुत संगृहित भागदुध आक्षवाप, क्षतृ | आखेट में राजा का साथी दूत ग्राम प्रशासक सेना का प्रधान पुलिस अधिकारी न्यायधीश | गोविकर्तन
पालागल ग्रामणी सेनानी जीवग्रिभ ग्राम्यवादिन
|
पंच महायज्ञ
- ब्रह्म यज्ञ- पठन-पाठन या प्राचीन या प्राचीन ऋषि के प्रति कृतज्ञता
- देव यज्ञ- हवन द्वारा देवताओं की पूजा-अर्चना
- पितृ यज्ञ- पितरों का तर्पण ( जल और भोजन) द्वारा
- नृतज्ञ या मनुष्य यज्ञ- अतिथि-सत्कार द्वारा
- भूत यज्ञ या बलि- चींटियों, पक्षियों आदि को भोजन द्वारा।
ऋग्वैदिक देवता
देवता | सम्बन्ध |
वरुण इन्द्र पूषन अग्नि मरुत आश्विन घौ सोम उषा विष्णु सुर्य | ऋतु का संरक्षक युद्ध में नेतृत्वकर्ता चरागाहों का स्वामी ( पशुओं का संरक्षक) ब्रह्मा से जोड़ने वाला (यज्ञों का देवता) आँधी-तूफान का देवता विपत्तियों को हराने वाला आकाश का देवता (सबसे प्राचीन) वनस्पतियों का स्वामी प्रगति एवं उत्थान की देवी सृष्टि का नियामक जीवन देने वाला देवता ( भुवनचक्षु)
|
उत्तरवैदिक यज्ञ
राजसूय राजा के राज्यभिषेक के अवसर पर यह यज्ञ किया जाता था। इस यज्ञ के माध्यम से राजा में दिव्य शक्तियाँ प्रत्यारोपित करने का कार्य होता था।
वाजपेय राजा अपने शौर्य तथा शक्ति-प्रदर्शन के लिए इस यज्ञ का आयोजन करता था। इसमें रथ दौड़ के माध्यम से जनता का मनोरंजन भी किया जाता था।
अश्वेमेघ साम्राज्य विस्तार तथा पड़ोसी शासकों को चुनौती देने के लिए इस यज्ञ आयोजित किया जाता था। इस यज्ञ में घोड़ा राजा के प्रभुत्व का प्रतीक माना जाता था।
अग्निष्टोम पशु बलि की प्रणाली को इस यज्ञ का मूल माना जाता था। अग्नि देव को प्रसन्न करने के लिए इसका आयोजन होता था।
षोड्श संस्कार
संस्कार का अर्थ है परिष्कार अथवा शुद्धिकरण। इसके माधयम से व्यक्ति को समाज के एक योग्य नागरिक के रूप में तैयार किया जाता था ये संस्कार जन्म पुर्व से लेकर मृत्युपर्यन्त चलते रहते थे।
गृह्य सुत्रों मे निम्न 16 प्रकार के संस्कारों की मान्यता है।
- गर्भाधान जब जीव माँ क् उदर में प्रवेश करता है।, वह समय गर्भा कहलाता है। इस समय किए गए संस्कार को गर्भाधान संस्कार कहा जाता है।
- पुंसवन गर्भ के तीसरे महीने में यह संस्कार पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु सम्पन्न कराया जाता है।
- सीमंतोन्नयन इसमें गर्भिणी स्त्री के बालों को ऊपर उठाया जाता है। तथा अनिष्टकारी शक्तियों से बचाने के लिए यह संस्कार समपादित होता है।
- जातकर्म बालक के जन्म के समय को जातकर्म कहा जाता है।
- नामकरण जन्म के 10वे या 12वे दिन नामकरण किया जाता है।
- निष्क्रमण जन पहला बार बालक घर से बाहर निकलता है। ( 12वे दिने से लेकरर चौथे मास के बीच) तब निष्क्रमण संस्कार सम्पन्न होता है।
- अन्नप्राशन जब बालक को पहली बार अन्न खिलाया जाता है। (सामान्यः 6वे महीने में) तब यह संस्कार होता है।
- चूड़ाकर्म जब बालक के पहली बार बाल कटाये जाते है। ( पहले या तीसरे वर्ष में इसे शुभ माना जाता है।)
- कर्ण वेधन इस संस्कार में बालक का कर्ण छेदा जाता था। इसे पहले तीसरे एवं पाँचेवें वर्ष में शुभ माना जाता है।
- विद्यारम्भ यह संस्कार जन्म के पाँचवे वर्ष में सम्पन्न होता था।
- उपनयन संस्कार उपनयन संस्कार के बाद बालक द्विज कहलाता था। द्विज का अर्थ है पुनर्जन्म। इस संस्कार में गुरु आश्रम आने से पहले यज्ञोपवीत धारण कराया जाता था। इसमें तीन धागें होते थे, जिन्हे सत् रज एवम् तम का प्रतीक माना जाता था उपनयन संस्कार मुख्यतः शिक्षा से सम्बन्धित था।
- वेदारम्भ यह संस्कार गुरु आश्रम में वेद पाठ कराने के समय यह संस्कार सम्पन्न होता था।
- केशान्त अथवा गोदान इस संस्कार में विद्यार्थी की प्रथम बार दाढ़ी-मूँछ बनवाई जाती थी।
- समावर्तन यह संस्कार गुरु द्वारा सम्पादित होता था. गुरुकुल में शिक्षा समाप्त कर लेने के पश्चात् विद्यार्थी के घर लौटने के पुर्व यह संस्कार सम्पन्न होता था इसे स्नान भी कहा जाता था।
- विवाह इस संस्कार के बाद स्नातक गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता था।
- अन्त्येष्टि यह संस्कार मृत्योपरान्त सम्पादित किया जाता था।
विवाह
विवाह एक पवित्र संस्कार माना जाता था। गृह्य सूत्र में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन मिलता है.
ब्रह्म विवाह यह विवाह का सबसे उत्तम प्रकार माना जाता था। इसमें पिता वर को घर बुलाकर अपनी कन्या को सौंप देता था। इसे आधुनिक विवाह का रूप भी माना जाता है। यह विवाह सबसे अधिक प्रचलन में था।
दैव विवाह इस विवाह में कन्या क् पिता एक यज्ञ का आयोजन करता था और जो ब्राह्मण यज्ञ का सम्पादन करता था।, उसे कन्या दान में देता था।
आर्ष विवाह इसमें कन्या का पिता धर्म कार्य के लिए वर से एक गाय या एक बैल या इनकी एक जोड़ी लेकर वर के साथ कन्या का विवाह कर देता था।
प्रजापत्य विवाह इस विवाह के अन्तर्गत कन्या का पिता वर को प्रदान करते हुए यह आदेश देता था कि दोनों साथ-साथ मिलकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें। इस प्रकार इस विवाह में पिता वर से एक प्रकार की वचनबद्धता प्राप्त कर लेता था।
असुर विवाह यह विक्रय विवाह था। इसमें कन्या का पिता वर से कन्या का मूल्य लेकर बेच देता था।
गन्धर्व विवाह यह प्रेम विवाह था। इसमें माता-पिता को जानकारी नही होती थी।
स्वयंवर गन्धर्व विवाह का एक रूप था।
राक्षस विवाह इसे अपहरण विवाह भी कहा जाता था क्षत्रियों में इस विवाह को मान्यता प्राप्त है।
पैशाच विवाह जबरदस्ती और बलात्कार आदि करके किया गया विवाह। यह विवाह का सबसे निकृष्ट रूप था।
उपरोक्त आठ प्रकार के विवाहों मे प्रथम चार ब्रह्म, दैव, आर्ष एवं प्रजापत्य शास्त्र सम्मत माने जाते है। अतः इनमें विवाह विच्छेद अथवा तलाक की अनुमति नही थी जबकि शेष चार विवाहों में विवाह विच्छेद की अनुमति थी।
पुरुषार्थ
पुरुषार्थ जीवन के उद्देश्य को व्याख्यायित करते है। इनकी संख्या चार है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन्हें सम्मिलित रूप से चतुवर्ग कहा गया है। जबकि धर्म, अर्थ, व काम को त्रिवर्ग।
ऋग्वैदिककालीन नदियाँ
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
क्रुभु कुभा वितस्ता अस्किनी परुष्णी शतुद्रि विपाशा सदानीरा द्षद्वती गोमल स्वात् | कुर्रम काबुल झेलम चिनाब रावी सतलज व्यास गण्डक घग्घर गोमती सुवास्तु |
वैदिक साहित्य (Vedic literature )
सम्पूर्ण वैदिक साहित्य को दो भागों में बाँटा गया है। ये है
- श्रुति साहित्य – इसमें वेदों के अतिरिक्त ब्राह्मण, अरण्यक तथा उपनिषद् आते है।
- स्मृति साहित्य – इसमें सूत्र तथा स्मृति ग्रन्थ शामिल हैं।
श्रुति साहित्य (Shruti literature)
ऋग्वेद यह 10 मण्डलों में विभाजित है। इसमें देवताओं की स्तुति में 1028 सूक्त है, जिसमें 11 बालखिल्य सूक्त है।
- सूक्त का अर्थ है ‘अच्छी उक्ति’। मन्त्रो को ऋचा भी कहा जाता है।
- दो से सात तक के मण्डल सबसे पुराने माने जाते है। दसवाँ मण्डल जिसमें पुरुष सूक्त भी है सबसे बाद का है। ऋग्वेद की भाषा पद्यात्मक है।
- सवाद सूक्त को भारतीय नाटक की अंकुरावस्था माना जाता है।
- ऋग्वेद में 33 देवताओं उल्लेख है। ऋग्वेद का पाठ करने वाले ब्राह्मण होतृ कहलाते थे।
- सरस्वती के प्रवाह क्षेत्र को देवकृत योनि कहा गया है।
- ऋग्वेद मे सर्वाधिक पवित्र नदी के रूप में सरस्वती (नदीतमा) का वर्णन हुआ है तथा ऊषा, अदिति, सूर्या जैसी देवियों का भी उल्लेख है।
- सत्यमेव जयते ‘मुण्डकोपनिषद्’ से तथा असतो मा सद् गसय ऋग्वेद से लिया गया है। गायत्री मन्त्र (तीसरा मण्डल ) का उल्लेख भी ऋग्वेद में मिलता है।
ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ
- वाष्कल, शाकल, आश्वलायन, शंखायन, मण्डुक्य
सामवेद इस वेद से सम्बन्धित श्लोक तथा मन्त्रों का गायन करने वाले पुरोहित के विविध पदों का उल्लेख हुआ है।
- इसके अधिकांश मन्त्र ऋग्वेद से लेकर गायन योग्य बनाए गए है।
- इसे भारतीय संगीतशास्त्र पर प्राचीनतम् पुस्तक माना जाता है। इसकी तीन शाखाएँ है। -कौथम , जैमिनीय एवं राणायनीय।
यजुर्वेद यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है।
इकके दो पाठान्तर है।
- कृष्ण यजुर्वेद ( गद्य )
- शुक्ल यजुर्वेद ( पद्य )
- इसका गायन करने वाले पुरोहित अध्वर्यू कहलाते है।
- कृषि, सिचाई तथा चावल की किस्मों की जानकारी मिलती है।
- राजसूय, वाजपेय तथा अस्वमेघ यज्ञ का उल्लेख है। रत्ननों की चर्चा भी मिलती है।
अथर्ववेद इसकी रचना अथर्वा ऋषि ने की थी। इसके अधिकांश मंन्त्रों का सम्बन्ध तन्त्र-मन्त्र या जादू टोनों से है।
- इसमें तत्कालीन औषधि एवं विज्ञान सम्बन्धी जानकारी है।
- इसमें ‘सभा तथा समिति’ को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।
- सर्वोच्च शासक को अर्थवेद में ‘एकराट’ कहा गया।
- अथर्ववेद मन्त्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित का ब्राह्म कहा जाता था।
- अथर्ववेद में मवेशियों की वृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती थी।
उपवेद ये, वेदों परिशिष्ट हैं जिनके माध्यम मे वेदों की तकनीकी बातों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
वेदांग वेदों की क्लिष्टता को कम करने के लिए वेदांगों की रचना हुई।
वेदांग एवं उनसे सम्बन्धि विषय
वेदांग | सम्बन्धित |
शिक्षा कल्प व्य़ाकरण निरुक्त छन्द ज्योतिष | शुद्ध उच्चारण यज्ञों का सम्पादन व्य़ाकरणिक नियम शब्दों की व्युतपत्ति छन्दों का प्रयोग ज्योतिषशास्त्र का विकाश |
- व्याकरण की सबसे पहली तथा व्यापक रचना पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी’ है। जो पाँचवी शताब्दी ई.पू. लिखी गई।
- ज्योतिष का प्रथम ग्रन्थ लगधमुनि द्वारा रचित वेदांग ज्योतिष है।
- ब्राह्मण ग्रन्थ वेदों की आध्यात्मिक व्याख्या के लिए ब्राह्मण ग्रन्थों की रजना की गई। यह गद्य में है।
- तैत्तिरीय ब्राह्मण के अनुसार, ब्राह्मण सूत का ,क्षत्रिय सन का और वैश्य ऊन का यज्ञोंपवीत धारण 8करते थे।
- श्वेताश्वर उपनिषद् रुद्र देवता को समर्पित है, जिसमें उनका शिव के रूप में वर्णन है।
वेद, उपवेद एवं प्रमुख ब्राह्मण ग्रन्थ
वेद | उपवेद | रचनाकार | ब्राह्मण |
ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद अथर्वेद | आयुर्वेद गन्धर्ववेद धुनर्वेद शिल्प वेद | धनवन्तरि भरतमुनि विश्वामित्र विश्वकर्मा | ऐतरेय, कौषीतकी पंचविश, जैमिनीय, ष़डविश तैत्तिरीय, शतपथ, ताण्डव गोपथ
|
अरण्यक ग्रन्थ ऋषियों द्वारा जंगलों में रचित ग्रन्थ अरण्यक कहलाते है। ये ज्ञान तथा कर्म मार्ग के बीच एक सेतु का कार्य करते है। प्रमुख अरण्यक ग्रन्थ है। ऐतरीय, कौषीतकी, वृहदारण्यक, छान्दोंग्य, जैमिनीय आदि।
उपनिषद्
- वेदों की दार्शनिक व्याख्या के लिए उपनिषदों की रचना की गई। उपनिषदों में आत्मा, जीव,ब्राह्म जैसे गूढ़ दार्शनिक मतों को समझने का प्रयास किया गया है। इन्हे वेदान्त भी कहा जाता है।
- वृहदारण्यक, छान्दोग्य,कठ, मण्डूक इत्यादि प्रसिद्ध उपनिषद् है। यम तथा नचिकेता संवाद कठोपनिषद् में है। श्वेतकेतु एवं उसके पिता के संवाद छान्दोग्य उपनिषद् में है.
- उपनिषदों की कुल संख्या – 108
- महापुराणों की संख्या – 18
स्मृति साहित्य (Memory literature)
- इसके अन्तर्गत स्मृति, पुराण तथा धर्मशास्त्र आते है।
- स्मृतियाँ हिन्दू धर्म के कानूनी ग्रन्थ है। विष्णु स्मृति (गुप्तकाल) को छोड़कर शेष सभी स्मृतियाँ पद्य में लिखी गई है।
- मनु स्मृति सबसे प्राचीन स्मृति है। इसकी रचना शुंगकाल में हुई।
- पुराणों का संकलन लोमहर्षा तथा उनके पुत्र उग्रश्ववा ने किया।
- पुराणों के वर्तमान स्वरूप की रचना समभवतया तीसरी और चौथी शताब्दी में हुई।
- सबसे प्राचीन पुराण मत्स्य पुराण है।
- श्रीमद् भागवत गीता महाभारत के भीष्म पर्व का अगं है।
षड्दर्शन
वैदिक साहित्य के अतिरिक्त भारतीय समाज तथा दर्शन को दिशा देने वाले ग्रऩ्थ है।
षड्दर्शन एवं प्रवर्तक
दर्शन | प्रवर्तक | दर्शन | प्रवर्तक | दर्शन | प्रवर्तक |
सांख्य वैशेषिक | कपिल कणाद | न्याय पूर्व मीमांसा | गौतम जैमिनी | योग उत्तर मीमांसा | पंतजलि बादरायण |
शब्दावली
उर्वरा जुते हुए खेत को कहा जाता था
खिल्य पशुचरण योग्य भूमि या चरागाह
सृणि फसल काटने का यन्त्र ( हँसिया)
करीष इस शब्द का प्रयोग गोबर की खाद के लिए होता था
अवट इस शब्द को प्रयोग कूपों के लिए होता था।
सीता इस शब्द को प्रयोग हल से बनी नालिंयों के लिए होता था।
नैष्ठिक ऐसे विद्यार्थी जो जीवनपर्यन्त शिक्षा ग्रहण करते थे।
उपकुर्वाण निश्चित समय तक शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी।
ब्रह्मवादिनी वे कन्याएँ जो आजीवन शिक्षा ग्रहण करती थीं।
साघोंवधू विवाह पुर्व तक शिक्षा ग्रहण करने वाली कन्याएँ।
अनुमोल विवाह पुरुष उच्च वर्ण का तथा कन्या निम्न वर्ण की।
प्रतिलोम विवाह पुरुष निम्न वर्ण का तथा कन्य़ा उच्च वर्ण की।
क्षेत्रज नियोग प्रथा से उत्पन्न प्रथा सन्तान।
रुक्म गले में पहना जाने वाला स्वर्ण हार।
वसोवाय कपड़ा बुनने वाला वर्ग।
द्रोण अनाज मापने का बर्तन।
दीनार सोने का सिक्का।
ईशान समिति का प्रमुख।
निष्क स्वर्ण का आभूषण।
खादि अँगूठी सीर हल लांगल हल वृक बैल।
कीवाश हलवाहा युप बलि स्तम्भ
धार्मिक आन्दोलन Religious Movements
छठी शताब्दी ई.पू. धार्मिक आन्दोंलनों की शताब्दी मानी जाती है। इस समय यूनान में हेराक्लिज, ईरान में जरथ्रुष्ट, चीन में कनफ्यूशियस तथा भारत में जैन तथा बौद्ध धर्म अस्तित्व में आए।
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बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के पुर्व अन्य धार्मिक आन्दोलन
सम्प्रदाय | संस्थापक |
आजीवक घोर अक्रियावादी नितान्त भौतिकवादी/उच्छेदवादी नित्यवादी अनिश्चयवादी/ संदेहवादी | मक्खलिपुत्र गोशाला पुरणकश्यप अजित केशकम्बलिन पकुध कच्चायन संजय वेलट्ठलिपुत्त |
जैन धर्म
जैन धर्म विचार के अनुसार जैनों के 24 तीर्थकर हुए। ऋषभदेव पहले तीर्थकर थे।ऋग्वेद में ऋषभवेद व अरिष्टनेमि की चर्चा है।
पार्श्वनाथ 23वे तथा महावीर अन्तिम (24वे) तीर्थकर थे।
- जैन धर्म दो पन्थों-श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में बँट गया था। श्वोताम्बर श्वेत वस्त्र धारण करते है।, जबकि दिगम्बर पन्थ को मानने वाले वस्त्रों को परित्याग करते है।
- महावीर स्वामी की मृत्यु का बाद जैन संघ का प्रथम अध्यक्ष सुधर्मन था।
जैन महासंगीतियाँ
संगीत | समय | स्थल | संगीति अध्यक्ष |
प्रथम द्वितीय | 322 से 298 ई.पू. 512 ई. | पाटिलपुत्र वल्लभी | स्थूल भद्र देवर्द्धिगणि क्षमाश्रवण |
उद्देश्य धर्मग्रन्थों का संकलन लिपिबद्ध करना।
त्रिरत्न सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन व सम्यक् आचरण
महावीर स्वामी एक द्रष्टि में
जन्म 540 -ई. पुर्व
जन्म स्थान वैशाली के पास कुण्डग्राम मे
बचपन का नाम वर्द्धनाम
पिता सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रिए कुल)
माता त्रिशला (लिच्छवी नरेश चेटक की बहन)
पत्नी यशोदा
संन्याश धारण 30 वर्ष की अवस्था में (गृहत्याग)
ज्ञान प्राप्ति 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद
स्थान जाम्भिकग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी का तट
ज्ञान कैवल्य की प्राप्ति के बाद महावीर को कैवलिन जिन (विजेता ) अर्हत (योग्य) आदि नामों से जाना जाने लगा।
जैन संघ पावापुरी नें स्थापना
शिष्य आनन्द सुरदेव, महासयग, कुण्डकोलिय, नन्दिनीपिया, कामदेव
मृत्यु काल 468 ई.पू. उम्र 72 वर्ष स्थान पावापुरी (नालंदा)
प्रमुख जैन तीर्थकर एवं उनके प्रतीक
प्रथम द्वितीय इक्कीसवें तेइसवें चौबीसवें | ऋषभदेव अजीतनाथ नेमिनाथ पार्श्वनाथ महावीर | साँड हाथी शंख साँप सिंह |
जैन धर्म से सम्बन्धित पर्वत
कैलाश पर्वत सम्मेद पर्वत वितुलांचल पर्वत माउण्ट आबू पर्वत शत्रुंजय पहाड़ी | ऋषभदेव का शरीर त्याग पा र्श्वनाथ का शरीर त्याग महावीर का प्रथम उपदेश दिलवाड़ा का जैन मन्दिर अनेक जैन मन्दिर |
जैन ग्रन्थ कल्पसूत्र तथा आचरण सूत्र में महावीर की कठोर तपस्या तथा ज्ञान प्राप्ति की चर्चा मिलती है।
- जैन धर्म का अधिकांश ग्रन्थ प्राकृत भाषा में रचित है।
- महावीर से पुर्व पार्श्वनाथ ने चार जैन सिद्धान्त दिए थे। ये हैं सत्य अहिंसा,
- महावीर से पुर्व पार्श्वनाथ ने चार जैन सिद्धान्त दिए थे। ये हैं सत्य अहिंसा, अपरिग्रह, तथा अस्तेय। महावीर ने इसमें पाँचवाँ सिद्धान्त ब्रह्मचर्य, जोड़ा।
- जैन धर्म में स्यादवाद के दर्शन , जिसमें सात सत्य शामिल है। को अनोकांतवाद भी कहा जाता है।
- जैन धर्म में कर्म सिद्धान्त को महत्त्व दिया गया है। मोक्ष को जीव क् परम लक्ष्य बताया गया है।
- महावीर ने समस्त अनुयायियों को 11 गणों मे विभक्त किया तथा प्रत्येक गण में एक प्रधान (गणाधर) नियुक्त कर धर्म प्रचार का दायित्व सौंपा।
- जैन संघ दो भागों में विभाजित हुआ
- दिगम्बर (भद्रबाहु के समर्थक )
- श्वेताम्बर (स्थूलभद्र के समर्थक)
- जैन ग्रन्थों को पूर्व या आगम कहा जाता है।
- इनकी संख्या 12 है।
- जैन ग्रन्थों में परिशिष्ट पर्व, आचरांग सूत्र, भगवती सूत्र, भद्रबाहुचरित आदि महत्त्वपुर्ण है।
- जैन तीर्थकरों का जीवन चरित भद्रबाहु रचित ‘कल्पसूत्र में’ है।
मुख्य तथ्य
- जैन धर्म में अहिंसा पर अत्याधिक बल दिया गया है। इसमें कृषि, एवं युद्ध में भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।
- जैन धर्म में अत्याधिक कायाक्लेष द्वारा निर्माण प्राप्ति सम्भव बताया गया है।
- 19वे तीर्थकार मल्लिनाथ को कुछ लोग स्त्री मानते हैं।
बौद्ध धर्म
- धार्मिक आन्दोलनों से उभरें नवीन धर्मो में बौद्ध धर्म सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध हुआ। इस धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे।
- महात्मा बुद्ध के प्रारम्भिक गुरु आलार कलाम एवं रूद्रक रामपुत्र थे।
- बुद्ध को तथागत एवं शाक्य मुनि भी कहा जाता है।
महात्मा बुद्ध एक द्रष्ठि में
जन्म 563 ई.पू (लगभग 2500 वर्ष पुर्व)
जन्म स्थान लुम्बिनी (कपिलवस्तु)
पिता शुद्धोधन (शाक्यगणराज्य)
माता महामाया देवी
बचपन का नाम सिद्धार्थ
पालन पोषण गौमती प्रजापति (मौसी)
विवाह अवस्था 16 वर्ष
पत्नी यशोधरा ( कोलिय गणराज्य की राजकुमारी)
पुत्र महाभिनिष्क्रमण ( 29 वर्ष की आयु में)
ज्ञान प्राप्ति 35 वर्ष का आयु में वैशाख पुर्णिमा के दिन स्थान बोधगया (बिहार)
प्रथम उपदेश ऋषिपत्तन (सारऩाथ)
मृत्यु काल 483 ई.पू. दिन वैशाख पुर्णिमा स्थान कुशीनगर घटना महापरिनिर्वाण
- बुद्ध संघ एवं धर्म को त्रिरत्न कहा जाता है।
- बौद्ध ग्रन्थों में त्रिपिटक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। ये है विनयपिटक, सुत्तपिटक तथा अभिधम्मपिटक।
- अधिकांश बौद्ध ग्रन्थों की रचना पालि भाषा में हुई।
त्रिपिटक
- सुत्तपिटक इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का उल्लेख है।
- विनयपिटक इसमें बौद्ध संघ के नियमों की व्याख्या की गई है।
- अभिधम्मपिटक इसमें बौद्ध दर्शन पर प्रकाश डाला गया है।
बौद्ध पतीक
घटना प्रतीक जन्म गृह त्याग
ज्ञान
निर्वाण
मृत्यु
कमल एवं साँड घोड़ा
पीपल (वृक्ष)
पद् चिह्न
स्तूप
बौद्ध संगीति
सभा/ संगीती काल स्थान अध्यक्ष शासन काल प्रथम द्वितीय
तृतीय
चतुर्थ
483 ई.पू 383 ई. पू.
255 ई. पू.
प्रथम शताब्दी ई.
राजगृह वैशाली
पाटलिपुत्र
कुण्डलवन
महाकस्सप सब्बकामी
मोग्गलिपुत्त तिस्स
वसुमित्र/अश्वघोष
अजातशत्रु कालाशोक
अशोक
कनिष्क
- चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध दो सम्प्रदायों -हीनयान और महायान में विभक्त हो गया।
- बौद्ध धर्म ने नैतिकता पर बल दिया तथा सत्य और अहिंसा को प्रमुखता दी। निर्वाण (मोक्ष) को अन्तिम लक्ष्य स्वीकार किया गया।
- बौद्ध ने आत्मा को भी अस्वीकार किया है।
चार आर्य सत्य
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य निम्न है।
- जीवन दुखमय है।
- तृष्णा, लालसा, मोह आदि सांसारिक जीवन के कारण है।
- तृष्णा, लालसा मोह आदि को समाप्त र सांसारिक जीवन से मुक्ति पाई जा सकती है।
- इसके लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
- दीपवंश तथा महावंश अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएं है। जिनमें बौद्ध दर्शन तथा सिद्धान्तों की चर्चा मिलती है। महात्मा बुद्ध के पश्चात् बौद्ध कई सम्प्रदोयों में विभक्त हो गया। इसमें प्रमुख है. हीनयान तथा महायान
- हीनयान महात्मा बुद्ध ने दर्शन तथा सिद्धान्तों में विश्वास करने वाला सम्प्रदाय था, जबकि महायान सम्प्रदाय को मानने वाले बुद्ध के साथ बोधिसत्वों के जीवन तथा सिद्धान्तों मे भी विश्वास रखते थे।
- बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी तथा अनात्मवादी है। परन्तु यह पुनर्जन्म को मान्यता देता है।
- प्रतीत्य समुत्पाद बौद्ध दर्शन का मूल तत्व है। इसी से क्षंगभंगवाद की उत्पति हुई है। बुद्ध ने मध्यम मार्ग को अपनाने का उपदेश दिया अर्थात् अधिक सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करना था अत्याघिक कायाक्लेष में संलग्न होना दोनों को वर्जित किया।
शाब्दावली
अस्तेय चोरी न करना।
अपरिग्रह सम्पत्ति न रखना
शलाका पुरूष महान पुरुष
निर्गन्ध अनुयायियों को कहा जाता था (जैन धर्म ) (बन्धन रहित)
कैवल्य ज्ञान
जिन विजेता
संलेखना उपवास द्वारा प्राण त्याग करना।
आस्रव कर्म का जीव की ओर आकार्षित होना।
संवर कर्म का जीव की ओर बहाव रुक जाना।
निर्जरा पहले से व्याप्त कर्म का समाप्त हो जाना।चाण बुद्ध का सारथी।
कऩ्थक बुद्ध का घोड़ा
तथागत सत्य है ज्ञान जिसका।
जविक बुद्ध का अनुयायी तथा प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य
नन्दा बुद्ध की बहन
देवदत्त बुद्ध का चचेरा भाई तथा उनका पुमुख विरोधी।
अनीश्वरवादी ईश्वर को न मानने वालाअनात्मावादी आत्मा को न मानन वाला
उपोसथ भिक्षु-भिक्षुणियों द्वारा एकत्रित होकर धर्म की चर्चा करना।
उपसम्पदा संघ मे प्रविष्टि होने को कहा जाता था।
प्रवज्या गृहस्थ जीवन के त्याग को कहा जाता था।
महाजनपद काल ( Mahajanpadas Age)
- छठी शाताब्दी ई. पू. 16 महाजनपदों को उदय हुआ। इसमें मगध सर्वाधिक शक्तिशाली जनपद था
- भागवती सुत्त (जैन ग्रन्थ) अगुन्तर निकाय (बौद्ध ग्रन्थ) में पहली बार 16 महाजनपदों की चर्चा की गई थी।
- इन महाजनपदों में एकमात्र अश्मक दक्षिण भारत में था जहाँ इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने शासन किया।
16 महाजनपदों को विवरण
महाजनपद राजधानी क्षेत्र अंग मगध
काशी
वत्स
वज्जि
कोशल
अवन्ति
मल्ल
पाँचाल
चैदि
कुरू
मत्स्य
कम्बोज
शूरसेन
अश्मक
गान्धार
चम्पा गिरिव्रज/ राजगृह
वाराणसी
कौशाम्बी
वैशाली
श्रावस्ती
उज्जैन / महिष्मती
कुशावती
अहिच्छत्र
सुक्तिमती
इन्द्रप्रस्थ
विराटनाग
हाटक
मथुरा
पोटली/पोतन
तक्षशिला
भागलपुर, मुगेर (बिहार) पटना, गया (बिहार)
वाराणसी के आस-पास (उत्तर प्रदेश)
इलाहाबाद
मुजफ्फरपुर
फैजाबाद
मालवा (मध्य प्रदेश)
देवरिया (उत्तर प्रदेश)
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
बुन्देलखण्ड
आधुनिक दिल्ली , मेरठ, एवं हरियाणा
जयपुर (राजस्थान)
राजोरी एवं हजारा
मथुरा (उत्तर प्रदेश)
गोदावरी नदी क्षेत्र
रावलपिण्डी (पाकिस्थान)
मगध साम्राज्य (Magadha Empire)
मगध पर शासन करने वाला पहला शासकीय वंश हर्यकं वंश था। इसके बाद शिशुनाग तथा नन्द वंश ने शासन किया था नन्दों को समाप्त कर मौर्य वंश ने सासन आरम्भ किया।
हर्यक वंश ( 544-492 ई.पू.)
- बिम्बिसार (श्रेणिक) हर्यक वंश का पहला साम्राज्यवादी शासक था. महावंश (बौद्ध ग्रन्थ) के अनसार उनके पिता भट्टिय तथा उनकी राजधानी राजगृह गिरिव्रज थी।
- बिम्बिसार का शासन 544-492 ई.पू. तक था। 492 ई.पू. में अजातशत्रु (कुणिक ) ने पिता बिम्बिसार की हत्या कर सिंहासन प्राप्त किया था.
- बिम्बिसार ने अपनी शक्ति तथा साम्राज्य में विस्तार के लिए मद्र, कोशल , लिच्छवि तथा गान्धार से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। उसकी पत्नियों के नाम चैलना (छलना) महाकोशला तथा क्षेमा था, यह महात्मा बुद्ध का समकालीन था। जीवक उसका राजवैद्य था।
अजातशत्रु (492-460 ई.पू.)
- अजातशत्रु ने राज्य विस्तार के लिए युद्ध को अपनाया। इन्होंने वैशाली को मगध साम्राज्य का हिस्सा बनाया।
- इनके समय प्रथम बौद्ध संगीति ( राजगृह सप्तपर्णी गुफा ) का आयोजन किया गया।
उदायिन
- अजातशत्रु के पश्चात् उसका पुत्र ‘उदायिन’ शासक बना। इन्होनें ‘पाटलिपुत्र’ नगर की स्थापना की तथा उसे राजधानी बनाया।
- उदायिन के पश्चात् उसके तीन पुत्र अनिरुद्ध, मुण्डक तथा नागदशक (दर्शक) बारी-बारी से हर्यक वंश के शासक हुए। नागदशक इस वंश का अन्तिम शासक था।
- हर्यक वंश को पितृहन्ता वंश भी कहा जाता है। क्योकि सभी शासकों ने अपने पिता की थी।
शिशुनाग वंश (412-344 ई.पू.)
- नागदशक की हत्या कर 412 ई.पू. में शिशुनाग ने इस वंश की स्थापना की। इन्होनें अवन्ति, वत्स तथा कोशल महाजनपद को मगध का अंग बनाया।
- शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक या काकवर्ण था। इनहीं के काल में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में हुआ था। इन्होनें कुछ समय के लिए वैशाली को अपनी राजधानी बनाया।
नन्द वंश (344-324 ई.पू.)
- शिशुनाग वंश के अन्तिम शासक नंदिवर्द्धन की ह्त्या कर महापदमनन्द ने नन्द वंश की स्थापना की। बौद्ध ग्रन्थों में इसे ‘उग्रसेनÆ’ तथा पुराणों में सर्वक्षत्रान्तक तथा एकराट कहा गया। पाणिनि महापदमनन्द के मित्र थे।
- इनकी कलिंग विजय का उल्लेख हाथीगुम्फा अभिलेख से मिलता है।
- धननन्द इस वंश का अन्तिम शासक था। इन्ही के समय यूनानीयों या सिकन्दर का आक्रमण हुआ।
सिकन्दर का आक्रमण
- इन्होंने 326 ई.पू. में भारत पर आक्रमण किया । यह यूनान के मकदुनिया राज्य के शासक फिलिप का पुत्र था। इनके गुरु का नाम अरस्तू था।
- सिकन्दर ने पश्चिमोत्तर भारत के विभिन्न गणतन्त्रों को जीता।
- पंजाब में पोरस के साथ इनका हाईडेस्पीज युद्ध (झेलम का युद्ध ) हुआ। पोरस को बन्दी बना लिया।
- इन्होंने निकैया (विजयनगर) तथा वुकेफाल (घोड़े के नाम पर) नामक दो नगरों की स्थापना की।
- सिकन्दर की सहायता तक्षशिला शासक आम्भी ने की थी।
- 326 ई. पू. में व्यास नदी तक पहुँचकर उनके सैनिकों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया 323 ई.पू. में यूनान वापस लौटते हुए बेबीलोन में सिकन्दर की मृत्यु हुई।
युनानी आक्रमण का प्रभाव
- भारतीयों ने यूनानियों से क्षत्रप प्रणाली एवं मुद्रा निर्माण की कला को ग्रहण किया। उलूक श्रेणी के सिक्के इसी का परिणाम थे।
- गन्धार कला शैली का विकास।
- अश्वारोही सेना को बढ़ावा (हाथियों के जगह)।
- स्थल एवं समुद्री, विदेशी मार्ग की जानकारी।
- सप्ताह का सात दिनों में विभाजन (यूनानियों की देन )।
- नक्षत्र देखकर भविष्य बताने की कला (यूनानियों की देन)।
मोर्य साम्राज्य (The Mouryan Empire )
चन्द्रगुप्त मौर्य (322-297 ई.पू.)
- चाणक्य की सहायता से अन्तिम नन्द शासक धननन्द को हटाकर 322 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य मगध का शासक बना।
- 305 ई.पू.में इसका संघर्ष यूनानी शासक सेल्युकस से हुआ।
- सेल्यूकस के साथ हुई सन्धि सें चन्द्रगुप्त मौर्य को 500 हाथियों के बदले अफगानिस्तान, बलूचिस्थान तथा सिन्धु नदी के पश्चिम का क्षेत्र सौंपा गया।
- सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ किया।
- सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त के दरबार में अपने राजदूत मेगस्थनीज की नियुक्ति की।
- मेगस्थनीज ने इण्डिका की रचना की।
- स्ट्रैबो तथा जस्टिन ने चन्द्रगुप्त को सैण्ड्रोकोटस तथा प्लूटार्क ने एण्ड्रोकोटस कहा है। मुद्राराक्षस में इसे वृषल कहा गया है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र मालवा अवन्ति के साथ सुदूर दक्षिण भारत के कुछ हिस्से को मगध साम्राज्य में मिलाया।
- प्लूर्टाक के अनुसार चन्द्रगुप्त ने 6 लाख सैनिकों के साथ सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला। अन्तिम समय में चन्द्रगुप्त जैन आचार्य भदबाहु के साथ श्रवणबेलगोला गया तथा चन्द्रगिरि पहाड़ी पर सलेंखना विधि से प्राण त्याग दिए।
चन्द्रगुप्त का उदय
चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथा के अनुसार, अन्तिम नन्द शासक धननन्द द्वारा अपमानित किए जाने पर चाणक्य ने उसे समूल नष्ट करने का प्रण किया। संयोगवश विंध्य़ाचल के जंगलों में उसकी भेट राजकलिम नामक खेल खेलते हुए एक बालक से हुई। उससे प्रभावित होकर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को 1000 कार्षापण नें खरीद लिया तथा तक्षशिला ले जाकर 7-8 वर्षो तक विविध कलाओं की शिक्षा दी। शिक्षा-दीक्षा के पश्चात् चाणक्य की कूटनीति और चन्द्रगुप्त के शौर्य एवं रण कौशल द्वारा नन्द वंश के अन्तिम राजा धननन्द का उन्मूलन किया गया।
बिन्दुसार (297-273 ई. पू.)
- यूनानी लेखकों ने बिन्दुसार को अमित्रचेटस कहा है। वायु पुराण में इन्हें मद्रसार तथा जैन ग्रन्थों में सिंहसेन कहा गया।
- इनके शासन काल में तक्षशिला में हुए दो विद्रोहों में प्रथम को अशोक ने तथा दितीय को सुसीम ने दबाया। सीरिया के शासक एण्टीयोकस ने डायमेकस को बिन्दुसार के दरबार में अपना राजदूत बनाया। मिस्त्र के शासक टालेमी द्वितीय ने सीरिया शासक एण्टीयोकस प्रथम से अंगूरी मदिरा, अंजीर तथा दार्शनिक की मागँ की थी।
- इन्होंने आजीवक सम्प्रदाय को संरक्षण दिया। इनकी मृत्यु 273 ई. पू. मे हुई।
अशोक (273-232 ई. पू.)
- अशोक 273 ई.पू. में गद्दी पर बैठा परन्तु उसका राज्याभिषेक 4 वर्षो के बाद 269 ई.पू. में हुआ।
- शासक होने से पूर्व वह तक्षशिला का गवर्नर था।
- सिहंली अनुश्रुतियों (दीपवंस व महावंश ) के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या करके सिंहासन प्राप्त किया था।
- अशोक का नाम उसके 4 अभिलेखों -मास्की, गुर्जरा, निट्टूर, तथा उदगेमल में मिलता है। तथा रुद्रदामन के जूनागढ अभिलेख में भी उल्लिखित है।
- इनकी माँ का नाम सुभडांगी था.
- कश्मीर में अशोक ने श्री नगर की स्थापना की तथा नेपाल में देवपत्तन नगर बसाया।
- राज्याभिषेक के 8वे वर्ष में 261 ई.पू. में कलिंग पर अधिकार किया, वहाँ का राजा नन्दराज था।
- कलिंग विजय के पश्चात् उसने धम्म विजय को अपनाया और उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
- अशोक ने 14वे धम्म महामात्रों की नियुक्ति की। (उल्लेख- 5 शिलालेख में)
- अशोक ने शिलालेख ब्राह्मी, ग्रीक, अरमाइक तथा खरोष्टी लिपि में उत्कीर्ण है। जबकि सभी स्तम्भ लेख प्राकृत भाषा में है।
- शहबाजगढ़ी तथा मानसेहरा के शिलालेख की लिपि खरोष्टी तथा तक्षशिला और लघमान के अभिलेख अरमाइक लिपि में है।
- अशोक की पत्नियों के नाम थे – असंघिमित्र, महादेवी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता तथा कारूवाकी।
मौर्य साम्राज्य के प्रमुक नगर और अभिलेख के प्राप्ति स्थल

चौदह वृहद् शिलालेख एवं वर्णित विषय
पहला पशुबलि की निन्दा
दूसरा मनुष्यों एवं पशुओं दोनों की चिकित्सा की व्यवस्था का उल्लेख। चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्र
एवं केरलपुत्र की चर्चा
तीसरा राजकीय अधिकारीयों (युक्त, रज्जुक और प्रादेशिक) को हर पाँचवे वर्ष दौरा करने का
आदेश।
चौथा भैरीघोष की जगह घम्मघोष की घोषणा।
पाँचवाँ धम्म महामन्त्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी।
छठा धम्म महामात्र किसी भी समय राजा के पास सूचना ला सकता है। प्रतिवेदक का चर्चा
सातवाँ सभी-सम्प्रदायों के लिए सहिष्णुता की बात।
आठवाँ सम्राट की धर्मयात्राओं का उल्लेख। बोधिवृक्ष के भ्रमण के उल्लेख।
ऩौवाँ विभिन्न प्रकार के समारोहों की निन्दा।
दसवाँ ख्याति एवं गौरव की निन्दा तथा धम्म नीति की श्रेष्टता पर बल।
ग्यारहवाँ धम्म नीति की व्याख्या।
बारहवाँ सर्वधर्म समभाव एवं स्त्री महामात्र की चर्चा।
तेरहवाँ कलिंग युद्ध का वर्णन ,, पडोंसी राज्यों का वर्णन अपराध करने वाले आटविक जातियों
का उल्लेख।
चौदवाँ लेखक की गलतियों के कारण इनमें कुछ अशुद्धियाँ हो सकती है।
शब्दावली
पुरोहित राज्य का धर्माधिकारी तथा प्रधानमन्त्री।
समाहर्ता राजस्व विभाग का प्रधान अधिकारी।
सन्निधाता राजकीय कोषाध्यक्ष
प्रदेष्टा फौजदारी (कष्टशोधन) न्यायालय का न्यायाधीश।
व्यावहारिक दीवानी (धर्मस्थीय) न्यायालय का न्यायाधीश।
सीताध्यक्ष राजकीय कृषि विभाग का अध्यक्ष।
लक्षणाध्यक्ष छापेखाने का अध्यक्ष।
पौताध्यक्ष वाणिज्य विभाग का अध्यक्ष।
एस्ट्रोनोमोई जिले एवं सड़क निर्माण का प्रमुख अधिकारी।
रूपदर्शक सिक्कों की जाँच करने वाला अधिकारी।
गोप 10 या 15 गाँवों के ऊपर का प्रमुख अधिकारी।
युक्त राजस्व अधिकारी।
संस्था/ संचरा गुप्तचर संस्थाएँ।
प्रणय संकट काल में वसूला जाने वाला कर।
मौर्योत्तर काल ( Post Mauryan Period)
शुंग वंश (184-75 ई.पू.)
- पुष्यमित्र शुंग एक मौर्य सेनापति था इसने अन्तिम मौर्य वृहद्रथ का हत्या कर 184 ई.पू. में शुंग वंश की स्थापना की।
- पुष्यमित्र ने उज्जयिनी को अपनी राजघानी बनाया। इन्होनें दो बार अश्वमेध यज्ञ ( पतंजिल की सहायता से किए। इन्होंने भरहुत स्तूप का निर्माण कराया। कहा जाता हॆ. कि पुष्यमित्र शुंग ने अशोक द्वारा निर्मित 84000 स्तूपों को नषट कर दिया थाय इसका उत्तराधिकारी अग्निमित्र था। कालीदास ने इनके जीवन पर मालविकाग्निमित्रम् की रचना की।
- अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने इण्डो यूनानी शासक मिनान्डर को पराजित किया।
- इस वंश का अन्तिम शासक देवभूति था, वासुदेव कण्व ने इनकी हत्या कर कण्व की रचना हुई। पतंजलि न् अष्टाध्यायी पर टीका महाभाष्यम् लिखी।
- तक्षशिला के यवन राजदूत हेलियोडोरस ने बेसनगर में गरुड़ स्तम्भ का निर्माण करवाया। शासक भागभद्र के दरबार में आया था।
कणव वंश (75-30 ई.पू.)
- 75 ई.पू. में वसुदेव ने कण्व वंश के प्रथम शासक के रूप में शासन प्रारम्भ किया। इस वंश के चार शासक — वसुदेव, भूमिमित्र, नारायण, तथा सुशर्मण हुए।
- इस वंश के अन्तिम शासक सुशर्मण को सातवाहन शासक सिमुक ने पराजित किया।
हिन्द यवन
- बैक्ट्रिया के शासक डेमेट्रियस ने भारत पर 190 ई.पू. में आक्रमण कर अफगानिस्तान , पंजाब सिन्ध के भू-भाग पर अधिकार किया तथा शाकल को अपनी राजधानी बनाया। इन शासकों में मिनान्डर नाम उल्लेखनीय है। जिसने नागसेन से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली जो मिलिन्दपनहो ग्रन्थ में संकलित है।
- सर्वप्रथम हिन्द-यूनानियों ने स्वर्ण सिक्के भारत में चलाए।
शक/पहलव
- 140 ई.पू. मे शकों ने बैक्ट्रिया तथा पार्थिया पर अधिकार कर लिया।
- शक शासन क्षत्रपों में विभाजित था। इसका एक क्षत्रप गुजरात में स्थित था। इसका प्रममुख शासक रूद्रदामन (130-150 ई. पू. ) था।
- जूनागढ़ से प्राप्त रूद्रदामन का अभिलेख संस्कृत भाषा में है। जिसमें सुदर्शन झील का वर्णन है। जिसका पुनर्निर्माण राज्यपाल सुविशाल ने करवाया था।
- पहलवों क् मुख्य शासक गोन्दोफर्निस था। पहलवों ने तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया। गोन्दोफर्निस (पह्वव शासक) के शासन काल में सेंट थॉमस ईसाई धर्म का प्रचार करने भारत आया था। (पहली शताब्दी ई.)
- पह्लवों को समाप्त कर कुषाण वंश ने शासन आरम्भ किया।
कुषाण वंश
- कुषाण मध्य एशिया के यूची कबीले से सम्बन्धित थे।
- भारत में कुजुल कडफिसेस ने 15 ई. में कुषाण वंश की स्थापना की। इसने ताँबे के सिक्के चलाए। इनके पश्चात् विम कडफिसेस ने तक्षशिला और पंजाब को जीता तथा सोने के सिक्के जारी किए। यह शैव था इन्होने महेस्वर की उपाधि ली। इन्हे कुषाण वंश ने शासन आरम्भ किया।
कनिष्क (78-105 ई. पू.)
- यह 78 ई. में शासक बना। इन्होने पुरुषपुर को अपनी राजधानी बनाया तथा शक सम्वत् प्रारम्भ किया।
- इनके दरबार में नागार्जुन, चरक, अश्वघोष, वसुमित्र जैसे विद्वान रहते थे।
- अन्य विद्वानों में पार्श्च, संघरक्ष व मातृचेर प्रमुख है।
- इनके समय गान्धार कला शैली एवं मथुरा कला शैली का विकाश हुआ।
- कनिष्क के समय में कश्मीर के कुण्डलवन में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ जिसके अध्यक्ष वसुमित्र तथा उपाध्यक्ष अश्वघोष थे।
- कनिष्क ने चीन से रोम को जाने वाले सिल्क मार्ग पर अधिकार कर लिया था।
- भारत का आइन्सटीन नागार्जुन को कहा जाता है। इन्हें रस चिकित्सा का आविष्कारक भी माना जाता है।
- कनिष्क ने कश्मीर को जीतकर वहाँ कनिष्कपुर नगर बसाया।
- कनिष्क के वादद वशिष्क, हुविष्क, कनिष्क II तथा वासुदेव शासक हुए।
- कनिष्क ने महाराज, राजाधिराज तथा देवपुत्र की उपाधियाँ धारण कीं।
- कनिष्क II ने कैसर की उपाधि ली।
- वासुदेव के सिक्कों पर शिव की आकृति मिली।
- भारत से रोम को निर्यात की जाने वाले वस्तुएँ, कालीमिर्च, रेशम, मलमल, सूती वस्त्र तथा रत्न आदि का उल्लेख मिलता है।
- प्लिनी ने रोम से भारत आने वाले सोने की मात्रा पर शोक व्यक्त किया है।
- पश्चिम तट पर बैरीगाजा (भड़ौच) प्रमुख बन्दरगाह था।
- भारत में सर्वप्रथम सोने के सिक्के हिन्द यवन शासकों ने , सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के कुषाणों ने तथा सर्वाधिक सोने के सिक्के गुप्तों ने चलवाए।
मौर्योत्तर कालीन साहित्य
साहित्य | रचनाकार | साहित्य | रचनाकार |
गाथासप्तशती महाभाष्य चरकसंहिता नाट्यशास्त्र कामसुत्र | हाल (प्राकृत भाषा) पंतजलि चरक भरत वात्स्यान | बुद्धचरित, सौन्दरानन्द विभाषाशास्त्र स्वपनवासवदत्ता मृच्छकटिकम् मिलिन्दपन्हों | अश्वघोष वसुमित्र भास शूद्रक नागसेन |
आन्ध्र सातवाहन वंश
- इस वंश का संस्थापक सिमुक था सातकर्णी इस वंश का शक्तिशाली शासक था।
- हाल ने ‘गाथासप्तशती’नामक पुस्तक लिखी थी।
- हाल तथा गौतमीपुत्र शातकर्णी सातवाहन वंश के प्रमुख शासक थे। गौतमी पुत्र ने शक तथा पार्थियनों को पराजित किया।
- वशिष्ठीपुत्र पुलमावि तथा यज्ञ श्री शातकर्णी सातवाहन शासक थे। वशिष्ठीपुत्र ने ‘अमरावती के बौद्ध स्तूप’ का पुनरूद्धार कराया तथा यज्ञ श्री शातकर्णी के सिक्कों पर ‘जलपोत’ उत्कीर्ण है।
- इस काल में ताँबे के अतिरिक्त सीसे के सिक्के भी प्रचलित हुए।
- संगम काल ( Sangam Age )
- संगम तमिल कवियों का संघ या मण्डल था।
- सगंम काल की प्रसिद्ध रचना तमिल व्याकरण तोलकाप्पियम है। इसकी रचना तोलकप्पियर ने की।
- संगम साहित्यों की रचना 300 ई.पू. से 300 ई. के बीच की गई।
- कौटिल्य ने संगम् काल के दक्षिण भारतीय राज्यों को ‘कुल संघ कहा’ था।
- तिरुकाम्पुलियर चोर, चोल, पाण्ड्य तीनों का संगम स्थल था।
विभिन्न संगमों का विवरण
संगम अध्यक्ष संरक्षण एवं संख्या स्थान सदस्यों की संख्या प्रथम द्वितीय
तृतीय
अगस्तय ऋषि तोलकाप्पियर (संस्थापक अध्यक्ष अगस्त्य ऋषि)
नक्कीरर
89 59
49
मदुरै कपाटपुरम
अलैव
उत्तरी मदुरै
541 49
49
चोल वंश
- चोल वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक ‘करिकाल’ था। वह 190 ई. की आस-पास गद्दी पर बैटा। इसके पास शाक्तिशाली नौसेना थी। इसने ‘वेण्णि का युद्ध’ तथा ‘वाहैप्परन्दलई का युद्ध’ जीता था
- करिकाल ने श्रीलंका विजय की तथा वहाँ स लाए गए बंदियों के द्वारा कावेरी नदी पर 160 किमी लम्बा बाँध बनवाया।
- करिकाल ने पत्तिपालै के रचियता रुद्रकन्नार को 16 लाख स्वर्ण मुद्राएँ प्रदान की थी।
- शिल्प्पादिकारम् तथा पटिटनपलै में ‘करिकल’ की चर्चा मिलती है।
- चोल वंश की राजधानी पुहार (कावेरीपट्टनम) थी। ‘पत्तुपात्तु’ में कावेरीपट्टनम की चर्चा है।
- शिल्प्पादिकारम् की रचना ‘इलंगों आदिगल’ तथा मणिमेखलै की रचना शीतले सत्तनार ने की। चोलो का राज चिन्ह बाघ था।
- कोवलन तथा कण्णनी (नायक और नायिका) का उल्लेख शिल्पादिकारम् में मिलता है।
- उरैयूर सूती वस्त्र उत्पादन का प्रमुख केन्द्र था।
पाण्ड्य वंश
- इनकी राजधानी मदुरै थी। नेंडुजेलियन प्रसिद्ध पाण्ड्य शासक था जिसने तलैयालगानम का युद्ध जीता। पत्तुपात्तु में नेंडुजेलियन के जीवन का विवरण है।
- पत्तुपात्तु में किलार तथा नक्कीरर जैसे तमिल कवियों की कविताएँ है।
- नल्लियम्कोडन को अन्तिम संगमकालीन पाण्ड्य शासक माना जाता है।
- प्रथम पाण्ड्य शासक नेडियोन ने समुद्र पूजा आरम्भ माना जाता है।
- इनका चिह्न मछली था।
चेर वंश
- इनका शासन केरल के क्षेत्र पर था।
- इनका राज चिह्न धनुष था।
- इनकी राजधानी वंजि या वंजिपुरम था, जिसे करुर भी कहा जाता था।
- इस वंश का प्रसिद्ध शासक शेनगुट्टवन था, जिसे लाल चेर कहते है।
- चेरों की राजधानी करुर (वंजि ) बडीं संख्या में रोमन में सिक्के व रोमन सुराहियाँ प्राप्त हुई है।
- प्रथम चेर शासक उदियन जेरल के कुरुक्षेत्र के युद्ध में शामिल होने का उल्लेख मिलता है।
- नेंडुनजेराल अदन ने नौ सैनिक शाक्ति स्थापित की तथा अधिराज की उपाधि ग्रहण की।
शब्दावली
तोल्लकापियम द्वितीय संगम का एकमात्र उपलब्ध तमिल व्याकरण ग्रन्थ।
कुरल तमिल लघु उपगदेश गीत है। इसे तमिल साहित्य का बाइबिल कहा जाता है।
ओर्रार गुप्तचर
बेनिगर व्यापारी वर्ग।
पंचतिर्णे प्रेम विवाह।
मरुदम उपजाऊ कृषि भूमि।
नेथल समुद्रवर्ती क्षेत्र।
वेलनाडल मुरुगन (कार्तिकेय) की उपासना में किया जाने वाला नृत्य।
तिरुमल भगवान विष्णु का तमिल में नाम।
गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire)
- इस वंश का प्रारम्भ श्री गुप्त द्वारा किया गया था। श्रीगुप्त के बाद उसका पुत्र घटोत्कच शासक बना।
- इस वंश का वास्तविक संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम को माना जाता है।
चन्द्रगुप्त प्रथम (319-335 ई.)
- इन्होंने महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की थी।
- इन्होंने लिच्छवी राजकुमारी देवी से विवाह किया था जिससे चन्द्रगुप्त को वैशाली का राज्य प्राप्त हुआ।
- सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त प्रथम ने ही रजत ( चाँदी ) मुद्राओं की प्रचलन करवाया था.
समुद्रगुप्त (335-375 ई.)
- यह लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी का पुत्र होने के कारण लिच्छवी दौहित्र कहलाता था।
- हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की विजयों की जानकारी मिलती है। इन्होनें अश्वमेघ यज्ञ कराए। पराक्रमांड्क, सर्वराजोच्छेता आदि उनकी उपाधियाँ थीं।
- इन्होंने कविराज के नाम से कविताएँ लिखीं तथा एक सिक्के पर इन्हे वीणा बजाते दिखाया गया है।
- श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने बोधगया में एक बौद्ध विहार के निर्माण की अनुमति पाने के लिए अपना राजदूत समुद्रगुप्त के पास भेजा था।
- इतिहासकार विन्सेट स्मिथ ने इसे भारत का नेपोलियन कहा ।
- इन्होंने बौद्ध भिक्षु बसुबन्धु को संरक्षण दिया।
चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य ( 380 – 413 ई. )
- समुद्रगुप्त के पश्चात रामगुप्त तथा फिर चन्द्रगुप्त द्वितीय शासक बना।
- चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने वैवाहिक सम्बन्धो और विजय दोनो प्रकार से साम्राज्य का विस्तार किया।
- इनका अन्य नाम देवराज या देवगुप्त मिलता है।
- इनके अभिलेखों तथा मुद्राओं में देवश्री, विक्रम, प्रतिरथ, सिंहविक्रम, सिंहचन्द्र, अजित विक्रम आदि उपाधियों का उल्लेख है।
- इनकी प्रथम राजधानी पाटलिपुत्र तथा द्वितीय उज्जयिनी थी।
- इन्होने शकों पर विजय के उपलक्ष्य में रजत (चाँदी) मुद्राओं का प्रचलन करवाया था तथा शकारि उपाधि ली।
- चन्द्रगुप्त ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वितीय के साथ किया।
- इनके दरबार के नवरत्न थे कालिदास, धनवन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बैताल भट्ट घटकर्पर, वराहमिहिर, और वररुचि।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान( 399 – 412 ई.) भारत यात्रा पर आया था. वह बौद्ध ग्रन्थों के अध्ययन एवं बौद्ध स्थलों को देखने के उद्देश्य से भारत आया। फा का अर्थ धर्म तथा हियान का अर्थ आचार्य होता है। इस प्रकार फाह्यान का अर्थ धर्माचार्य से है। उनके बचपन का नाम कुड था।
फाह्यान के विवरण
- चाण्डलों क् विस्तृत विवरण् जो समाज से बहिष्कृत थे।
- यहाँ मृत्युदण्ड नही दिया जाता था।
- लोग मांस, मदिरा, प्याज, तथा लहसुन नही खाते थे।
- लोग क्रय-विक्रय में कौडियों का प्रयोग करते थे।
- अशोक के राजमहल को देवताओं द्वारा निर्मित बताया गया है।
कुमारगुप्त महेन्द्रदित्य (413 – 467 ई.)
- विक्रमादित्य के पश्चात् कुमारगुप्त शासक बना इसकी माँ का नाम ध्रुव देवी था।
- इनके शासन के अन्तिम दिनों में पुष्यमित्रों का आक्रमण हुआ था।
- इनके शासन में हुणों का आक्रमण हुआ।
- गुप्त शासकों मे सर्वाधिक अभिलेख इन्हीं के प्राप्त हुए है।
- इनकें शासन में मयूर आकृति की रजत मुद्राएँ प्रचलित थी।
- इन्हीं के समय नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
स्कन्दगुप्त (455 – 467 ई.)
- इन्होंने क्रमादित्य तथा शक्रादित्य आदि उपाधियाँ धारण कीं।
- स्कन्दगुप्त ने 466 ई. में चीनी सांग सम्राट के दरबार में राजदूत भेजा।
- स्कन्दगुप्त ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया। (चक्रपालित ने )
- इन्होंने 455 ई. में हुणों का परास्त किया तथा पुष्यमित्रों के विद्रोह को समाप्त किया, जिसका उल्लेख भितरी स्तम्भ लेख में हुआ है।
- नरसिंहगुप्त बालादित्य ने हुण शासक मिहिर कुल को पराजित किया।
गुप्तोत्तर काल (Postgupta Age)
हर्षवर्द्धन (पुष्यभूति वंश) (606 – 647 ई.)
- इनके शासन की जानकारी बाणभट्ट की रचना हर्षचरित से मिलती है।
- थानेश्वर, पुष्यभूति वंश के अधीन था, जबकि कन्नौज पर मौखरि वंश का शासन था। हर्ष के बहनोई ग्रहवर्मा की हत्या हो जाने के बाद उसने कन्नौज से शासन प्रारम्भ किया>
- इन्हें अन्तिम हिन्दू सम्राट तथा साहित्यकार सम्राट भी कहा जाता है।
- नालन्दा, मधुबन तथा बाँसखेड़ा अभिलेख से भी हर्ष के बारे में जानकारी मिलती है।
- ह्वेनसांग के शासनकाल (629 ई.) में भारत की यात्रा पर आया था।
- भानुगुप्त के समय का एरण अभिलेख ( 510 ई.) सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय प्रमाण प्रस्तुत करता है।
- गुप्त वंश का अन्तिम शासक विष्णुगुप्त था। 570 ई. में गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया।
शब्दावली
ध्रुवधिकरण- भूमिकर वसूलने वाला प्रमुख अधिकारी।
अग्रहारिक- दान विभाग का अधिकारी।
करणिक – भूमि अभिलेखों को सुरक्षित रखने वाला अधिकारी।
नगर श्रेष्ठि- नगर के श्रेणियों का प्रधान।
सार्थवाह – व्यापारियों का प्रधान।
प्रथम कुलिक- प्रधान शिल्पी।
प्रथम कायस्थ- मुख्य लेखक।
विषय- जिला।
पेठ- ग्राम से बड़ी इकाई।
वीथि – तहसील।
अप्रहत – बिना जोती गई जंगली भूमि (परती भूमि)।
मरु – रेगिस्तानी भूमि।
देवमातृक- वर्षा द्वारा सींची जाने वाली भूमि।
अग्रहार – ब्राह्मणों को दी जाने वाली भूमि।
अदैवमातृका- बिना वर्षा के अधिक उपज देने वाली भूमि।
अक्षयनीवी धर्म- वह भूमि जिसका क्षय न हो। दान के न्यास को भी अक्षयनीवी कहा जाता था।
श्रेणी- एक ही कार्य करने वाले लोगों का समूह।
पूग- अलग-अलग कार्य करने वाले लोगों का समूह।
निगम- श्रेणियों से बड़ी संस्था जिसकी शिल्प श्रेणियाँ सदस्य थीं। उसे निगम कहा जाता था।
निवर्तन- भूमि माप की इकाई।
भाग- भूमिकर (1/6 से 1/4 तक)।
भोग- राजा को प्रतिदिन फल-फूल के रुप में दिया जाने वाला कर।उद्रंग- स्थायी काश्तकारों पर लगाया जाने वाला कर।
क्षेत्र- खेती के लिए उपयुक्त जमीन।
वास्तु- वास करने योग्य या मकान बनाने योग्य भूमि।
ह्वेनसांग का विवरण (629-645 ई.)
- हर्ष को शिलादित्य कहा है। तथा फीसे या वैश्य जाति का बताया।
- सामन्तों की कई श्रेणियों का उल्लेख था।
- शूद्रो को कृषक बताया है।
- नालन्दा के प्राचार्य शलिभद्र थे। यहाँ 10 हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे।
- कन्नौज की धर्म सभा एवं प्रयाग के महामोक्ष परिषद् का वर्णन किया।
- ह्वेनसांग ने नालन्दा में 1 1/2 वर्ष रहकर शिक्षा ग्रहण की।
- ह्वेनसांग का यात्रा संस्मरण सी-यू-की नाम से संकलित है।
- पुलकेशिन II के एहोल अभिलेख (633-634 ई. ) में हर्ष की नर्मदा तट पर पराजय होने का उल्लेख मिलता है।
- हर्ष ने नागानन्द, रत्नावली तथा प्रियदर्शिका नामक नाटकों की रचना की।
- हर्ष प्रत्येक पाँचवें वर्ष पर प्रयाग में महामोक्ष परिषद् का आयोजन करता था।
- इनके दरबार में बाणभट्ट, मयूर , दिवाकर, जयसेन इत्यादि विद्वान थे। हर्ष ने नालन्दा विश्वविद्यालय के खर्च के लिए 100 गाँवों के दान किया।
- इनके समय कुमार जीव, परमार्थ, शुमाक तथा धर्मदेव चीन गए।
- हर्ष का समकालीन गौड़ नरेश शशांक था जिसने हर्ष के भाई राज्यवर्द्धन की धोखे से हत्या कर दी थी। वह शैव था, उसने बोधिवृक्ष को कटवा दिया था।
- हर्षवर्द्धन की मृत्यु के बाद कन्नौज पर यशोवर्मन ने अधिकार कर लिया।
- यशोवर्मन ने 731 ई. में बुद्ध सेन ( पूरासिन ) को चीन के शासक के पास अपना राजदूत बनाकर भेजा।
कन्नौज के लिए त्रिकोणत्मक संघर्ष
- 8 वी शताब्दी में प्रारम्भ तथा लगभग 200 वर्ष तक चला।
- इस संघर्ष में गुर्जर प्रतिहार, पाल एवं राष्ट्रकूट शामिल थे।
- त्रिकोणत्मक संघर्ष की शुरूवात गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज ने की।
- त्रिकोणत्मक संगर्ष का अन्त गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिरभोज प्रथम ने किया।
बंगाल के वंश
पाल वंश
- 8 वी शताब्दी के मध्य गोपाल (750-770) ई. नामक व्यक्ति ने पाल वंश की स्थापना की। (खलीमपुर अभिलेख)
- धर्मपाल ने प्रतिहार शासक वत्सराज को पराजित किया तथा नागभट्ट द्वितीय ने पराजित हुआ।
- धर्मपाल ने परमभट्टारक, महाराजधिराज तथा परमेश्वर की उपाधि ली तथा इसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय एवं सोमपुर (पहाड़पुर ) में प्रसिद्ध विहारों की स्थापना की।
- देवपाल ने प्रतिहार शासक मिहिरभोज व अमोघवर्ष को परास्त किया।
- इसके शासन काल में शैलेन्द्र वंशी की माँग की।
- अरब यात्री सुलेमान ने पाल वंश को प्रतिहार तथा राष्ट्रकुट के अधिक शक्तिशाली बताया।
सेन वंश
- सामन्तसेन ने पालवंश को परास्त कर सेन वंश की स्थापना की।
- बल्लालसेन (1158-78 ई. ) ने दानसागर तथा अदभुत सागर की रचना की।
- लक्ष्मणसेन (1178-1205ई. ) ने गहड़वाल शासक जयचन्द्र को पराजित किया।
- इनके समय मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी न लखनौती पर अधिकार कर लिया।
- इनके दरबार में गीत गोविन्द के लेखक जयदेव पवनदूत के लेखक धोयी तथा ब्राह्मण सर्वस्व के रचियता हलायुत निवास करते थे।
राजपूत काल Rajput Age
गुर्जर प्रतिहार
- चालुक्य चौहान तथा प्रतिहार परमार का उदभव आबू पर्वत पर वशिष्ठ द्वारा किए यज्ञ के अग्निकुण्ड से हुआ।
- हरिश्चन्द्र ने प्रतिहार वंश की नीव रखी। नागभट्ट प्रथम तथा वत्सराज प्रसिद्ध प्रतिहार शासक थे।
- नागभट्ट द्वितीय ने पाल शासक धर्मपाल को परास्त किया तथा राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द II से परास्त हुआ।
- मिहिरभोज ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।
- महेन्द्रपाल के बारे में जानकारी राजशेखर की काव्यमीमांसा तथा कल्हण की राजतरंगिणी से मिलती है।
- अनंगपाल तोमर ने दिल्ली की स्थापना की थी।
राष्ट्रकूट वंश
- इस वंश का संस्थापक दन्तिदुर्ग था, जिसने 736ई. में मान्यखेत को राजधानी बनाया तथा हिरण्यगर्भ यज्ञ किया।
- कृष्ण प्रथम ने एलोरा में कैलाशनाथ मन्दिर का निर्माण कराया।
- ध्रुव तथा गोविन्द तृतीय राष्ट्रकूट शासक थे।
- अमोघवर्ष ने कविराज मार्ग तथा प्रश्नोत्तर मालिका की रचना की। इसके दरबार में अपभ्रंशु के कवि स्वयंभू रहते था। एक अवसर पर उसने देवी को अपने बाएँ हाथ की अँगुली काटकर चढ़ा दी थी। उसकी तुलना शिव, दधीचि जैसे पौराणिक व्यक्तियों से की जाती है।
- इन्द्र III राष्ट्रकूट के समय अरबी यात्री अलमसुदी भारत आया।
- कृष्ण III ने विजय स्तम्भ तथा रामेश्वरम् मन्दिर का निर्माण किया। उनके दलबार में कन्नड़ भाषा का कवि पोन्न निवास करता था। जिसने शान्ति पुराण की रचना की थी।
गुजरात के चालुक्य या सोलंकी वंश
- इनकी गुजरात की शाखा की राजधानी अन्हिलवाड़ थी।
- मूलराज तथा चामुण्डराय प्रतापी शासक थे।
- भीम I के सामन्त विमलशाह ने आबू पर्वत पर दिलवाड़ा का प्रसिद्ध जैन मन्दिर बनवाया।
- भीमराज I के समय महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मन्दिर को लूटा था।
- कुमारपाल ने जैनों को संरक्षण प्रदान किया। इनका दरबारी कवि हेमचन्द्र था।
- भीम II के समय 1197 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चालुक्य वंश को समाप्त किया।
चन्देल वंश
- नन्नुक ने चन्देल वंश की स्थापना की।
- वाक्पति तथा जयशक्ति प्रारम्भिक चन्देल शासक थे।
- धंग तथा गंड शाक्तशाली चन्देल शासक थे धंग ने प्रयाग के संगम में डूबकर शरीर त्याग दिया।
- धंग ने खजुराहो के मन्दिरों का निर्माण कराया।
- धंग ने पालों को पराजित कर बनारस पर अधिकार किया।
- विद्याघर ने महमूद गजनवी का प्रतिरोध किया।
- परमार्दिदेव (1115-1203 ई. ) अन्तिम चन्देल शासक था, जिसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने पराजित कर कालिंजर पर अधिकार किया।
परमार राजा भोज
- भोज अपनी विद्वता के कारण कविराज उपाधि से प्रख्यात था। कहा जाता है। कि उसने विविध विषयों- चिकित्साशास्त्र, खगोलशास्त्र, धर्म, व्याकरण, स्थापत्यशास्त्र आदि पर बीस से अधिक ग्रन्थों की रचना की। उसके द्वारा लिखित ग्रन्थों में चिकित्साशास्त्र पर आयुर्वेद सर्वस्य एवं स्थापत्यशास्त्र पर समरांगणसूत्रधार विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
- इसके अतिरिक्त सरस्वती, कण्ठाभरण, सिद्धान्त संग्रह, योगसूत्रवृति, राजमार्तण्ड विद्याविनोद,युक्ति-कल्पतरू, चारूचर्चा, आदित्य प्रताप सिद्धान्त आदि प्रमुख हैं।
- भोज ने धारा नगरी का विस्तार किया और वहाँ भोजनशाला ने रूप में प्रख्यात एक महाविद्यालय की स्थापना कर उसमें वाग्देवी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की। इस भोजनशाला की दीवारों के प्रस्तर खण्ड़ों प आज भी संस्कृत श्लोक अभिलिखित है। अपने नाम पर उसने भोजपूर नगर बसाया तथा एक बहुत बड़े भोजसर नामक तालाब को निर्मित करवाया।
- परमार भोज की मृत्यु पर पण्डितों को महान दुःख हुआ था। उसकी मृत्यु पर यह कहावत प्रचलित हो गई कि अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती अर्थात विद्या और विद्वान दोनों निराश्रित हो गए।
- आइने अकबरी के वर्णन के आधार पर माना जाता है। कि उसके राजदरबार में 500 विद्वान थे।
- भोज के दरबारी कवियों में भास्कर भट्ट दामोदर मिश्र तथा धनपाल आदि प्रमुख थे।
चौहान वंश
- इस वंश का संस्थापक वासुदेव था।
- अजयपाल ने अजमेर नगर की स्थापना की।
- विग्रहराज IV अथवा बीसलेदव (1153-1163 ई. ) विजेता के साथ-साथ कवि और लेखक भी था। इन्होंने हरिकेल नामक नाटक लिखा। इनके दरबार में सोमदेव नामक कवि था। जिसने ललित विग्रह राज नामक ग्रन्थ लिखा।
दक्षिण भारतीय साम्राज्य south Indian Empire
- चालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन I ने 535 ई. में की। इनकी राजधानी वातापी या बादामी थी।
- पुलकेशिन II ने हर्षवर्द्धन को नर्मदा के तट पर पराजित किया।
- ह्वेनसांग ने पुलकेशिन II के समय बादामी की यात्रा की थी।
कल्याणी के चालुक्य
- तैलप II ने इस वंश की स्थापना की। इन्होंने परमार नरेश मुंज को पराजित किया। सोमेश्वर I (1043-1068 ई. ) ने राजधानी मान्यखेट से कल्याणी स्थानान्तरित की।
- विक्रमादित्य VI ने विक्रम चालुक्य सम्वत (1070-1126 ई.) का प्रचलन किया। इनके दरबार क में विक्रमांक देवचरित का लेखक विल्हण तथा मिताक्षर के लेखक विज्ञानेश्वेवर थे।
- चालुक्य शासक सोमेश्वर III ने मानसोल्लास नामक ग्रन्थ की रचना की।
- पृथ्वीराज III, 1178 ई. में शासक बना जिसे रायपिथौरा भी कहा जाता था। इन्होंने चन्देल नरेश परमार्दिदेव को परास्त किया। इसी युद्ध में आल्हा-ऊदल नामक सेनानायकों ने भंयकर युद्ध किया था।
- 1191 ई. में तराईन की प्रथम लड़ाई मे पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी को परास्त किया तथा 1192 ई. में तराईन की द्वितीय लड़ाई में पृथ्वीराज मुहम्मद गोरी से परास्त हुआ।
- पृथ्वीराज चौहान का दरबारी कवि चन्दबरदाई था जिसने पृथ्वीराज रासो की रजना की।
शब्दावली
भण्डारवाद ग्राम- ऐसे गाँव जहाँ विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं और वहाँ के किसान
सीधे राजा को भूमिकर देते थे।
ब्रह्मदेय ग्राम- ऐसे ग्राम और ग्राम की जमीन जिन्हें ब्राह्मण या ब्राह्मण समुदाय को दान
में दी गई हो।
अग्रहार ग्राम- ऐसे ग्राम जिसमें केवल ब्राह्मण रहते हो।
देवदान ग्राम- किसी धर्म संस्थान या मन्दिर को दान में दिया गाय ग्राम।
शतक भूमि- जिस भूमि पर निजी स्वामित्व होता था।
कुटुम्बी किसान- ये स्वतन्त्र रूप से खेती करने वाले किसान थे।
सीरिन या त्र्याधिसीरिन- जो किसान बटाई पर खेती करने वाले किसान थे।
दुकुल- पौधों के रेशों से बना हुआ कपड़ा
वाहीत बोई गई भूमि।
कुसीदवृत्ति सूद पर रुपया उधार देना।
घटी-यन्त्र रहट।
सवूकफूरिया सत् क्षत्रिय थे, इसके अन्तर्गत राजवंश, सामन्त वर्ग, और योद्धा क्षत्रिय
वर्ग को सम्मिलित किया जाता था।
कतरिया असत् क्षत्रिय।
कायस्थ एक नवीन जाति, जिसका कार्य लेखा-जोखा रखना था।
पल्लव राजवंश
- इस वंश का संस्थापक सिंहविष्णु (565-600 ई. ) था।
- पल्लवों की राजधानी महाबलीपुरम् थी।
- भारवि (संस्कृत विद्वान) सिंहविष्णु के दरबार में था।
- महेन्द्रवर्मन I ( 600-630 ई.) ने मत्तविलास प्रहसन नामक ग्रन्थ की रचना की।
- नरसिंह वर्मन I (630-80 ई.) ने पुलकेशिन II को पराजित किया था।
पल्लव कालीन स्थापत्य कला शैलियाँ
- महेन्द्रवर्मन शैली इसके अन्तर्गत कठोर पाषाण को काटकर गुफा मन्दिरों का निर्माण हुआ, जिन्हें मण्डप कहा जाता है। मामल्ल शैली का विकास नरसिंहवर्मन I मामल्ल के काल में हुआ। इसके अन्तर्गत दो प्रकार के स्मारक बने-मण्डप मामल्लपुरम् (महाबलिपुरम्) में विद्यमान है।
- रथ मन्दिरों में द्रोपदी रथ सबसे छोटा है। इसमें किसी प्रकार क् अलंकरण नही मिलता है।
- रथ मन्दिरों में धर्मराज रथ सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसे द्रविड मन्दिर शैली का अग्रदूत कहा जा सकता है। इसी रथ मन्दिर पर नरसिंह वर्मन की मूर्ति अंकित है। इन रथों को सप्त-पैगोड़ा कहा जाता है। दुर्भाग्यवश इनकी रचना अपूर्ण रह गई है।
- राजसिंह शैली के अन्तर्गत गुफा मन्दिरों के स्थान पर पाषण, ईट आदि की सहायता से इमारती मन्दिरों का निर्माण करवाया गया। शोर मन्दिर इस शैली का प्रथम उदाहरण है।
- कांची का कैलास मन्दिर एवं बैकुण्ठ पेरुमल मन्दिर इसी शैली में बने है।
- काँची के कैलास मन्दिर का निर्माण नरसिंह II के समय प्रारम्भ हुआ तथा उसके उत्तराधिकारी महेन्द्र वर्मन II के समय में इसकी रचना पूर्ण हुई है।
- बैकुण्ठ
पैरूमल मन्दिर का निर्माण परमेश्वर II के समय में हुआ था यह भगवान विष्णु का मन्दिर है। नन्दिवर्मन शैली के अन्तर्गत अपेक्षाकृत छोटे मन्दिरों का निर्माण हुआ।
उड़ीसा के गंग
- उड़ीसा में 7वी-8वी शताब्दी में गंग राजवंश की सस्थापना हुई।
- नरसिंह देव वर्मन ने कोणार्क के सूये मन्दिर का निर्माण कराया।
- अनन्तवर्मन ने पुरी में जगन्नाथ मन्दिर बनवाया।
- भुवनेश्वर का प्रसिद्ध लिगंराज मन्दिर केसरी शासकों ने निर्मित कराया।
चोल साम्राज्य
- चोल शक्ति का पुनरुत्थान विजयालय ने 850 ई. में किया।
- इन्होंने तंजौर को अपनी राजधानी बनाया तथा नरकेसरी की उपाधि ली।
- आदित्य चोल ने मदुरैकोण्ड की उपाधि ली।
- परान्तक I ने श्रीलंका पर आक्रमण किया।
- स्थानीय स्वशासन की जानकारी उत्तर मेहरुर अभिलेख से मिलती है।
- राजराज I ने तंजौर में राजराजेश्वर मन्दिर का निर्माण कराया।
- राजराज I ने शैलेन्द्र शासक को नागपट्टम में चूडामणि बौद्ध बिहार बनाने की अनुमति दी।
- राजेन्द्र I ने सम्पूर्ण श्रीलंका को जीता तथा अनुराधा पुरम को राजधानी नगर की स्थापना की तथा राजधानी बनाया।
- शैलेन्द्र शासक को परास्त कर जावा, सुमात्रा तथा मलाया को जीता।
- इस वंश का अन्तिम शासक राजेन्द्र III था।
- चोलों की नौ-सेना शक्ति श्रेष्ठ थी।
- इनके शासन काल में गोपुरम शैली का जन्म हुआ।
चोलों का स्थानीय स्वशासन
- तीन प्रकार की ग्राम सभाओं का उल्लेख-उर, सभा या महासभा, नगरम्।
- समिति व्यवस्था लागू जिसे वारियम कहा जाता था।
- उर सर्वसाधारण लोगों की महासभा वरिष्ट ब्राह्मणों (अग्रहार) की तथा नगरम् व्यापारियों की ग्राम सभाएँ थी।
- महासभा को पेरुगुर्रि तथा इसके सदस्यों को पेरुमक्कल कहा जाता था।
- समिति के सदस्यों को चुनने के लिए प्रत्येक गाँव को 30 वार्डों में बाँटा जाता था। प्रत्येक वार्ड से एक-एक व्यक्ति का चुनाव लाटरी द्वारा किया जाता था।
- सार्वजनिक भूमि पर महासभा का स्वामित्व होता था। गाँव के हित के लिए महासभा कर भी लगाती थी।
- कुछ प्रमुख समितियाँ इस प्रकार हैं– तोट्टावारियम् ( उद्यान समिति) एनवारियम् (सिचाई समिति) पोनवारियम् ( स्वर्ण समिति) आदि।
समिति के सदस्यों हेतु योग्यता
आयु 35 से 70 वर्ष के बीच हो, डेढ एकड़ भूमि हो, अपना मकान हो, वैदिक मन्त्रों का ज्ञाता हो। 3 वर्ष से अधिक समय तक समिति का सदस्य रहना, आय-व्यय का ब्यौरा नही देना तथा चोरी करने का अपराध एवं अन्य पाप कर्मो में लिप्त होना समिति के लिए अयोग्यताएँ थी।
शब्दावली
हिरण्य गर्भ इसका शाब्दिक अर्थ सोने का गर्भ होता है।यह एक अनुष्ठान होता था, जिसके
कराएँ जाने का अर्थ था कि व्यक्ति (याजक) जन्मना क्षत्रिय न होते हुए भी क्षत्रिय के रूप में प्रतिष्ठापित हो जाता था।
वेट्टी तमिलनाडु में चोलों के समय नकद की बजाए जबरन श्रम के रूप में लिए जाने
वाला कर।
नाडु अनेक उर गाँवों का समूह।
बेल्लाक धनी किसान।
शालाभोग किसी विद्यालय के रख-रखाव के लिए भूमि।
बैल्लन वगाई गैर-ब्राह्मण किसान की भूमि।
पल्लिच्चन्दम् जैन संस्थाओं को दी गई भूमि।