CTET UPTET Likhane ka Kaushal Writing Skill Study Material in Hindi
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लिखने का कौशल (CTET UPTET Likhane ka Kaushal Writing Skill Study Material in Hindi
रचना भावो, एवं विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। वह शब्दों को क्रम से लिपिबद्ध, सुव्यवस्थित करने की कला है। भावोंच एवं विचारों की यह कलात्मक अभिव्यक्ति जब लिखित रुप में होती है तब उस लेखन अथवा लिखित रचना कहते हैं। अभिव्यक्ति की दृष्टि से लेखन तथा वाचन परस्परपूर्वक होते हैं। वाचन से लिखन कठिन रहोता है। लेखन में वर्तनी का विशेष महत्व है जबकि वाचन में उच्चारण का महत्व होता है उच्चारण की शुद्धता आश्यक तत्व है और लेखन में अक्षरों का सुडौल होना और वर्तनी की शुद्धता आवश्यक तत्व है और लेखन में अक्षरों का सुडौल होना और वर्तनी की शुद्धता होनी चाहिए।
लेखन की कला स्थायी साहित्य का अंग है लेखन की विषयवस्तु साहित्य का क्षेत्र होता है और वाक्य लिखित भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होता है। लेखन में सोचने तथा चिन्तन के लिए अधिक समय मिलता है जबकि वाचन में बावभिव्यक्ति का सतत् प्रबाह बना रहता है सोचने का समय नहीं रहता। मानव जीवन में लेखन तता वाचन दोनों रूपों का महत्व है।
लेखन की अशुद्धियाँ पाठकों तथा आलोचकों की दृष्टियों से बच नहीं सकती है जबकि वाचन में इतना ध्यान नहीं जाता है। इस कारण लेखन में भाषा की शुद्धता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। पाठ्य –सामग्री, विषय –सामग्री भाषा व शैली के परिष्कार पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। लेखन में भाषा, शैली तथा विष्य –सामग्री आदि सभी दृष्टि से शुद्ध होनी चाहिए।
लेखन के माध्यम से साहित्य की विधाओं एवं शैली का निर्माण तथा विकास किया जाता है। साहितेय में स्थायीपन लेखन से आता है। लेखन से अभिव्यक्ति के अनेक रूप है—कहानी, नाटक, निबन्ध, कथाएँ, आत्मकथा, संवाद, संस्मरण, जीवनी, कविता, गद्द गीत, काव्य, आदि। छात्रों को शिक्षण द्वारा इन विधाओं एवं रूपो रसे अव8गगकत कराया जाता है। वाचन में भावात्मक पक्ष की प्रधिनता होती है जो लेखन द्वार सम्भव नहीं हो पाती । स्वर के उतार –चढ़ाव से शब्दों में शक्ति आती है जिससे उसे प्रोत्सहन मिलता जाता है।
सुनने का कौशल (CTET UPTET Important Study Material in Hindi)
वाचन सुनने और सुनकर उसका अर्थ एवं भाव समझने की क्रिया को सुनने का कौशल कहा जाता है। इस कौशल का सैद्धान्तिक पक्ष ध्वनि विज्ञान के अन्तर्गत दिया गया है। सामान्यत: कानों द्वारा उनकी अनुभूति तथा प्रत्यक्षीकरम को श्रवण कहते हैं। मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त भाव एवं विचारों को सुनकर समझना ही श्रवण केशल है। भाषा के सन्दर्भ में अर्ध बोध एवं भाव की प्रतीति सुनने के आवशय्क तत्व होते हैं। इस प्रकार जब कोई व्यक्ति हमारे सामने अपने भाव एवं विचार मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है और हम उसे सुनकर यथा भाव एवं विचार समझने और ग्रहण करते हैं तो हमारी यह क्रिया सुनना अथवा श्रवण कहलाती है, यह बात दूसरी है कि हम यथा भाव एवं विचार किस सीमा तक समझते और ग्रहण करते है।
मूल्यांकन की प्रविधियाँ (CTET UPTET Previous Year Paper)
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मूल्यांकन की प्रक्रिया ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक उददेश्य की प्राप्ति के सम्बन्ध में प्रदत्त का संकलन करती है। परम्परागत परीक्षाओं से ज्ञानात्मक उददेश्यों का ही मापन किया जाता है। मूल्यांकन की प्रक्रिया का क्षेत्र अधिक व्यापक होता है। इसमें अनेक प्रकार की प्रविधियाँ प्रयुक्त की जाती है।
- ज्ञानात्मक उददेश्यों के लिए मौखिक, लिखित, निबन्धात्मक परीक्षाएँ तथा प्रयोगात्मक परीक्षाएँ उपयोग में लाई जाती हैं। निरीक्षण प्रविधि का भी प्रयोग करते हैं।
- भावात्मक उददेश्यों के लिए अभिरुचि सूची (Attitude Scale), रेटिंग स्केल तथा मूल्यों की परीक्षा (Values Test) आदि प्रयुक्त किए जाते हैं। निबन्धात्मक परीक्षाएँ भी आंशिक रूप से प्रयुक्त किए जाते हैं। निबन्धात्मक परीक्षाएँ भी आंशिक रूप स प्रयुक्त की जा सकती हैं।
- क्रियात्मक उददेश्यों के लिए प्रयोगात्मक परीक्षा अधिक उपयोगी मानी जीती है। इसमें छात्रों को छुछ क्रियाएँ करनी पड़ती हैं और उनके कौशल का मूल्यांकन किया जाता है।
मूल्यांकन में मानदण्ड परीक्षा को विशेष महत्व दिया जाता है। इसकी तीन प्रमुख विशेषताएँ होती हैं
- समुचितता (Appropriateness) मानदण्ड परीक्षा समुचित मानी जाती है क्योंकि इसमें उददेश्यों को विशेष महत्व दिया जाता है। परीक्षा के प्रश्न विशिष्ट उददेश्यों की प्राप्ति का मापन करते हैं।
- प्रभावशीलता (Effectiveness) मानदणड परीक्षा का प्रशासन सरल रहोना चहिए। अंकन भी सरल हो तथा शिक्षकों को मान्य होनी चाहिए।
- व्यावहारिकता (Practicability) मानदण्ड परीक्षा का प्रशासन सरल होना चाहिए। अंकन भी सरल हो तथा प्रदत्तो का अर्थापन सार्थक होना चाहिए। परीक्षा छात्रों तथा शिक्षकों को मान्य होनी चाहिए।
अभिक्रमित अनुदेशन के मूल्यांकन में प्रमुख रूप से मानदण्ड परीक्षा को प्रयुक्त किया जाता है। यदि मानदण्ड परीक्षा में छात्रों को अच्छे अंक (90/90 मानदण्ड) नहीं प्राप्त हुए तो यह इस बात का सूचक है कि अधिगम प्रक्रिया प्रभावशाली नहीं है। इसमें परिवर्तन तथा सुधार लाना चाहिए। इस प्रकार अनुदेशन अभिक्रमित की प्रभावशीलता के सम्बन्ध में निर्णय लिया जा सकता है। छात्रों की प्रतिक्रियाओं को एवं उनकी कमजोरियों को जानने के लिए भी मानदण्ड परीक्षा प्रयुक्त कर सकते हैं और उनमें सुधार ला सकते हैं।
मूल्यांकन प्रविधियोंका वर्गीकरण (Classification of Evaluation Techniques)
विद्दालयों में प्रयुक्त की जाने वाली सभी मूल्यांकन प्रविधियों को प्रमुख रूप से दो वर्गो में विभाजित किया जाता है
- परिमाणात्मक (Quantitative) प्रविधि तथा
- गुणात्मक (Qualiative) प्रविधि
- परिमाणत्मक परीक्षाएँ (Quantitative Test)
मूल्यांकन में इस प्रकार की प्रविधियाँ अधिक उपयोगी, विश्वसनीय तथा वैध होती है। ये तीन प्रकार की होती हैं
- मौखिक परीक्षा
- लिखित परीक्षा
- प्रयोगात्मक परीक्षा
- मौखिक –इसमें मौखिक प्रश्न, वाद-विवाद –प्रतियोगिता तथा नाटक आदि को प्रयुक्त किया जाता है।
- लिखित (Written) इसमें प्रश्न लिखित रूप में पूछे जाते है, छात्रों को उनका उत्तर लिखना होता है। लिखित परीक्षाएँ दो प्रकार की होती हैं
- निबन्धात्मक परीक्षाएँ (Essay type test)|
- वस्तुनिष्ठि परीक्षाएँ (Wbjective type test)|
- प्रयोगात्मक (Practical) इसमें छात्रों को कोई निर्धारित कार्या रपूरा करना होता है। विज्ञान, भूगोल, गृह विज्ञान, कला, क्राफ्ट आदि विषयों में इन्हें प्रयुक्त किया जाता है।
2.गुणात्मक परीक्षाएँ (CTET UPTET Study Material Download)
विद्दालय में गुणात्मक परीक्षाओं का उपयोग आन्तरिक मूल्याकंन के लिए किया जाता है। ये साधारतणत: पाँच प्रकार की होती हैं
- संचयी आलेख (Cumulative Records )
- एनेकडोटल आलेख (Anecdotat Records)
- निरीक्षर(Observation)
- जाँच सूची (Check List)
- अनुपस्थिति मापनी (Rating Scale)
- संचयी आलेख विद्दालयों में प्रत्येक छात्र के समबन्ध में सूचानाओं को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित किया जाता है। इसमें शैक्षिक प्रगति, मासिक परीक्षा-फल, उपस्थिति, योग्यता तथा अन्य विद्दालयों की क्रियाओं में भाग लेने आदि का आलेख प्रस्तुत किया जाता है। छात्र की प्रगति तथा कमजोरियों को जानने के लिए अभिभावको, शिक्षकों तथा प्रधानाचार्य के लिए यह अधिक उपयोगी आलेख होता है।
- एनेकडोटल आलेख इसमें बालों के व्यवहार से सम्बन्धित महत्वपूर्ण घटनाओं तथा कार्यो का वर्णन किया जाता है। इन कार्यो तथा घटनाओं का आलेख सही रूप में किया जाता है। निरीक्षण करने वाले छात्र की रूचियों तथा झुकावों को उत्पन्न करने वाले घटकों का भी उल्लेख करता है, इलके आधार पर छात्र के सम्बन्ध में सामान्यीकरण किया जा सकता है और निर्देशन में इसे प्रयुक्त करते हैं।
- निरीक्षण इसका प्रयोग विशेष रूप से छोटे बालकों के मूल्यांकन के लिए किया जाता है, क्योकि उनको अन्य कोई परोक्षा नही दी जा सकती है और उनके व्यवहार में वास्तविकता होती है। इसका प्रयोग उनकी योग्यता तथा व्यवहारों के सम्बन्ध में किया जाता है। उच्च कक्षाओं में सामान्यीकरण किया जात सकता है और निर्देशन में इसे प्रयुक्त करते हैं।
- जाँच सूची लिखित तथा मौखिक परीक्षाएँ छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष की परीक्षा करती की जाँच करती है। जाँच सूची का प्रयोग अभिरुचियों , अभिवृत्तियों तथा भावात्मक पक्ष के लिए किया जाता है। इसमें कुछ कथन दिए जाते हैं। उन कथनों के सम्बन्ध में छात्रों को हाँ अथवा नहीं में उत्तर देना होता है। इस प्रकार के कथनों की सूची की रचना करते समय उददेश्य स्पष्ट चाहिए। प्रतेयक कथन को किसी विशिष्ट उददेश्य का मापन करना चाहिए। जैसे
- आपको शिक्षण –सोपानों का स्मरण करने में रूचि है। हाँ/नहीं)
- आप पाठ-योजना की रचना करने में रुचि लेते है। हाँ/नहीं
- आपको कक्षा –शिक्षण के प्रस्तुतीकरण में आन्नद मिलता है। हाँ/नहीं
- आपको छात्रों के कार्यो की प्रशंसा करना अच्छा लगता है। हाँ/नहीं
इस जाँच सूची से छात्राध्यापकों की शिक्षण मं रुचि का मूल्यांकन किया जा सकता है।
- अनुपस्थिति मापनी इसमें कुछ कथन दिए जाते है, उनका तीन पाँच, सात बिन्दुओं तक सापेक्ष निर्णय करना होता है। इसका प्रयोग उच्च कभाओं के छात्रों के लिए ही किया जा सकता है, क्योकि निर्णय लेने की शक्ति छोटी आयु के छात्रों में नही होती शिक्षक भी प्रत्येक छात्र के मापन के लिए इसका प्रयोग करता है, परन्तु शिक्षक को प्रत्येक छात्र से भली प्रकार परिचित होना चाहिए। अनुपस्थिति मापनी के कथन स्पष्ट तथा विशिष्ट व्यवहारों से सम्बन्धित होने चाहिए।
पाठ्य-पुस्तक का अर्थ एवं परिभाषा
पाठ्य –पुस्तक मानव की एक महत्वपूर्ण रचना है। मनुष्य अपने अनुभावो, विचारों एवं अनुभूतियों का पुस्तक के रूप में संचय करता है। पाठ्य –पुस्तक ज्ञान संचय का साधन रहै जिसका लाभ नई पीढी को होता है। पुस्तकों के माध्यम से संचित ज्ञान संचय एवं संचार का साधन पुस्तक है। आज के तकनीकी एवं माध्यमों का विकास हो रहा रहै। टैप रिकॉर्डर, विडियों टेप, फ्लॉपी, माइक्रो फिल्म आदि का विकास हुआ है। जिसमें महापुरुषों को देखने एवं सुनने का अवसर भी मिलता है जबकि पुस्तक के माध्यम से पढ़ने को मिलता है।
हैरोलिकर के अनुसार पाठ्य –पुस्त ज्ञान अनुभवों भावनाओं. विचारों तथा प्रवृत्तियों व मूल्यों के संचय का साधन है।
पाठ्य –पुस्तकों की विशेषताएँ
पाठ्य-पुस्तकों की उपयोगिता के अनुसार उनमें निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए
- अनुभवों का उपयोग पाठ्य- पुरस्कके एक ऐसा माध्यम रही हैं जिनके द्वारा महापुरूषों के विचारों तथा विद्वानों के शोध कार्यों के निष्कर्षो का प्रचार एवं प्रसार किया जाता है। शिक्षक तथा छात्र उनके अनुभवों तथा ज्ञान का संचय पुस्तकों के माध्यम से किया जाता है और भावी नागरिकों को प्रदान किया जाता है।
किसी विषय का अनुभवी शिक्षक यदि पुस्तक लिखता है तो वह दो प्रकार के अनुभवों को सम्मिलित करता है। पाठ्य-वस्तु का प्रारूप उस स्तर के लिए कितना उपयुक्त है। और उसे किस रूप में प्रस्तुत किया जाए जिसे छात्र सुगमता से बोधगम्य कर सकें, ऐसी पुस्तकें उत्तर प्रकार की मानी जाती हैं।
- समय की बचत या मितव्ययिता मानव का जीवन –काल सीमित हैं और समय तीव्रता से व्यतीत होता है तथा परिवर्तित होता है। अत: ज्ञान प्राप्त करने की क्रियाएँ सरल एवं सुगम बनाने के ले पाठ्य-पुस्तुकों से समय की बचत होती है। मानवीय अनुभव तथा ज्ञान –राशि क्रमबद्ध तथा व्यवरस्थित रूप में पुस्तुकों में मिल जाती है, छात्र उनके अध्ययन से कम समय से अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
- सुनिश्चतता पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण विभिन्न स्तरों के लिए किया जाता है। किस स्तर पर कितना ज्ञान अथवा जानकारी छात्रों को प्रदान की जाए इसका बोध पाठ्य –पुस्तुकों से रहोता है। शिक्षक अपने शिक्षण की क्रियाओं का नियोजन करके उनका सम्पादन करता हैं। छात्रों के समुचित अधिगम परिस्थिति उत्पन्न करके अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन करता है।
- सुगमता शिक्षण अधिगम –क्रियाओं को व्यवस्थित और उनका संचालन करना सुगम हो, इसके लिए पाठ्य-पुस्तकों का विशेष महत्व होता है। प्रकरण के तत्वों को चढ़ाव के क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। जो शिक्षक के लिए व्यवस्था की दृष्टि से और छात्रों के लिए सीखने की दृष्टि से सुगम है। गेने की अधिगम –परिस्थितियों के चढ़ाव के क्रम और उददेश्यों के चढ़ाव के क्रम के ध्यान रख कर पाठ्य- पुस्तकों का निर्माण किया गया है।
मल्टीमीडीया शिक्षण सहायक सामग्री के रूप में आजकल निम्नलिखित मल्टीमीडिया साधनों का प्रयोग किया जाता है
- चल –चित्र अथवा सिनेमा चल –चित्र अथवा सिनेमा मूक –चित्र का दूसरा रूप है। इसमें मूक –चित्र की भाँति क्रियाएँ भी दिखाई जाती है, साथ ही ध्वनि की व्यवस्था भी होती है। इस प्रकार चल-चित्र अथवा सिनेमा बीसवीं शताब्दी की शिक्षा का सस्ता, सुलभ एवं यन्त्रीकृत महत्वपूर्ण साधन है। इसाका प्रयोग रेडियो और टेलीविजन के द्वारा अधिक प्रभाव शाली होता है तथा इसके अनेक लाभ हैं, जो निम्नलिखित हैं
- चल-चित्र द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान अन्य उपकरणों की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है, क्योकि इसमें देखने तथा सुनने की इन्द्रियाँ सक्रिय रहती हैं।
- चल- चित्र औद्दोगिक तथ्यों तथा उनके प्रभावों एवं ऐतिहासिक घटनाओं और वैज्ञानिक अनुसन्धानों का साक्षात्कार करने में सहायक है।
- चल- चित्र द्वारा बालकों को विभिन्न देशों की स्थितियों परिस्थितियों तथा मानव और उसके कार्य –कलापों का ज्ञान सरलतापूर्वक करा दिया जाता है।
- चल-चित्र द्वारा बालकों की कल्पना –शक्ति को विकसित करके उनकी निरीक्षण शक्ति का विकास भी सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
- चल-चित्र द्वारा सभी बालक सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं नैतिक सभी प्रकार से विकसित होते हैं। संक्षेप में चल-चित्र द्वारा मन्द एवं तीव्र बुद्धि के सभी बालकों का जहाँ एक और मनोरंजन होता है वहाँ दूसरी और वे हर प्रकार की शिक्षा भी ग्रहण करते हैं। ध्यान देने की बात है कि मनोंरजन की दृष्टि से दिखाए जाने वाले चित्रों से शैक्षिक चित्र भिन्न होते हैं। मनोरंजन वाले चित्रों में कहानियाँ होती हैं परन्तु शैक्षिक चित्रों में भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र, समाज-शास्त्र तथा विज्ञान आदि विषयों की सामग्री का समावेश होता है। दूसरे शब्दों में, चल- चित्र द्वारा सिनेमा में प्रयोग किए जाने वाले 35 मिमी के प्रोजेक्टर के स्थान पर स्कूल में केवल 16 मिमी के प्रोजेक्टर द्वारा बालकों को प्रत्येक विषय का ज्ञान सरलतापूर्वक दिया जा सकता है। हर्ष का विषय है कि भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश सरकार एव इंग्लैण्ड तथा अमेरिका के दूतावासों से शैक्षिक फिल्मे नि:शुल्क मिलती है, परन्तु खेद की बात है कि हमारे स्कूल आर्थिक कठिनाइयों के कारण हमारे बालक इस महत्वपूर्ण उपकरण के शैक्षिक लाभों से वंचित ही रह जाते हैं।