SSC CGL TIER 1 Drainage System Study Material In Hindi
SSC CGL TIER 1 Drainage System Study Material In Hindi
अपवाह तन्त्र
अपवाह शब्द एक क्षेत्र के नदी तन्त्र की व्याख्या करता है। भारत के अपवाह तन्त्र का नियन्त्रण मुख्यत: भौगोलिक आकृतिक के द्वारा होता है। इस आधार पर भारतीय नदियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है। 1. हिमालय की नदियाँ और 2. प्रायद्वीपीय नदियाँ। दो भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से उत्पन्न होने के कारण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ एक–दूसरे से भिन्न हैं।
हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी होती हैं अर्थात् इनमें वर्ष भर पानी रहता है क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त हिमनदों से पिघलने वाली बर्फ से जल प्राप्त होता है जबकि अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी नदियाँ मौसमी होती हैं क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है। हिमालयी नदियों का जल प्रवाह तीव्र, गहरा और अपेक्षाकृत कम चौड़ा होता है, जबकि प्रायद्वीपीय नदियों का प्रवाह मन्द, छिछला और चौड़ा होता है। किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों को नदी तन्त्र कहा जाता है तथा एक नदी तन्त्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है उसे अपवाह द्रोणी कहते हैं।
हिमालय की नदियों को तीन नदी तन्त्रों सिन्धु नदी तन्त्र, गंगा नदी तन्त्र, गंगा नदी तन्त्र और बह्रापुत्र नदी तन्त्र में विभाजित किया जाता है। प्रायद्वीपीय नदियों को प्रवाह के आधार पर पूर्वी प्रवाह वाली नदियाँ एवं पश्चिमी प्रवाह वाली नदियों में बाँटा जाता हैं।
पूर्वी प्रवाही नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती है और डेल्टा बनाती हैं। जबकि पश्चिमी प्रवाही नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं और डेल्टा नहीं बनाती इसके अलावा कुछ ऐसी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं और डेल्टा बनाती हैं। जबकि पश्चिमी प्रवाही नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं और डेल्टा नहीं बनाती इसके अलावा कुछ ऐसी नदियाँ हैं जो सागर तक नहीं पहुँच पाती तथा स्थल भाग पर ही समाप्त हो जाती हैं ये अन्त: स्थलीय नदियाँ कहलाती हैं जैसे–घग्घर, लूनी, कान्तली, सावी, काकनी आदि।
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