68500 Assistant Teacher Bharti Alankaar Study Material in Hindi
68500 Assistant Teacher Bharti Alankaar Study Material in Hindi
अलंकार
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
Very Short Question Answer
प्रश्न – अलंकार किसे कहते हैं?
उत्तर – जो शब्द किसी वस्तु को अलंकृत करता है, तो उसे अलंकार कहते हैं।
प्रश्न – अलंकार के कितने भेद हैं?
उत्तर – अलंकार के मुख्य दो भेद हैं-
(i) शब्दालंकार और
(ii) अर्थालंकार
प्रश्न – शब्दालंकार के कितने भेद हैं?
उत्तर – शब्दालंकार के तीन भेद हैं-
- अनुप्रास
- यमक और
- श्लेष।
प्रश्न – अनुप्रास अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहाँ पर वर्णों की आवृत्ति हो वहां अनुप्रास-अलंकार होता है, जैसे- मुदित, महीपति मन्दिर आये। सेवक सचिव सुमंत बुलाये।
इस चौपाई में पहले पद में म की और दूसरे में स की तीन-तीन बार आवृत्ति हुई है।
प्रश्न – यमक अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां एक शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है, उनके अर्थ अलग-अलग होते हैं, यमक अलंकार कहलाता है। जैसे-
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय जन, वा पाये बौराय।।
यहां शब्द कनक का प्रयोग दो बार हुआ है, पर भिन्न-भिन्न दो अर्थों में- धतूरा और सोना के अर्थ में।
प्रश्न – श्लेष अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जब किसी पंक्ति में एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं तब वहां श्लेष अलंकार होता है। जैसे-
चरण धरत चिन्ता करत, चितवत चारिहु ओर।
सुबरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।।
यहां सुबरन शब्द के कवि, व्यभिचारी एवं चोर के लिए अलग-अलग अर्थ हैं।
प्रश्न – अर्थालंकार के कितने भेद हैं?
उत्तर – अर्थालंकार के मुख्यत: ग्यारह भेद हैं-
- उपमा,
- रुपक,
- उत्प्रेक्षा,
- भ्रान्तिमान,
- विरोधाभास,
- मानवीकरण,
- सन्देह,
- व्यतिरेक,
- अतिशयोक्ति,
- प्रतिवस्तूपमा तथा
- दृष्टान्त।
प्रश्न – उपमा अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – समान धर्म, स्वभाव, शोभा, गुण आदि के आधार पर जहां एक वस्तु की तुलना दूसरी वस्तु से की जाती है, वहां पर उपमा अलंकार होता है। जैसे-राधा का मुख कमल के समान सुन्दर है।
प्रश्न – रुपक अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां पर उपमेय को ही उपमान का रुप दिया जाए, वहां पर रुपक अलंकार होता है। उदाहरणार्थ- मुख चन्द्र है। यहां पर मुख को चन्द्र स्वीकार किया गया है।
प्रश्न – उत्प्रेक्षा अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां उपमेय में उपमान से भिन्नता होते हुए भी उपमान की संभावना की जाती है, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मनु, जनु, मानो, जानो आदि इस अलंकार के वाचक हैं। उदाहरणार्थ-
‘लता भवन ते प्रकट भे, तेहि अवसर दोऊ भाई।
निकसे जनु जुग-विमल बिधु, जलद-पटल बिलगाइ।।’
यहां उपमेय ‘राम-लक्ष्मण’ के लिए उपमान ‘विधु’ को उपस्थित किया गया है, इसलिए यहां उत्प्रेक्षा अलंकार है।
प्रश्न – भ्रान्तिमान अलंकार स्पष्ट करें।
उत्तर – भ्रान्तिमान अलंकार में तो अत्यन्त समानता के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु समझ लिया जाता है और उसी भूल के अनुसार कार्य भी कर दिया जाता है। उदाहरणार्थ-
‘बिल विचारि प्रविसन लग्यौ, नाग शुंड में व्याल।
ताहू कारो ऊख भ्रम, लिय उठाय उत्ताल।।’
प्रश्न – विरोधाभास अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – वस्तुत: विरोध न रहने पर भी जहाँ विरोध का आभास हो, वहां विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे- ‘अचल हो उठते हैं चंचल, चपल बन जाते हैं अविचल।
पिघल पड़ते हैं पाहन दल, कुलिश भी हो जाता है कोमल।।’
प्रश्न – मानवीकरण अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां किसी निर्जीव वस्तु को सजीव रुप में वर्णित किया जाता है, वहां मानवीकरण अलंकार होता है। उदाहरणार्थ-
‘प्रकृति मुस्कुराती खड़ी कह रही थी
सबक सीख ले तू मनुजता का अब भी।।’
प्रश्न – संदेह अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां किसी वस्तु को देखकर उसी के समान अन्य वस्तु के संशय होने का भान हो, वहां सन्देह अलंकार होता है। जैसे-
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है,
कि सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।
प्रश्न – व्यतिरेक अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां उपमेय में उपमान की अपेक्षा कुछ अधिक विशेषता दिखायी जाए, वहां व्यतिरेक अलंकार होता है, जैसे-
‘निज परिताप द्रवै नवनीता। पर दु:ख लागि संत सुपुनीता।।’
प्रश्न – आतिशयोक्ति अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां किसी वस्तु का वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए, वहां आतिशयोक्ति अलंकार होता है, जैसे-
‘हनुमान की पूंछ में लग न पाई आग।
सारी लंका जरि गई गए निसाचर भाग।।’
प्रश्न – प्रतिवस्तूपमा अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां उपमेय और उपमान के पृथक-पृथक वाक्यों में एक ही समान धर्म दो भिन्न-भिन्न शब्दों द्वारा कहा जाए वहां प्रतिवस्तूपमा अलंकार होता है। जैसे-
‘लसत सूर सायक-धनु-धारी। रवि प्रताप सन सोहत भारी।।’
प्रश्न – दृष्टान्त अलंकार को स्पष्ट करें।
उत्तर – जहां उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव हो, वहां दृष्टान्त अलंकार होता है। जैसे-
‘सुख दु:ख के मधुर मिलन से यह जीवन हो परिपूरन।
फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि में ओझल हो घन।।’
प्रश्न – निम्न में कौन-सा अलंकार है?
कंकन किकिन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि।।
उत्तर – यहां पर कंकन किकिन में क तथा धुनि सुनि में न और लखन सन में न की आवृत्ति है। अत: यहां अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न – ‘चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रहीं थीं, जल थल में।’ यहां कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – यहां पर ‘च’ वर्ण की आवृत्ति कई बार हुई है। इसलिए यहां अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न – ‘सुबरन को खोजत फिरत कवि, व्यभिचारी, चोर’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – यहां सुबरन के अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग अर्थ होने के कारण श्लेष अलंकार है।
प्रश्न – हरि हरि रुप दियो नारद को, देखइँ दोउ शिवगण मुस्काई। यहां कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – यहां पर एक हरि का अर्थ विष्णु और अन्य हरि का अर्थ बन्दर से है। इसलिए यहां यमक अलंकार है।
प्रश्न – माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
करका मनका डारि कै, मनका मनका फेर।।
यहां कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – यहां पर मनका आशय 1. माला 2. ‘मन का’ हुआ किन्तु ‘मन का’ अर्थ हेतु मनका को टुकड़ों में विभक्त करना पड़ा। इसलिए यहां यमक अलंकार है।
प्रश्न – रावन सिर सरोज-वनचारी। चल रघुवीर सिलीमुखधारी।। में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – सिलीमुख का अर्थ- बाण तथा भौंरा (भ्रमर) होता है। यहां सिलीमुख (शिलीमुख) शब्द के उपर्युक्त दो अर्थ होने के कारण ही श्लेष है।
प्रश्न – चरन सरोरुह नाथ! जनि, कबहुँ तजे मति मोरि।
में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – इसमें चरण को कमल स्वीकार किया गया है। अत: यहां रुपक है।
प्रश्न – संगति सुमति न पावई, परे कुमति के धंध।
राखी मेलि कपूर में हींग न होय सुगंध।।
में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – जहां उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब का भाव हो वहां दृष्टान्त अलंकार होता है।
प्रश्न – “पट-पीत मानहुं तड़ित रुचि, सुचि नौमि जनक सुतावरं।”
यहां कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – जहां पर मनु-मानहुं, जनु-जानहुं शब्द आएं वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अत: इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
प्रश्न – “संदेसनि मधुवन-कूप भरे।” काव्य-पंक्ति में निरुपित अलंकार बताइए।
उत्तर – इस पंक्ति में बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अत: यहां अतिशयोक्ति अलंकार है।