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CTET UPTET Friend Relationship Work Study Material in Hindi

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मित्र(CTET UPTET Previous Year Study Material in Hindi)

खेल बालक की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। बालक को अपने कार्यों में सहयोग करने तथा साथ में खेलने के लिए अन्य बालकों की आवश्यकता होती है, जो उसके मित्र के रूप में होते हैं। बचपन में मित्र बनाने की भावना प्रबल होती है। वह चाहता है कि उसके क्रियात्मक एवं रचनात्मक कार्यों में उसका साथ दें जिन बालकों के के साथ वह रहना, खेलना एवं अन्य कार्य करना पसन्द करता है वे सभी उसके मित्र होते है.

मित्रता एक अनोखा रिश्ता है, जो जाति, धर्म, सम्प्रदाय, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच आदि संकीर्ण मानसिकता से अछूता है। मित्रता हदय को जोड़ती है, इसी आधार पर मित्र एक दूसरे के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। सच्चा मित्र सुख एवं दु:ख में समान भाव से मैत्री निभाता है। मित्रता अनमोल धन है। इसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती। सच्चे मित्रों में किसी भी कारण चाहे वह सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक ही क्यों न हो, व्यवधान नहीं हो सकता।

सगति का व्यक्ति पर विशेष प्रभाव पड़ता है। यदि बालक की मैत्री जिज्ञासु एवं शान्त स्वभाव के बालकों से होती है, तो उसे भी अपने को अपने मित्रों की तरह बनना पड़ता है बालक के विकासमें मित्र की भूमिका भी प्रभावशाली होती है। धन काने की आपाधापी में माता पिता अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर नहीं रख पा रहे हैं। और कुसंगति का पोषण मिलता है। आज जहाँ हमारा पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण दूषित हो रहा है। ऐसे हालत में माता-पिता को अपने बालकों के व्यवहारों एवं क्रिया-कलापों पर नजर रखना आवश्यक हो जाता है। यदि उनमें कोई अवांछनीय बदलाव आ रहा हो, तो उस मित्रवत् व्यवहार द्वार नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

रिश्ते(CTET UPTET Friend Relationship Work Study Material 2018 in Hindi)

जिस प्रकार परिवार बालक पर अपना प्रभाव छोड़ता है उसी प्रकार रिश्तों का भी प्रभाव बालक पर पड़ता है। माता- पिता, भाई –बहन एवं अन्य सदस्यों के सम्पर्क में रहने के कारण बालकों में सामाजिक एवं मानवीय गुणों का उदय होने लगता है। बालकों में विभिन्न पारिवारिक सम्बन्धों की समझ आने लगती है। वह विभिन्न रिश्तों के बीच भूमिकाओं एवं उत्तरदायित्वों के भी समझने लगता है। बालक परिवारा के सदस्यों एवं रिश्तेदारों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने परिवार एवं समाज के आदर्शों मूल्यों, परम्पराओं,मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों को भी धीरे-धीरे सीख लेता है। वह यह जानने लगता है कि माँ उसके लिए क्या करती है, पिता की क्या भीमिका है उसके भाई-बहन का उसके प्रति क्या दृष्टिकोण है? छुटिट्यों, शादियों अन्य त्यौहारों या अवसरों पर बालक को अपने रिश्तेदारों के यहाँ जाने का मौका मिलता है। इस प्रकार रिश्तेदारी में आने-जाने से बालक जान जाते है कि किस रिश्ते को क्या नाम दिया जाता है। रिश्तों का बालक के स्वभाव, रुचियों एवं प्रवृत्तियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

कार्य एवं खेल (CTET UPTET F Important Study Material in Hindi)

वास्तव में खेल बालक की स्वाभाविक, रुचिपूर्ण, स्फूर्तिपूर्ण एवं आनन्दायक क्रिया है। खेल एवं सामान्य प्रवृत्ति है, जो सभी बालकों में पाई जाती है। बालक स्वभाव स ही क्रियाशील होता है। वह अपनी क्रियाशीलता को कार्य एवं खेल के माध्यम से प्रकट करता है। बालक की जिज्ञासा उसकी क्रियाशीलता को और गति प्रदान करती है। खेल बालक के रचनात्मक क्रियाकलापों की एक अभिव्यक्ति है। कार्य एवं खेल के द्वारा ही बालक का शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास होता है।

हरलॉक के अनुसार, खेल वह कोई भी क्रिया है, जो प्राप्त होने वाले आनन्द के लिए की जाती है, परन्तु इसके अन्तिम परिणाम पर कोई विचार नहीं किया जाता है।

बालक परिवार, विद्दालय एवं समाज में रहते हुए विभिन्न प्रकार के कार्य करता है खेलकूद में स्वयं को व्यस्त रखता है, उसके कार्य में उसके माता –पिता, भाई –बहन, मित्रों एवं शिक्षकों का सहयोग होता है। स्कूल में जहाँ एक और बालक अपने सहपाठियों के साथ विभिन्न विषयों का प्रत्यक्ष शिक्षा द्वार ज्ञानार्जन करता है, वही दूसरी और वह स्कूल में विभिन्न क्रियाओं में सक्रिया रूप से भाग लेते हुए अप्रत्यक्ष रूप से सामजिक गुणों को भी सीखता है। कार्य एवं खेल बालक को जात-पात, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब आदि भेदभावों से ऊपर उठकर विभिन्न क्रियाओं में संलग्न रखते

बालक की शिक्षा में कार्य एवं खेल की भूमिका (CTET UPTET Study Material)

बालक की शिक्षा में कार्य एवं खेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इसलिए आधुनिक शिक्षा में क्रिया (करके सीखना) एवं खेल को विशेष महत्व दिया जा रहा है। खेल को विशेष महत्व दिया जा रहा है। खेल के माध्यम से बालक जटिल ज्ञान को भी बड़ी सहजता एवं सरलता से अर्जित कर लेता है। खेल एवं रचनात्मक प्रवृत्ति है अत: खेल एवं क्रिया के माध्यम से बालकों की सृजनात्मक प्रवृत्ति को विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए। मिटटी के बर्तन एवं खिलौने बनाना, कागज के पुष्प एवं अन्य आकृतियाँ बनाना आदि रचनात्मक क्रियाएँ हैं। बालिकाएँ खेल में गुड़ियाँ बनाना, उनके बर्तन, घर एवं कपड़ा आदि का निर्माण करती हैं। खेल के द्वारा बालकों की मूल प्रवृत्तियों का शोधन एवं मार्गदर्शन होता है। कल्पनासीलता एवं पठन-पाठन में रुचि बढ़ती है। शारीरिक विकास के साथ-साथ सामाजिकस नैतिक, चारित्रिक एवं संवेगात्मक गुणों का विकास होता है।

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