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CTET UPTET Remedial Teaching Theories Study Material in Hindi

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उपचारात्मक शिक्षण (CTET UPTET Study Material in Hindi)

यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है। कमजोर तथा शिक्षण में पिछड़े छात्रों के निदानात्मक मूल्यांकन के पश्चात उनकी कमजोरी के क्षेत्र में सुधार के लिए उचारात्मक शिक्षण का उपयोग होता है। ब्लेअर या जोन्स ने उपचारात्मक शिक्षा के विषय में कहा है- उपचारात्मक शिक्षण मूलत: एक उत्तम शिक्षण विधि है जो छात्रों को अपने मानसिक स्तर के अनुरूप प्रगति करने का अवसर देती है। यह उसे प्रेरणा की आन्तरिक विधियों के द्वारा उसकी क्षमता के अनुसार उच्च मापदण्ड तक पहुँचाती है। यह कठिनाइयों के सतर्कतापूर्ण निदान पर आधारित तथा छात्रों की आवश्यकताओं एवं रुचियों के अनुकूल होती है। निदानात्मक मूल्याकन और उपचारात्मक शिक्षण एक दूसरे से इस प्रकार जुड़े हुए है कि विश्लेषण और विवेचन के कार्यो के अतिरिक्त उनको पृथक करना कठिन है।

उपचारात्मक शिक्षण के सिद्धान्त CTET UPTET Important 2018 Study Material)

उपचारात्मक शिक्षण को सफल बनाने के लिए अध्यापक को निम्न सिद्धान्तों पर ध्यान देना चाहिए

  1. अध्यापक एवं छात्र में निकट सम्बन्ध स्थापित किया जाए।
  2. उपचार की सम्पूर्ण व्यवस्था की योजना स्पष्ट रूप से बना लेनी चाहिए वं उसके कार्यान्वयन में सावधानी से काम लिया जाए।
  3. अध्यापक अपने अनुभवों के आधार पर विस्तृत दृष्टिकोण अपनाए।
  4. उपचारात्मक शिक्षण का प्रत्येक पहलू बालकों की आयु, रुचि, योग्यता एवं अनुभवों के अनुकूल हो।
  5. उपचारात्मक शिक्षण के दौरान बालकों की रुचि को बनाए रखने के लिए उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन देते रहना चाहिए।
  6. उपचार विधि की यह विशेषता होनी चाहिए कि उससे विद्दार्थी को अपनी स्फलता के सम्बन्ध में शीघ्र परिणाम मिल सकें।
  7. प्रक्रिया के दौरान विद्दार्थी को अधिक –से अधिक सक्रिया रखा जाए।
  8. कार्यानुभव हमारे उपचारात्मक शिक्षण का एक अनिवार्य अंग होना चाहिए।
  9. अध्यापकों को भी निदानात्मक परीक्षणों के निर्माण में दक्ष होना चाहिए।

पिछडे बालकों के लिए उपचारात्मक शिक्षणCTET UPTET Previous Year Study Material)

उपचारात्मक शिक्षण के अन्तर्गत कक्षा के वर्ग बनाते समय कमजोर बालकों को एक ही वर्ग में रखा जाए तो अध्यापक उनकी प्रगति में सहायक हो सकता है। कक्षा में ऐसे बालकों की संख्या 20-25 से अधिक नहीं होनी चाहिए। कमजोर छात्रों में व्यक्तिगत परामर्श द्वारा अध्यापन सम्बन्धी वाँछनीय आदतों का विकास किया जा सकता है। गणित में सफरलता के लिए नियमित अभ्यास का कार्य क्रम आवश्यक है। कमजोर बालकों के अध्यापन को प्रभावी बनाने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए

  1. कक्षा में गणित की समस्याओं को हल करते समय छात्रों का ध्यान विशेष रूप में उन प्रत्ययों, सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं आदि की ओर खींचा जाए जिनमें छात्र त्रुटियाँ करते है।
  2. कमजोर छात्रों के लिए मॉडल, चार्ट आदि का प्रयोग कर प्रत्ययों को स्पष्ट किया जाए।
  3. छात्रों को कक्षा में तथा कक्षा के बाद आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत परामर्श देकर गणित के सीखने में सहायता की जानी चाहिए।
  4. छात्रों के लिखित कार्य में सुधार यथासम्भव उनके समक्ष ही हो तथा सुधरी हई त्रुटियों को छात्र फिर से न दोहराएँ।
  5. कमजोर छात्रों को कक्षा में आगे बैठाना चाहिए।
  6. छात्रों में शुद्ध तथा बड़ा लिखने की आदत डाली जाए जिसमें उन्हें गणना करते समय सुविधा रहे।
  7. कक्षा में उदाहरणों का चयन विषय वस्तु के विस्तार एवं कठिनाई के स्तर को ध्यान में रखकर किया जाए।
  8. अंकगणित तथा बीजगणित के आधारभूत उप-विषयों को पढ़ाते समय पूरी सावधानी बरती जाए। दशमलव, प्रतिशत, अनुपात, एकिक नियम, समीकरण, लेखाचित्र आदि गणित के आधारभूत उप-विषय हैं जिनका व्यापक प्रयोग समस्याओं को हल करने में किया जाता है। इन उप-विषय हैं जिनका व्यापक प्रयोग समस्याओं को हल करने में किया जाता है। इन उप-विषयों को अत्यन्त सावधानी से पढ़ाया जाए।
  9. श्यामपटट पर लिखी हुई सामग्री व्यवस्थित स्पष्ट एवं उपयोगी होनी चाहिए। श्यामपटट कार्य का विकास छात्रों के सक्रिय सहयोग से किया जाए।
  10. कक्षा में छात्रों को जागरूक रखने के लिए प्रभावी प्रश्नोत्तर प्रविधि का प्रयोग किया जाए।
  11. समस्याओं को हल करने से पहले छात्रों को यह स्पष्ट कर दिया जाए कि क्या ज्ञात करना है तथा अभीष्ट उत्तर कैसे ज्ञात किया जाना चाहिए? समस्याओं की भाषा सरल एवं स्पष्ट हो।
  12. छात्रों को कक्षा में सोचने तथा तर्क करने के पर्याप्त अवरसर मिलने चाहिए।
  13. प्रत्येक उप-विषय के अभ्यास प्रश्न छात्र स्वयं करें तथा विभिन्न प्रत्ययों, प्रक्रियाओं, सिद्धान्तों आदि का विवेचन कर याद करें, जिससे उनमें आत्म-विश्वास की भावना का विकास हो।
  14. कमजोर छात्रों को मौखिक तथा मानसिक गणित करने का पर्याप्त अभ्यास कक्षा में देना चाहिए।
  15. ऐसे छात्रों को हतोत्साहित नहीं करना चाहिए।

प्रतिभाशाली बालकों के लिए उपचारात्मक शिक्षण

प्रखर बुद्धि बालकों में पर्याप्त रूप से अपनी योग्याताओं को विकसित करने का अवसर प्राप्त न होने से वे बेजैन रहते हैं तथा उनका मन कक्षा के वातावरण में न लगकर इधर-उधर भटकने लगता है। इसके अतिरिक्त यदि उन्हें आवश्यक परामर्श एवं मार्ग-दर्शन नहीं मिलता है तो वे असमाजिक कार्यों में भाग लेने लगते हैं। तथा उनकी प्रवृत्ति बालापराधी की और मुड़ जाती है। कक्षा कार्य उनकों फीका लगने लगता है। अत: प्रतिभाशाली बालों की मानसिक एवं शारीरिक शक्ति के सदुपयोग के लिये प्रभावी एवं आकर्षण अध्ययन विधियों का इस्तेमाल आवश्यक है ताकि उन्हें उपयोगी कार्यों में व्यस्त रखा जा सकें।

CTET UPTET Study Material Practice Sets)

प्रतिभाशाली बालकों का शिक्षण करते समय निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है

  1. प्रतिभाशाली बालकों को सुनियोजित कार्यक्रम के माध्यम से व्यवस्थित ढंग से कार्यरत रखा जाना चाहिए।
  2. इनकों आधुनिक गणित गणित की विभिन्न शाखाओं में समन्वय स्थापित करके पढ़ाना चाहिए।
  3. इन बालकों को व्यवस्थित सामग्री के माध्यम से पढ़ाना चाहिए।
  4. इन बालकों के सम्मुख स्थूल या प्रत्यक्ष वस्तुओं के स्थान पर गूढ़ प्रत्यय सीधे ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
  5. इन बालकों मूल्यांकन हेतु विशेष परीक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
  6. अध्यापक को चाहिए कि वह ऐसे बालकों को गणित के पाठ्य-क्रम के अतिरिक्त गणित सम्बन्धी इतिहास, गणित का विकास, पत्रिकाएँ तथा सम्बन्धित साहित्य को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
  7. ऐसे बालकों के लिए मानसिक एंव मौखिक गणित की अपेक्षा लिखित गणित पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
  8. ऐसे बालकों को कभी कभी कक्षा में पढ़ाने का कार्य भी सौपा जाना चाहिए। ऐसा करने से उनमें आत्म –विश्वास की वृद्धि होगी।
  9. प्रतिभाशाली छात्रों के समक्ष कक्षा में कुछ समस्याओं को चुनौतियों के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
  10. ऐसे बालकों से अध्यापक को गणित शिक्षण सम्बन्धी आकर्षक सहायक सामग्री बनवानी चाहिए।
  11. प्रतिभाशाली बालकों को एक ही समस्या को विभिन्न तरीकों से हल करने को प्रोत्साहन देना चाहिए।
  12. प्रतिभाशाली बालक गणित की खोजों में अत्यधिक रुचि लेते हैं। अत: उन्हे सम्बन्धी नवीन आविष्कारों को सीखने एवं जानने के पर्याप्त अवसर देने चाहिए।

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