UPTET 2017 Vanshanukram Heredity Environment Study Material in Hindi
UPTET 2017 Vanshanukram Heredity Environment Study Material in Hindi : fluence of Heredity and Environment)
वंशानुक्रम एवं वातावरण का प्रभाव
बालक के विकास की प्रक्रिया आन्तरिक एवं बाह्य कारको से प्रभावित होती है ? वंशानुगत कारक, शारीरिक कारक, वृद्धि, संवेगात्मक कारक, सामाजिक कारक इत्यादि बाल-विकास को प्रभावित करने वाले आन्तरिक कारक है | सामाआजिक-आर्थिक स्तिथि एवं वातावरण जन्म अन्य कारक बालक के विकास को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक है |
वंशानुक्रम का स्वरूप तथा अवधारणा
वंशानुक्रम का मूलाधार कोष (Cell) है जिस प्रकार एक-एक ईटों को चुनकर इमारत बनती है ठीक उसी प्रकार से कोषो के द्वारा मानव शरीर का निर्माण होता है कोष के केन्द्रक में गुण सूत्र पाए जाते है इन्ही में आनुवंशिकता के मूल संवाहक जिन्स (Genes) पाए जाते है, जो सन्ततियो के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संक्रमित होते है | इसी प्रक्रिया को वंशानुक्रम कहा जाता है | मान्टेग्यु और शील फेंड के अनुसार प्रत्येक गुण सूत्र में 3,000 जिन्स पाए जाते है | आनुवांशिकता के इन वाहको का संवाहन गर्भाधान के समय सन्तति में होता है | यही जिन्स व्यक्ति की विभिन्न योग्यताओ एवं गुणों का निर्धारण करते है | वंशानुक्रम की अवधारणा को समझने के लिए विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओ को समझना आवश्यक है”|
जेम्स ड्रेवर :- ”शरीरिक तथा मानसिक विशेषताओ का माता-पिता से सन्तानों में हस्तांतरण होना वंशानुक्रम है” |
रुथ बेनिडिक्त :- ”वंशानुक्रम माता-पिता से सन्तानों को प्राप्त होने वाले गुण है |”
पी. जिस्बर्ट :- ”प्रकृति में पीढ़ी का प्रत्येक कार्य कुछ जैविकीय अथवा मोवैज्ञानिक विशेषताओ को माता पिता द्वारा उनकी सन्तानों में हस्तान्तरिक करना है |”
एच. ए. पेटरसन :- ”व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से पूर्वजो की जो भी विशेषताएं प्राप्त करता है उसे वंशानुक्रम कहते है |”
वुडवर्थ :- ”वंशानुक्रम में सभी बाते सम्मीलित है जो की व्यक्ति में जबकि उसके जीवन का आर्म्भ्हुआ जन्म के समय नही, वरन गर्भाधान के समय जन्म से
लगभग नौ माह पूर्व उपस्थित थी |”
बी. एन. झा ”वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओ का पूर्ण योग है |”
जीवशास्त्रियो के अनुसार :- ”निषिक्त अंड में सम्भावित विधमान विशिष्ट गुणों का योग ही आनुवंशिकता है |” उपरोक्त परिभाषाओ से स्पष्ट है की वंशानुक्रम पूर्वजो या माता-पिता द्वारा सन्तानों में होने वाले गुणों का संक्रमण है | प्रत्येक प्राणी अपनी जातीय विशेषताओ कके आधार पर शारीरिक, मानसिक गुणों का हस्तांतरण सन्तानों में करते है |
वंशानुक्रम का प्रभाव
वंशानुक्रम के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रभावों का विवरण इस प्रकार है.
शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव :- बालक के रंग-रूप, आकार, शारीरिक गठन, ऊँचाई, इत्यादि के निर्धारण में उसके आनुवंशिक गुणों का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है | बालक के आनुवंशिक गुण उसके वृद्धि एवं विकास को भी प्रभावित करते है | यदि बालक के माता-पिता गोरे है तो उनका बच्चा गोरा ही होगा, किन्तु यदि माता-पिता काले है तो उनके बच्चे काले ही होंगे | इसी प्रकार माता पिता के अन्य गुण भी बच्चे में आनुवंशिक रूप से चले जाते है | इसके कारण कोई बच्चा अति प्रतिभाशाली एवं सुंदर हो सकता है एवं कोई अन्य बच्चा शारीरक एवं मानसिक रूप से कमजोर | जो बालक जन्म से ही दुबले-पतले कमजोर, बीमार तथा किसी प्रकार की शारीरिक बाधा से पीड़ित रहते है, उनकी तुलना में सामान्य एवं स्वस्थ बच्चे का विकास अधिक होना स्वाभाविक ही है | शारीरिक कमियों का स्वास्थ्य ही नही वृद्धि एवं विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | असंतुलित शरीर, मोटापा, कम ऊँचाई, शारीरिक कुरूपता, इत्यादि बालक के असामान्य व्यवहार के कारण होते है | कई बार किसी दुर्घटना के कारण भी शरीर को क्षति पहुँचती है और इस क्षति का बालक के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है |
बुद्धि पर प्रभाव :- बुद्धि को अधिगम (सीखने) की योग्यता, समायोजन योग्यता, निर्निय लेने की क्षमता, इत्यादि के रूप में परिभाषित किया जाता है जिस बालक के सीखने की गति अधिक होती है, उसका मानसिक विकास भी तीव्र गति से होगा | बालक अपने परिवार, समाज एवं विधालय में अपने आपको किस तरह समायोजित करती है यह उसकी बुद्धि पर निर्भर करता है |
गोडार्ड का मत है की मन्द-बुद्धि माता-पिता की सन्तान तीव्र-बुद्धि वाली होती है | मानसिक क्षमता के अनुकूल ही बालक में संवेगात्मक क्षमता का विकास होताहै | बालक में जिस प्रकार के संवेगों का जिस रूप में विकास होगा वह उसके सामजिक, मानसिक, नैतिक, शारीरिक तथा भाषा सम्बन्धी विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है | यदि बालक अत्यधिक क्रोधित या भयभीत रहता है अथवा यदि उसमे ईष्या एवं वैमनस्यता की भावना अधिक होती है तो उसके विकास की प्रक्रिया पर इन सबका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है | संवेगात्मक रूप से असंतुलित बालक पढ़ाई में या किसी अन्य गम्भीर कार्यो में ध्यान नही दे पाते, फलस्वरूप उनका मानसिक विकास भी प्रभावित होता है | बुद्धि की श्रेष्ठा प्रजाति के कारण भी होती है |
चरित्र पर प्रभाव :- डगडेल नामक मनोवैज्ञानिक ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह बताया की माता-पिता के चरित्र का प्रभाव भी उसके बच्चे पर पड़ता है | व्यक्ति के चरित्र में उसके वंशानुगत कारको का प्रभाव स्पष्ट तौर पर देखा जाता है, इसलिए बच्चे पर उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है | डगडेल ने 1877 ई. में ज्यूक नामक व्यक्ति के वंशजो का अध्ययन करके यह बात सिद्ध की थी |
वातावरण का अर्थ
वातावरण अथवा परि+आवरण-‘परि’ का अर्थ है चारो और ‘आवरण’ का अर्थ है- ढकना | इस प्रकार पर्यावरण का शाब्दिक तात्पर्य है चारो और से घेरने वाला प्राणी या मनुष्य जल, वायु, वनस्पति, पहाड़, पठार, नदी, वस्तु आदि से घिरा हुआ है यही सब मिलकर पर्यावरण का निर्माण करती है | इसे वातावरण या पोषण के नाम से सभी जानते है | पर्यावरण मानव जीवन के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है मानव विकास में जितना योगदान वंशानुक्रम का है उतना ही पर्यावरण का भी है | इसे कुछ मनोवैज्ञानिक सामजिक वंशानुक्रम कहते है | व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिको ने तो वंशानुक्रम से अधिक पर्यावरण को महत्त्व दिया है | पर्यावरण को समझाने के लिए इसकी परिभाषाओ को समझना आवश्यक है |
एनास्टैसी :- ”पर्यावरण वह हर चीज है जो व्यक्ति के जीवन के अलावा उसे प्रभावित करती है ?”
जिस्बर्ट :- ”जो किसी एक वस्तु को चारो और से घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है वह पर्यावरण होता है |”
वुडवर्थ :- ”वातावरण में वे समस्त बाह्य तत्व आ जाते है जिन्होंने जीवन प्रारम्भ करने के समय से व्यक्ति को प्रभावित किया है |”
रच :- ‘‘पर्यावरण वे सभी परिस्तिथियाँ है जो व्यवहार को उद्दीप्त करती है या व्यवहार में परिमार्जन उत्पन्न करती है |”
रोंस :- ‘‘पर्यावरण कोई बाहरी व्यक्ति है जो हमे प्रभावित करता है ?”
बोरिंग लैगफिल्ड एवं वेल्ड :- ”व्यक्ति का वातावरण उन सभी उत्तेजनाओ का योग है जिनको वह जन्म से म्रत्यु तक ग्रहण करता है |”
टी. डी. इलियट :- ”चेतन पदार्थ की किसी इकाई के प्रभावकारी उद्दीपन एवं अन्त: क्रिया के क्षेत्र को वातावरण कहते है |” अत: विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओ में स्पष्ट होता है की
1. वातावरण वह बाह्य तत्व है जो मनुष्य को प्रभावित करता है |
2. आनुवंशिक तत्व के अतिरिक्त जो कुछ कुछ मनुष्य को प्रभावित करता है उसे वातावरण कहते है |
3. जो हमारे चारो और है जैसे-प्रथ्वी, जल, आकाश, पहाड़, वनस्पतियाँ, नदियाँ, पशु-पक्षी, मनुष्य, इत्यादि सभी एक पर्यावरण का निर्माण करते है |
4. जन्म से म्रत्यु तक की सम्पूर्ण बाह्य परिस्थितियां जो मनुष्य को किसी न किसी ढंग से प्रभावित करती है | पर्यावरण कहलाती है |
5. पर्यावरण वह है जो जीवित प्राणियों के जीवन, स्वभाव, व्यवहार तथा बुद्धि, विकास व परिपक्वता को प्रभावित करता है |
वातावरण सम्बन्धी कारक :- वातावरणीय कारक कई प्रकार के होते है –
1. भौतिक कारक :- इसके अंतर्गत प्राक्रतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियाँ आती है | मनुष्य के विकास पर जलवायु का प्रभाव पड़ता है | जहाँ अधिक सर्दी पडती है या जहाँ अधिक गर्मी पडती है वहाँ मनुष्य का विकास एक जैसा नही होता है | ठंडे प्रदेशो के व्यक्ति सुंदर, गोरे, सुडौल, स्वस्थ एवं बुद्धिमान होते है | धैर्य भी इनमे अधिक होता है | जबकि गर्म प्रदेश के व्यक्ति काले, चिडचिडे तथा आक्रामक स्वभाव के होते है |
2. सामाजिक कारक :- व्यक्ति एक सामजिक प्राणी है इसलिए उस पर समाज का प्रभाव अधिक दिखाई देता है | सामाजिक व्यवस्था रहन-सहन, परम्पराएँ,धार्मिक कृत्य, रीती-रिवाज, पारस्परिक अन्त: क्रिया और सम्बन्ध आदि बहुत-से तत्व है जो मनुष्य के शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक तथा बौद्धिक विकास को किसी-न किसी ढंग से अवश्य प्रभावित करते है |
3. आर्थिक कारक :- अर्थ से केवल सुविधाएँ ही नही प्राप्त होती बल्कि धन से पौष्टिक चीजे भी खरीदी जा सकती है | जिससे मनुष्य शरीर विकसितहोता है | धनहीन व्यक्ति में असुविधा के अभाव में हीन भावना विकसित हो जाती है जो विकास के मार्ग में बाधक है आर्थिक पर्यावरण मनुष्य की बौद्धिक क्षमता को भी प्रभावित करता है | सामजिक विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ता है |
4. संस्कृतिक कारक :- धर्म और संस्कृति मनुष्य के विकास को अत्यधिक प्रभावित करती है | खाने का ढंग, रहन-सहन का ढंग, पूजा-पाठ का ढंग, समारोह
मनाने का ढंग, संस्कार का ढंग आदि हमारी संस्कृति है जिन संस्कृतियों में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण समाहित है उनका विकास ठीक ढंग से होता है लेकिन जहाँ
अन्धविश्वास और रुढ़िवाद का समावेश है तो संस्कृति से उस समाज का विकास सम्भव नही है |
वातावरण का प्रभाव
वातावरण के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रभावी का विवरण इस प्रकार है
1. शारीरिक अन्तर का प्रभाव :- व्यक्ति के शारीरिक लक्षण वैसे तो वंशानुगत होते है, किन्तु इस पर वातावरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है | पहाड़ी क्षेत्रो में रहने वाले लोगो का कद छोटा होता है जबकि मैदानी क्षेत्रो में रहने वाले लोगो का शरीर लम्बा एवं गठीला होता है | अनेक पीढ़ियों से निवास स्थल में परिवर्तन करने के बाद उपरोक्त लोगो के कद एवं रंग में अन्तर वातावरण के प्रभाव के कारण देखा गया है |
2. प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव :- कुछ प्रजातियों की बौद्धिक श्रेष्ठता का कारण वंशानुगत न होकर वातावरणजन्य होता है | वे लोग इसलिए अधिक विकास कर पाते है, क्योकि उनके पास श्रेष्ठ शैक्षिक, संस्कृतिक एवं सामाजिक वातावरण उपलब्ध होता है | यदि एक महान व्यक्ति के पुत्र को ऐसी जगह पर छोड़ दिया जाए, जहाँ शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक वातावरण उप्ल्बन्ध न हो तो उसका अपने पिता की तरह महान बनना सम्भव नही हो सकता |
3. व्यक्तित्व पर प्रभाव :- व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है | कोई भी व्यक्ति उपयुक्त वातावरण में रहकर अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके महान बन सकता है | ऐसे कई उदहारण हमारे आस-पास देखने को मिलते है जिनमे निर्धन परिवारों में जन्मे व्यक्ति भी अपने परिश्रम एवं लग्न से श्रेष्ठ सफलताएँ प्राप्त करने में सक्षम हो जाते है | न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिंगर ने इस बात को साबित करने के लिए 20 जोड़े जुड़वाँ बच्चो को अलग-अलग वातावरण में रखकर उनका अध्ययन किया | उन्होंने एक जोड़े के एक बच्चे को गाँव के फार्म पर और दुसरे को नगर में रखा | बड़े होने पर दोनों बच्चो में पर्याप्त अन्तर पाया गया | फार्म का बच्चा अशिष्ट, चिन्ताग्रस्त और बुद्धिमान था | उसके विपरीत नगर का बच्चा, शिष्ट, चिंतामुक्त और अधिक बुद्धिमान था |
4. मानसिक विकास पर्प्रभाव :- गोर्डन नामक मनोवैज्ञानिक का मत है की उचित सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण न मिलने पर मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती है | उसने यह बात नदियों के किनारे रहने वाले बच्चो का अध्ययन करके सिद्ध की | इन बच्चो का वातावरण गंदा और समाज के अच्छे प्रभावों से दूर था | अध्ययन में पाया गया की गंदे एवं समाज के अच्छे प्रभावों से दूर रहने के कारण बच्चो के मानसिक विकास पर भी प्रतिकूल असर पड़ा था |
5. बालक पर बहुमुखी प्रभाव :- वातावरण, बालक के शारीरक, मानसिक, संवेगात्मक आदि सभी अंगो पर प्रभाव डालता है | इसकी पुष्टि ‘एवेरोन के जंगली बालक’ के उदहारण से की जा सकती है | इस बालक को जन्म के बाद एक भेढ़िया उठा ले गया था और उसका पालन-पोषण जंगली पशुओ के बीच में हुआ था | कुछ शिकारियों ने उसे सन 1799 ई. में पकड लिया | उस समय उसकी आयु 11 अथवा 12 वर्ष की थी | उसकी आकृति पशुओ-सी हो गयी थी | वे उनके समान ही हाथो-पैरो से चलता था | वह कच्चा मांस खाता था | उसमे मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नही थी | उनको मनुष्य के समान सभ्य और शिक्षित बनाने के सब प्रयास विफल हुए |
शिक्षा में वंशानुक्रम तथा वातावरण का महत्त्व
बालक क्या है ? वह क्या कर सकता है ? विकास क्यों नही हो रहा है ? आदि प्रश्नों का उत्तर वंशानुक्रम और वातावरण में निहित है | बालक वास्तव में अपने में कुछ नही है वरन वह वंशानुक्रम तथा वातावरण का उत्पाद है | शारीरिक विकास मानसिक विकास, संवेगात्मक विकास, सामाजिक विकास पर तो इन दोनों का प्रभाव पड़ता है, शिक्षा भी इससे प्रभावित होती है क्योकि सभी विकास से शिक्षा का रचनात्मक सह-सम्बन्ध है | आधुनिक शिक्षा का सबसे बड़ा आधार मनोविज्ञान है, जिसने शिक्षा का स्वरूप बदल दिया | आज शिक्षा बाल केन्द्रित बन गयी है | बालक को समझकर ही उसे दिशा-निर्देश दिया जा सकता है | एक कक्षा में पढ़ने वाले सभी बालको का शरीरिक, मानसिक विकास से जुड़ा है और जिसका मानसिक विकास अच्छा होता है उसकी शिक्षा भी अच्छी होती है | वंशानुक्रम से व्यक्ति शरीर का आकार-प्रकार प्राप्त करता है | वातावरण शरीर को पुष्ट करता है |
यदि परिवार में पौष्टिक भोजन बच्चो को दिया जाता है तो उसकी मांसपेशियां, हड्डियाँ, तथा अन्य प्रकार की शारीरिक क्षमताएं बढ़ती है | बौद्धिक क्षमता के लिए अधिकतर वंशानुक्रम जिम्मेदार होता है | इसलिए बालक को यदि समझना है तो उसके दोनों कारको को भी समझना आवश्यक है | विधालयो में बालको से कई प्रकार की अनुशासनहीनता दिखाई देती है | कुछ चीजो के लिए तो परिवार का परिवेश जिम्मेदार है लेकिन कुछ कारण वंशानुक्रम के भी होते है, जैसे चोरी करना, क्रूरता या मारपीट करना, चरित्रहीनता, अपराधी होना इत्यादि वंशानुक्रम से भी आते है | इस सन्दर्भ में बहुत से अध्ययन किये गये है कुछ अपराधी, चरित्रहीन परिवारों के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है की परिवेश बदलने पर भी बच्चो में इस प्रकार की बुराइयाँ दिखाई देती है | इसलिए विधालय में यदि अनुशासनहीनता के कारण को समझना है तथा उसका उपचार करना है तो बालक के वंशानुक्रम के ज्ञान के साथ वातावरण का भी ज्ञान आवश्यक है |
किसी बालक की शैक्षिक उपलब्धी एक सीमा तक बढ़ती है माता-पिता अच्छे-से-अच्छा परिवेश देकर उसे बढ़ाना चाहते है, बालक परिश्रम भी करता है परन्तु आगे नही बढ़ पाता है | इसका क्या कारण हो सकता है ? यह जानने के लिए वंशानुक्रम को समझना पड़ेगा | यदि वंशानुक्रम ठीक नही है अर्थात बुद्धिमान लोग उसके मार्त पिता पक्ष में नही हुए है तो अच्छा परिवेश उसे एक निश्चित सीमा तक आगे ले जायेगा उससे आगे बढ़ा नही पायेगा, उसका विकास वही रुक जायेगा | रुचियाँ, प्रवृत्तियाँ तथा अभिवृत्ति आदि का विकास के लिए वातावरण अधिक जिम्मेदार होता है लेकिन वातावरण के साथ यदि वंशानुक्रम भी ठीक है तो इसको सार्थक दिशा मिल जाती है उदहारण के लिए एक व्यवसायी के बच्चे के जीवन में व्यवसायिक अभिरुचि एवं क्षमता पाई जाती है |
यदि उसे प्राप्त कर सकता है इसीलिए कुछ जातियां व्यवसायिक कार्य में सफल है तो कुछ जातियां इस क्षेत्र में असफल हो जाती है |हमे साधारणतया यह प्रश्न सुनने को मिलता है की बालक की शिक्षा और विकास में वंशानुक्रम अधिक महत्त्वपूर्ण है या वातावरण ? यह प्रश्न पूछना यह पूछने के समान है की मोटरकार के लिए इंजन अधिक महत्त्वपूर्ण है या पैट्रोल | जिस प्रकार मोटरकार के लिए इंजन और पैट्रोल का समान महत्त्व है, उसी प्रकार बालक के विकास के लिए वंशानुक्रम तथा वातावरण का समान महत्त्व है | वंशानुक्रम और वातावरण में पारस्परिक निर्भरता है | ये एक दुसरे के पूरक, सहायक और सहयोगी है |
बालक को जो मूल प्रवृत्तियां वंशानुक्रम से प्राप्त होती है, उनका विकास वातावरण में होता है, उदहारण के लिए, यदि बालक में बौद्धिक शक्ति नही है, तो उत्तम से उत्तम वातावरण भी उसका मानसिक विकास नही कर सकता | इसी प्रकार बौद्धिक शक्ति वाला बालक प्रतिकूल वातावरण में अपना मानसिक विकास नही कर सकता | वस्तुत: बालक के सम्पूर्ण व्यवहार की सुष्टि, वंशानुक्रम और वातावरण की अन्त: क्रिया द्वारा होती है | शिक्षा की किसी भी योजना में वंशानुक्रम और वातावरण को एक-दुसरे से पृथक नही किया जा सकता | जिस प्रकार आत्मा और शरीर का सम्बन्ध है, उसी प्रकार वंशानुक्रम और वातावरण का भी सम्बन्ध है | अत: बी बालक के सम्यक विकास कल इए वंशानुक्रम और वातावरण का संयोग अनिवार्य है |